नई दिल्ली. अडानी समूह के द्वारा एनडीटीवी के अधिग्रहण का मामला इस समय खबरों में बना हुआ. सोशल मीडिया में भी इसको लेकर खूब बहस चल रही है. एनडीटीवी के प्रमोटरों के बयान के बाद ये भी चर्चा है कि क्या ये अधिग्रहण ‘जबरन’ किया जा रहा है. अगर मान लीजिए इस डील में कोई पेंच फंस जाता है तो इस मामले में रेफरी कौन होगा. कानून के जानकारों का कहना है कि ऐसी स्थिति में असली रेफरी परिवर्तनीय वॉरंट की शर्तें होंगी. आइए विस्तार से इस मामले को समझते हैं.
अडानी समूह के एनडीटीवी के ‘जबरन’ अधिग्रहण के कदम पर विधि विशेषज्ञों का कहना है कि 2009-10 में परिवर्तनीय वॉरंट जारी करने की शर्तें महत्वपूर्ण होंगी. किसी भी विवाद की स्थिति में निर्णय अनुबंध की शर्तों के तहत ही होगा. उल्लेखनीय है कि कंपनियां पूंजी जुटाने के लिये वॉरंट जारी करती हैं. यह प्रतिभूतियों (securities) की तरह होता है जो निवेशकों को भविष्य में निर्धारित तारीख को एक निश्चित कीमत पर कंपनी में शेयर खरीदने का अधिकार देता है.
क्या है मामला
अडानी समूह ने घोषणा की है कि उसके पास एनडीटीवी में 29.18 प्रतिशत हिस्सेदारी है और वह अतिरिक्त 26 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदने के लिये खुली पेशकश लाएगा. इस अधिग्रहण के पीछे मुख्य कारण वह बकाया कर्ज है जो एनडीटीवी की प्रवर्तक कंपनी आरआरपीआर होल्डिंग प्राइवेट लि. ने विश्वप्रधान कमर्शियल प्राइवेट लि. (वीसीपीएल) से लिया था. इकाई ने 2009-10 में 403.85 करोड़ रुपये का कर्ज लिया था. इस कर्ज के एवज में आरआरपीआर ने वॉरंट जारी किये थे. इस वॉरंट के जरिये वीसीपीएल के पास कर्ज नहीं लौटाने की स्थिति उसे आरआरपीआर में 99.9 प्रतिशत हिस्सेदारी में बदलने का अधिकार था.
वॉरंट महत्वपूर्ण
अडानी समूह की कंपनी ने पहले वीसीपीएल का अधिग्रहण किया और बकाया ऋण को एनडीटीवी में 29.18 प्रतिशत हिस्सेदारी में बदलने के विकल्प का प्रयोग किया. कुछ विधि विशेषज्ञों के अनुसार, जिस शर्त पर वॉरंट जारी किये गये, वे महत्वपूर्ण हैं. इसका कारण यह है कि न्यू दिल्ली टेलीविजन लि. (एनडीटीवी) के प्रवर्तकों ने दावा किया कि उन्हें मंगलवार तक अधिग्रहण के बारे में कुछ भी पता नहीं था और यह सब बिना उनकी सहमति या चर्चा के किया गया.
विवाद का फैसला निर्धारित शर्तों के आधार पर
कुमार ने कहा, ‘ यह मामला वास्तव में अनुबंध पर निर्भर करता है और किसी भी विवाद का फैसला निर्धारित शर्तों के आधार पर किया जाएगा.’’ स्पाइस रूट लीगल में भागीदार प्रवीण राजू ने कहा, ‘‘अगर आरआरपीआर होल्डिंग्स प्राइवेट लिमिटेड ने वीसीपीएल को जो वॉरंट जारी किया था, उसमें इक्विटी शेयर में बदलने का प्रावधान है, तो मौजूदा सार्वजनिक घोषणा और खुली पेशकश कानून के दायरे में है.’’
कानूनी लड़ाई लंबी हो सकती है
पॉयनियर लीगल के भागीदार शौभिक दासगुप्ता ने कहा कि अडाणी समूह के अधिग्रहण का रास्ता पूरी तरह से सोची गयी रूपरेखा पर आधारित है. इस तरह के वॉरंट की शर्तें तय करेंगी कि क्या उसे इक्विटी शेयर में बदलने की अनुमति है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि अगर चुनौती दी गई तो लंबी कानूनी लड़ाई हो सकती है.
उच्चतम न्यायालय में वकील और विधि कंपनी आर्क लीगल की भागीदार खुशबू जैन ने कहा कि इस मामले में सहमति का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि यह पहले से मौजूद अनुबंध की शर्तों के तहत उठाया गया कदम है.