प्रोटीन की कमी हैं तो जरूर खाइए ‘देमता चींटियों’ की चटनी, आदिवासियों के स्वाद के साथ सेहत का भी रखती है ख्याल

Food of tribals: दुनियाभर में आदिवासियों के परंपरागत भोजन को सेहत के लिए बेहतर माना जाता हैं। लेकिन जनजातीय समाज के कुछ ऐसे व्यंजन भी है, जिसका प्रचलन कुछ क्षेत्रों तक सीमित हैं। विभिन्न क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी लाल चीटिंयों की चटनी बेहद ही स्वाद के साथ खाते हैं।

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आदिवासियों के पारंपरिक व्यंजन में ‘देमता चींटियों’ की चटनी शामिल

रांची: जंगल में रहने वाली चींटियों से बड़े-बड़े जंगली जानवर भी पंगा नहीं लेते हैं, लेकिन खूंखार जानवर हो या फिर चींटियां। मनुष्य हर प्राणी का उपयोग अपने हित में करने के लिए प्रत्यनशील होता है। ऐसे में वन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समाज के लोग भी सदियों से साग, कंदमूल, खाद्यान्न और औषधिय गुण युक्त भोजन की मदद से अपने सेहत का विशेष ख्याल रखते है। झारखंड और पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ के आदिवासियों का परंपरागत भोजन ‘लाल चीटिंयां’ भी है। इन चीटिंयों को स्थानीय भाषा में आदिवासी समाज के लोग ‘देमता चीटिंयां’ के नाम से पुकारते है। ‘देमता चीटिंयां’ के अंडे की चटनी, सब्जी और सूप काफी स्वादिष्ट होती है और यह सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद हैं।

‘देमता चीटिंयों’ का स्वाद काफी खट्टा
रांची के कोकर की रहने वाली शालिनी सोरेंग बताती हैं कि ‘देमता चीटिंयां’ का स्वाद खट्टा होता है, लेकिन इसमें प्रोटीन की काफी मात्रा है। यह जंगल में मुख्य रूप से सखुआ, आम और लीची के पेड़ों में पाया जाता है। गर्मी के मौसम के ‘देमता चीटिंयां’ अपना घोंसला बनाती है। इस घोंसला से चींटियां के अंडे को बड़ी ही सावधानी पूर्वक एकत्रित किया जाता है। वहीं लाल चीटिंयों को भून कर भी चटनी बनाया जाता है। लेकिन चीटिंयों से अंडा अलग करने में काफी सावधानी बरतनी पड़ती है,क्योंकि अंडे को उनसे अलग करने की कोशिश पर वे एक साथ हमला कर देती हैं। यदि ये चीटिंयां काट देती है, तो काफी दर्द होता है।

मछली की तरह भून कर बनाया जाता है
ये लाल चींटियां राज्य में मुख्य रूप से रांची के अलावा सिमडेगा और गुमला जिले में भी मिलती हैं। इसके अलावा पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में भी मिलती है। इन्हें मछली तरह पहले भून दिया जाता है, फिर लहसुन और प्याज और मसला डालकर सब्जी बनायी जाती है। वहीं इसका चटनी और सूप भी काफी स्वादिष्ट होता है।

चीटिंयों के अंडे को एकत्रित करना काफी कठिन
‘देमता चीटिंयों को निकालने में कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। वहीं यह जंगल में पेड़ की ऊंची टहनियों में अपना घोंसला बनाती हैं। जिसके कारण इसे पेड़ पर चढ़ कर ही उतारा जाता है, या फिर कपड़े के थैले की मदद से चीटिंयों और उसके अंडे को एकत्रित किया जाता हैं। इसलिए बाजार में इसकी कीमत काफी अधिक होती है। एक किलोग्राम की कीमत 300 से 500 रुपये होती है।

आदिवासियों का पारंपरिक भोजन
शालिनी बताती है कि यह आदिवासियों का पसंदीदा और पारंपरिक व्यंजन है। देमता चीटिंयों का स्वाद बहुत खट्टा होता है। इमली से भी कई गुना ज्यादा खट्टा होता है। इसके अंडे का इस्तेमाल, सब्जी के अलावा चटनी और भुजिया बनाने में होता है। अंडे को साफ करने के बाद लहसुन, प्याज, कालीमिर्च और धनिया से करी तैयार कर उसमें अंडा डाल कर पकाते है।
अनेक औषधीय गुण से परिपूर्ण
पारंपरिक मान्यता के अनुसार इसमें अनेक औषधीय गुण हैं। यह शरीर में रोग निरोधक क्षमता विकसित करता है। इसके सेवन से आंख की रोशनी बढ़ती है। गर्मी में लू से बचाव करता है। चेचक, पेचिस, खांदी, सर्दी और कफ के लिए भी मुफीद है। मलेरिया, डेंगू और पीलिया जैसी बीमारियों में भी यह काफी फायदेमंद है।

खुद को चींटियों से कटवाते आदिवासी
राज्य के सुदूरवर्ती इलाके में रहने वाले आदिवासियों को जब कभी बुखार होता है, तो वे पेड़ के नीचे बैठकर लाल चींटियों से खुद को कटवाते हैं। कहा जाता है कि इस प्रक्रिया से बुखार का असर कम हो जाता हैं। चीटियों में फार्मिक एसिड होने के कारण इनमें मेडिसिन के गुण पाए जाते हैं।