छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि बेटा यदि बुजुर्ग पिता की सेवा नहीं करे तो उसका पिता के मकान पर अधिकार नहीं हो सकता। कोर्ट ने बेटे की याचिका खारिज करते हुए सात दिन के अंदर पिता का मकान खाली करने का कलेक्टर का आदेश बरकरार रखा।
मामला रायपुर स्थित कासिमपारा क्षेत्र का है,जहां के नीरज बघेल ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। याचिका में रायपुर कलेक्टर के आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें सात दिनों के भीतर मकान खाली करने को कहा गया था। पिता सेवालाल बघेल ने रायपुर कलेक्टर के समक्ष मेंटेनेंस एन्ड वेलफेयर ऑफ पेरेंट्स एन्ड सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 के प्रावधानों के तहत आवेदन दिया था।
सुनवाई के दौरान पिता ने बताया कि रायपुर स्थित मकान उनके नाम पर है, जहां उनके बेटा और बहू रहते हैं लेकिन उनकी देखभाल नहीं करते। उनके खाने-पीने और इलाज का भी ध्यान नहीं रखते। यहां तक कि उनके खुद के खरीदे घर में घुसने पर धमकी दी जाती है। यही वजह है कि उन्हें अपने बड़े बेटे के साथ रहना पड़ रहा है।
हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण निर्णय में मकान बेदखली के आदेश के खिलाफ दायर बेटे की याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि परंपरा की अनदेखी, लोकाचार और नैतिकता में गिरावट की वजह से बुजुर्गों की उपेक्षा की भावना बढ़ी है। ऐसे में उनके अधिकारों की रक्षा के लिए कानून की जरूरत है।
याचिकाकर्ता बेटे नीरज बघेल ने कोर्ट को बताया कि पिता सरकारी नौकरी से रिटायर हुए हैं और उनकी पेंशन पर्याप्त है। इसके अलावा उन्हें रायपुर स्थित एक अन्य मकान का किराया भी मिलता है। इसलिए वो खुद के भरण-पोषण में सक्षम हैं। याचिकाकर्ता के साथ उसकी मां भी रहती है। याचिकाकर्ता की मां ने भी अपने भरण-पोषण के लिए पति के खिलाफ एक याचिका दायर की है, जो अभी लंबित है। कोर्ट ने इस दलील को सुनने के बाद कहा कि सीनियर सिटीजन एक्ट, 2007 के अनुसार कोई बुजुर्ग अपनी संपत्ति सर्वाधिक सुरक्षित रख सकता है, भले ही वो सक्षम ही क्यों ना हो।