दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में रहते हैं तो खरना से जुड़ा ये नियम जान लें

देवघर: चार दिनों तक चलने वाले छठ पर्व का आज दूसरा दिन है. इस दिन होने वाले खरना का खास महत्व है. इस दिन शाम में व्रती घर पर पूरे विधि विधान से छठ मां की पूजा करती हैं और बंद कमरे में प्रसाद ग्रहण करती हैं. इसके बाद वे 36 घंटे के निर्जला उपवास पर चली जाती हैं. व्रती के खरना का प्रसाद ग्रहण करने के दौरान आसपास का माहौल शांत रखा जाता है. मान्यता के अनुसार, प्रसाद ग्रहण करने के दौरान यदि उनके कान में किसी की आवाज चली जाए तो वे उसी समय खाना छोड़ देती हैं. ये नियम बेहद अहम है, खासकर दिल्ली, मुंबई या नोएडा जैसे शहरों में रहने वाले लोगों के लिए जहां घनी आबादी रहती है और शोरगुल भी रहता है.

जानें खरना का नियम
छठ व्रती खरना के दिन शाम को नदी में स्नान करती हैं. इसके बाद घर आकर खरना की पूजा शुरू करती हैं. इसके लिए एक कमरे में लकड़ी के पीढ़े पर सिंदूर किया जाता है और केले के पत्ते पर भोग लगाया जाता है. जिसमें दूध, चावल और गुड़ से बनी खीर और फल चढ़ाया जाता है. इसके बाद व्रती छठ मां का ध्यान करती हैं. फिर प्रसाद ग्रहण करती हैं. इस दौरान कमरे का दरवाजा बंद रखा जाता है और वे कमरे में अकेली होती हैं. व्रती के प्रसाद ग्रहण करने के दौरान आसपास का माहौल शांत रखा जाता है. क्योंकि प्रसाद ग्रहण करने के दौरान यदि कोई आवाज व्रती के कान में चली जाती है तो वह खाना छोड़ देती हैं. इसके बाद से वे 36 घंटे के निर्जला उपवास पर रहती हैं.

छठ भर्ती के खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद लोग कमरे में जाकर माथा टेकते हैं और व्रती को प्रणाम कर आशीर्वाद लेते हैं. इस दौरान व्रती उन्हें टीका देती हैं और सुहागिनों को नाक से सिंदूर करने की परंपरा है. इसके बाद सभी को खीर का प्रसाद दिया जाता है. श्रद्धालु इसमें ऊपर से गुड़ और केला मिलाकर ग्रहण करते हैं.छठ में नहीं होती पुरोहित की जरूरत
बैद्यनाथ मंदिर के तीर्थ पुरोहित प्रमोद श्रृंगारी ने न्यूज 18 लोकल को बताया कि छठ पर्व एकमात्र पर्व है जिसमें पुरोहित की जरूरत नहीं होती है और ना ही मंत्रों का उच्चारण होता है. इसमें छठ व्रती खुद पुरोहित होती हैं और खरना के दौरान ध्यान कर सीधे छठ मां से जुड़ जाती हैं. पूजा के दौरान किसी भी तरह के शोर से व्रती का ध्यान भंग हो सकता है, इसलिए माहौल को शांतिमय रखने की कोशिश की जाती है. छठ व्रती खरना पूजा के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं. नियम के अनुसार इस दौरान भी कान में आवाज जाने के बाद वह खाना छोड़ देती हैं.