सिंगल यूज प्लास्टिक से जुड़े उत्पादों के कारोबार की, जिनका भारत में अरबों-खरबों का व्यापार है। सॉफ्ट ड्रिंक, जूस, डेयरी प्रोडक्ट बेचने वाली अमूल, डाबर, कोक, पेप्सी, पारले एग्रो, पराग समेत देसी-विदेशी कंपनियों का देश में 6.5 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है, जिसमें छोटे से प्लास्टिक स्ट्रॉ के साथ बिकने वाले जूस और डेयरी उत्पादों की हिस्सेदारी 79 अरब डॉलर की है।
19 आइटम्स पर रोक
पहले बात सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादों की। भारत सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के प्लेट, ग्लास, चम्मच, कप, कांटे, स्ट्रॉ, ट्रे, सिगरेट के पैकेट पर चढ़ाई जाने वाली प्लास्टिक की फिल्म, मिठाई के डिब्बे, 100 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक बैनर, इनविटेशन कार्ड समेत 19 आइटम्स पर रोक लगाई है। शादियों और पार्टियों में पिछले ढाई-तीन दशक से प्लास्टिक की कटलेरी धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही है।
यहां तक केक काटने का चाकू सिंगल यूज प्लास्टिक है। भारत सरकार के पिछले साल अगस्त में प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट अमेंडमेंट रूल्स पास करने के बाद कुछ चीजों के विकल्प खोजे जाने लगे थे, जिसमें केक काटने का चाकू, पानी के गिलास, कांटे जैसा आइटम हैं, जो लकड़ी या कागज के मिलने लगे हैं। उम्मीद तो यही है कि अब ऐसे ही ढेरों नए इनोवेशन होंगे।
देसी-विदेशी कंपनियों का देश में इतना व्यापार
दूसरी बात सिंगल यूज प्लास्टिक से जुड़े उत्पादों के कारोबार की, जिनका भारत में अरबों-खरबों का व्यापार है। सॉफ्ट ड्रिंक, जूस, डेयरी प्रोडक्ट बेचने वाली अमूल, डाबर, कोक, पेप्सी, पारले एग्रो, पराग समेत देसी-विदेशी कंपनियों का देश में 6.5 अरब डॉलर से अधिक का व्यापार है, जिसमें छोटे से प्लास्टिक स्ट्रॉ के साथ बिकने वाले जूस और डेयरी उत्पादों की हिस्सेदारी 79 अरब डॉलर की है।
इस छोटी सी स्ट्रॉ का अभी विकल्प नहीं मिला है। मेडिकल कंपनियों के उत्पाद ईयर बर्ड का विकल्प ढूंढा जाना है। यही कारण है कि पिछले दिनों एक्शन एलायंस फॉर रिसाइक्लिंग बेवरेज कार्टन्स ने भारत सरकार को चिट्ठी लिखकर थोड़ा समय मांगा था। तर्क था कि बिना विकल्प के 6000 करोड़ से अधिक का कारोबार प्रभावित होगा। देश में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस पर असर पड़ेगा। कई कंपनियां बंद हो सकती हैं और सैकड़ों लोग बेरोजगार हो जाएंगे। हालांकि, सरकार ने यह अनुरोध नहीं माना।
पर्यावरण और स्वास्थ्य को नुकसान
तीसरी बात सिंगल यूज प्लास्टिक से पर्यावरण और स्वास्थ्य को हो रहे नुकसान की। दरअसल, सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादों का रिसाइकल बेहद कम और महंगा होता है। इसलिए न तो कंपनियों की इसमें रुचि है और न कचरा बीनने वालों के लिए इनकी कोई कीमत है। शहर-गांव की गलियों, नालियों, अन्य जलस्रोतों और नदियों में सिंगल यूज प्लास्टिक का सामान सालों-साल यूं ही पड़ा रहता है।
नदियों के रास्ते सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पाद समुद्र में पहुंचते हैं। नदियों और समुद्र में मछली, कछुए समेत दूसरे जीव इन्हें निगल जाते हैं और धीमी मौत मरते हैं। आपने निश्चित ही सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो देखे होंगे, जिसमें वॉलिटियर्स कछुए की नाक में फंसी प्लास्टिक की स्ट्रॉ को निकाल रहे हैं या मछली और पक्षियों के पेट से ढेरों प्लास्टिक की सामग्री निकली है। छोटी सी स्ट्रॉ तक ईको-सिस्टम का सत्यानाश करने के लिए काफी है।
2.4 लाख टन सिंगल यूज प्लास्टिक के आइटम
भारत में भले 40-50 साल पहले सिंगल यूज प्लास्टिक का चलन शुरू हुआ हो, लेकिन पश्चिमी देशों ने 1950 के आसपास इन्हें अपनाना शुरू कर दिया था। तब से अब तक इनका उत्पादन 200 गुना से अधिक बढ़ गया है। दक्षिण एशियाई देशों में तो यह बेरोकटोक इस्तेमाल हो रहा है। भारत की बात करें तो अभी 2.4 लाख टन सिंगल यूज प्लास्टिक के आइटम बन रहे हैं।
भारत सरकार का सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक का कदम साहसिक है, क्योंकि यह बेहद जोखिम भरा कदम है। अभी सरकार ने सिंगल यूज प्लास्टिक के इस्लेमाल पर एक लाख रुपए जुर्माना और 7 साल की सजा का प्रावधान किया है। असली चुनौती इसे गंभीरता से लागू करने की है।
सिंगल यूज प्लास्टिक के दुप्रभावों को समझने की जरूरत
सरकार तो अपनी ओर से सख्त कदम उठा रही है। आमजन को भी सिंगल यूज प्लास्टिक के दुप्रभावों को समझने की जरूरत है। साथ ही, सरकार को व्यापक स्तर पर जनजागरुकता अभियान चलाने की आवश्यकता है, क्योंकि अधिकांश लोग अभी भी इसे लेकर अनभिज्ञ हैं। वो केवल अपने कंफर्ट को ढूंढते हैं।
कहीं ऐसा न हो की सिंगल यूज प्लास्टिक पर रोक केवल उगाही का जरिया बनकर रह जाए। कहीं ऐसा न हो की चोर रास्तों से सिंगल यूज प्लास्टिक का इस्तेमाल जारी रहे और सरकार की सारी कवायद धरी की धरी रह जाए।
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