चुनाव आयोग का नया तेवर कुछ समय पहले के उसके अपने ही रुख के विपरीत है। इसी साल अप्रैल में एक मामले की सुनवाई के दौरान आयोग सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कह चुका है कि वह राजनीतिक दलों के नीतिगत निर्णयों को रेग्युलेट नहीं कर सकता।
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा है कि सरकार चुनाव आयोग के साथ विचार-विमर्श कर रही है और मौजूदा जन-प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन के जरिए वह चुनाव सुधारों को लागू करने के लिए विधायिका का समर्थन सुनिश्चित कर सकती है। वैसे, कानून मंत्री ने यह स्पष्ट नहीं किया कि सरकार कानून में किस तरह के संशोधन लाना और किन चुनाव सुधारों को लागू कराना चाहती है, लेकिन उनके बयान से एक दिन पहले ही चुनाव आयोग ने सभी दलों को पत्र लिखकर आदर्श आचार संहिता में कुछ संशोधन का प्रस्ताव रखा। आयोग का कहना है कि मौजूदा प्रावधानों के तहत भी राजनीतिक दलों को अपने चुनावी वादों को लागू करने के तरीके बताने ही होते हैं, लेकिन इस समय वे रूटीन ढंग से इस औपचारिकता का निर्वाह कर देते हैं। उनके जवाब प्रामाणिक और तथ्य आधारित हों, यह पक्का करने की जरूरत है। इसी मकसद से चुनाव आयोग ने यह नई पहल की है, जिसके तहत राजनीतिक दलों को पत्र भेजकर उनसे 18 अक्टूबर तक इस पर अपना रुख स्पष्ट करने को कहा गया है। आयोग ने कहा है कि वह कुछ चुनावी वादों के अवांछित प्रभावों पर मूकदर्शक बना बैठा नहीं रहेगा।
दिलचस्प है कि चुनाव आयोग का यह नया तेवर कुछ समय पहले के उसके अपने ही रुख के विपरीत है। इसी साल अप्रैल में एक मामले की सुनवाई के दौरान आयोग सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर कह चुका है कि वह राजनीतिक दलों के नीतिगत निर्णयों को रेग्युलेट नहीं कर सकता। मुफ्त रेवड़ियों से जुड़े मामले में भी चुनाव आयोग सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रस्तावित समिति में शामिल होने से इनकार कर चुका है।
आश्चर्य नहीं कि आयोग की ताजा पहल पर विभिन्न राजनीतिक दल सवाल उठा रहे हैं। कई दलों ने संदेह जताया है कि आयोग के रुख में आए बदलाव के पीछे कहीं सरकार का दबाव तो नहीं। हालांकि ऐसे आरोप सही रिफॉर्म्स को लेकर भी लगते रहे हैं। ध्यान रहे, चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। इसका काम ऐसा है, जिसमें इसकी स्वायत्तता और निष्पक्षता का हर संदेह से परे रहना आवश्यक है। अगर सरकार चुनाव सुधारों को आगे बढ़ाने की जरूरत महसूस कर रही है तो बेहतर होगा कि वह तमाम राजनीतिक दलों को विश्वास में ले और फिर चुनाव आयोग तक उन प्रस्तावों को भिजवाए ताकि इस प्रक्रिया में हर कदम पर पारदर्शिता सुनिश्चित की जा सके।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में चुनाव सुधारों की जरूरत से इनकार नहीं किया जा सकता। लेकिन इसे आगे बढ़ाते हुए चुनाव आयोग समेत सभी संबंधित पक्षों के लिए आवश्यक है कि निष्पक्षता और पारदर्शिता के सभी तकाजे पूरे करते चलें। इस संबंध में कोई भी लापरवाही पूरी प्रक्रिया को पूरा होने से पहले ही निरर्थक बना सकती है।