इमरान तो बच गए, लेकिन भारत में नेता अपनी सुरक्षा को लेकर ले रहे बड़ा चांस!

VVIP Security: सामान्य तौर पर वीवीआईपी को अपने कार्यक्रम की जानकारी अग्रिम तौर से देनी पड़ती है। कम से कम 24 घंटे पहले बताना पड़ता है कि वीवीआईपी को कहां जाना है। पहले से तय कार्यक्रम की सूचना 48 घंटे पहले देनी जरूरी है। कई वीवीआईपी अपने राजनीतिक कार्यक्रम में समर्थकों को बुला लेते हैं। अगर सुरक्षा कर्मी उन्हें रोकते हैं, तो वीवीआईपी उस पर नाखुशी जाहिर करता है…

पाकिस्तान की पूर्व पीएम बेनजीर भुट्टो और लियाकत अली खान की राजनीतिक आयोजन के दौरान हत्या कर दी गई थी। इस वर्ष जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे भी इसी तरह के आयोजन में एक हमलावर की गोली का निशाना बने और मारे गए। अब गुरुवार को पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान पर राजनीतिक प्रदर्शन के दौरान हमला हुआ है। ऐसे में वीवीआईपी सुरक्षा को लेकर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। भारत में प्रधानमंत्री एवं दूसरे वीआईपी लोगों का सुरक्षा खर्च सालाना 12 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा बैठता है। इसके बावजूद सुरक्षाधारक व्यक्ति अपनी हिफाजत को लेकर ‘चांस’ लेते हैं। देश में अधिकांश नेता, जिन्हें सुरक्षा प्राप्त है, वे उसे ‘सिक्योरिटी’ न मानकर खुद के लिए सुविधा मानते हैं। एसपीजी सुरक्षा प्राप्त वीवीआईपी को छोड़ दें, तो बाकी जेड प्लस से लेकर निचले स्तर तक की विभिन्न श्रेणियों में सुरक्षा के लिए अनिवार्य नियम टूट जाते हैं। सैनिटाइज रूट खत्म हो जाता है। रैलियां, प्रदर्शन, जनसंपर्क और लंबी यात्रा, ऐसे सभी आयोजनों में सुरक्षा को लेकर वीवीआईपी बड़ा जोखिम उठा रहे हैं। उनका एक ‘चांस’ किसी भी वक्त भारी पड़ सकता है।

जब नहीं होता दोतरफा पालन तो टूट जाता है सुरक्षा घेरा

एसपीजी, एनएसजी और जेड प्लस सुरक्षा को लेकर काम कर चुके पूर्व वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने इस संबंध में कई अहम जानकारी दी हैं। उनका कहना है, देखिये सुरक्षा का मतलब सुरक्षा होता है, जिसका पालन दोतरफा करना पड़ता है। जितने सतर्क सुरक्षा कर्मी रहते हैं, उतना ही संबंधित वीवीआईपी को रहना चाहिए। भारत में यही नियम टूट जाता है। और हां, भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी सुरक्षा के इस प्वाइंट का उल्लंघन होता है। नतीजा सामने है। पूर्व पीएम राजीव गांधी, जिस हमले में मारे गए, वह भी एक राजनीतिक कार्यक्रम था। संभव है कि किसी स्तर पर सुरक्षा का घेरा टूटा हो। पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री नवाबजादा लियाकत अली खान जब रावलपिंडी में रैली कर रहे थे, तो एक हमलावर ने उन्हें तीन गोलियां मारी थी। 27 दिसंबर 2007 को बेनजीर भुट्टो रावलपिंडी के लियाकत बाग में एक चुनावी रैली को संबोधित कर जब वापस लौट रही थीं,, तो हमलावर बिलाल उनकी कार के पास आया। उसने पहले बेनजीर भुट्टो को करीब से गोली मारी और फिर खुद को बम से उड़ा लिया। जापान के पूर्व पीएम ‘शिंजो आबे’ पर एक राजनीतिक कार्यक्रम में बहुत करीब से हमला होता है और वे मारे जाते हैं

सुरक्षा को लेकर भारत में महंगा पड़ सकता है ये ‘चांस’

पूर्व अधिकारी के मुताबिक, अगर बात एसपीजी की करें, तो वहां इस तरह का चांस नहीं लिया जाता। बहुत कुछ पहले से ही तय रहता है। आसपास की इमारतों पर स्नाइपर तैनात रहते हैं। मौके पर सुरक्षा कर्मियों की कई परतें रहती हैं। मौजूदा पीएम, कई बार सुरक्षा घेरे से बाहर जाकर लोगों से मिलते हैं। ऐसे में सुरक्षा कर्मियों को अतिरिक्त सतर्कता बरतनी पड़ती है। पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के पास जब तक एसपीजी रही, उन्होंने कभी इस घेरे से बाहर जाने का प्रयास नहीं किया। अब वे जेड प्लस घेरे में हैं तो भी सुरक्षा नियमों का पूरा पालन करते हैं। सोनिया गांधी, प्रियंका और राहुल के पास भी एसपीजी रही है। हालांकि 2019 में जब इनकी एसपीजी सुरक्षा हटाई गई तो कई तरह की बातें सामने आई थीं। वह सूची भी जारी हुई कि किसने कितनी बार सुरक्षा नियमों का उल्लंघन किया है। पूर्व पीएम एचडी देवेगौड़ा की सुरक्षा स्थानीय पुलिस देखती है। अब वे ज्यादा सक्रिय नहीं हैं, तो उनका सुरक्षा घेरा बना रहता है। राहुल गांधी के पास जेड प्लस सुरक्षा है। वे भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं। कभी दौड़ते हैं तो कभी अपने समर्थकों के साथ खेलने लगते हैं। ऐसे में रूट सैनिटाइज करना संभव नहीं हो पाता। सुरक्षा नियमों के विपरित जाकर वे किसी से भी मिल लेते हैं। किसी को अपने पास बुला लेते हैं। इसे सुरक्षा को लेकर ‘चांस’ लेना ही कहा जाता है।

भारत में अधिकांश वीवीआईपी उठा रहे जोखिम

खासतौर से राजनीतिक व्यक्ति, जिन्हें किसी भी श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है, वे कई तरह का जोखिम उठाते हैं। जो रूट सैनिटाइज होता है, वहां से नहीं जाते। कई बार सुरक्षा कर्मियों के आग्रह को नहीं मानते। ऐसी स्थिति में कोई हमला होता है तो सुरक्षा कर्मियों का एकमात्र दायित्व वीवीआईपी की हिफाजत करना रहता है। अगर उन्हें सामने हमलावर दिखता है, लेकिन वह चार-पांच लोगों के बीच है तो उस पर गोली नहीं चला सकते। वजह, वहां जनता भी होती है। सामान्य तौर पर वीवीआईपी को अपने कार्यक्रम की जानकारी अग्रिम तौर से देनी पड़ती है। कम से कम 24 घंटे पहले बताना पड़ता है कि वीवीआईपी को कहां जाना है। पहले से तय कार्यक्रम की सूचना 48 घंटे पहले देनी जरूरी है। कई वीवीआईपी अपने राजनीतिक कार्यक्रम में समर्थकों को बुला लेते हैं। अगर सुरक्षा कर्मी उन्हें रोकते हैं, तो वीवीआईपी उस पर नाखुशी जाहिर करता है। मनमर्जी से कहीं भी गाड़ी रूकवा लेते हैं। समर्थकों से मिलने के लिए एकाएक गाड़ी से नीचे उतर जाते हैं। नियम है कि वीवीआईपी व्यक्ति गाड़ी की पिछली सीट पर बैठेगा, लेकिन एक्सपोजर के चलते वह फ्रंट सीट पर बैठता है। इससे सुरक्षा कर्मियों को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। कई बार प्रदर्शन में वीवीआईपी व्यक्ति पुलिस बेरिकेड तोड़ता है। लोकल पुलिस के साथ धक्कामुक्की होती है।

भारत में पीएम या पूर्व पीएम का सुरक्षा घेरा

प्रधानमंत्री व पूर्व पीएम के कार्यक्रम में मजबूत सुरक्षा घेरा होता है। इंडोर कार्यक्रम है तो वहां एक तय समय के बाद प्रवेश बंद हो जाता है। स्पेशल मीडिया पास जारी होते हैं। कौन कितनी दूरी पर रहेगा, ये सब पहले से ही तय होता है। पीएम के सुरक्षा घेरे को भेद पाना आसान नहीं होता। यह घेरा कम से कम पांच स्तरीय होता है। खतरा कितना है, इसके अनुसार घेरा बढ़ाया या घटाया जा सकता है। सबसे निकट एसपीजी की ‘सीपीटी’ यानी क्लोज प्रोटेक्शन टीम होती है। उसके बाद एसपीजी की दूसरी टीम का नंबर आता है। यह कुछ दूरी पर तैनात रहती है। इसके बाद पैरा मिलिट्री और पुलिस रहती है। चौथी परत में भी पैरा मिलिट्री के जवान होते हैं। पांचवें नंबर पर सिविल पुलिस आ जाती है। इसकी ड्यूटी अपेक्षाकृत ऊंची बिल्डिंगों से नजर रखना, आदि रहती है। पूर्व प्रधानमंत्रियों के पास जो सुरक्षा रहती है, उसमें भी तीन परतें होती हैं। पहली परत में सीआरपीएफ की ‘सीपीटी’ रहती है। इसमें वे जवान होते हैं, जिन्होंने पहले एसपीजी या एनएसजी में सेवा दी हो। दूसरी परत में भी सीआरपीएफ होती है। तीसरी परत में सिविल पुलिस और पैरामिलिट्री, दोनों के जवान रहते हैं। पीएम या पूर्व पीएम का जहां कहीं भी कार्यक्रम होता है, वहां के इलाके को पूरी तरह सुरक्षित कर दिया जाता है। डायस और पब्लिक के बीच दूरी रहती है। किसी भी जोखिम से निपटने के लिए कार्यक्रम स्थल पर सुरक्षा बलों की एडवांस तैनाती की जाती है। एक्सपर्ट का कहना है कि एसपीजी या कोई दूसरी एजेंसी किसी वीवीआईपी को सुरक्षा दे रही है तो उसे पब्लिक के बीच मनमर्जी करने से बचना चाहिए। सुरक्षा घेरा तोड़कर, पब्लिक के बीच पहुंचना, कई बार बड़े जोखिम का कारण बन सकता है।

सालाना 12000 करोड़ रुपये पर सुरक्षित रहते हैं ‘वीआईपी’

देश में वीआईपी लोगों को ‘महफूज’ रखना महंगा पड़ता है। एक अनुमान के मुताबिक, देश में सभी तरह की सुरक्षा श्रेणियों को मिलाकर करीब बीस हजार से अधिक विशिष्ट एवं अति विशिष्ट लोगों को सुरक्षा प्राप्त है। प्रधानमंत्री के एसपीजी सुरक्षा कवर से लेकर जेड प्लस, जेड, वाई प्लस, वाई और एक्स श्रेणी की सुरक्षा के अलावा केंद्र व राज्य में एक या दो सुरक्षाकर्मी साथ लेकर चलने वाले वीआईपी लोगों का आंकड़ा काफी बड़ा है। लगभग 20 हजार वीआईपी को सुरक्षा प्रदान करने में सालाना 12000 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। इनकी सुरक्षा में 60,000 से अधिक जवान तैनात हैं। 30,000 से ज्यादा गाड़ियां, वीआईपी सिक्योरिटी में इस्तेमाल हो रही हैं। इस खर्च में तो केवल सुरक्षाकर्मियों का वेतन और वाहनों का पेट्रोल डीजल ही शामिल है। मसलन, खाना पीना, रहना, ट्रेवलिंग अलाउंस, जोखिम भत्ता एवं दूसरा कई तरह का व्यय अलग रहता है। केंद्र एवं राज्य सरकारें इस खर्च को वहन करती हैं। जेड प्लस सुरक्षा कवर में लगभग 46 सुरक्षाकर्मी रहते हैं। जेड के तहत 33, वाई प्लस में 11, वाई में 8 और एक्स श्रेणी में दो से छह तक जवान रहते हैं। जेड और जेड प्लस सुरक्षा में एस्कोर्ट भी चलती है। कई बार केंद्रीय सुरक्षा प्राप्त व्यक्ति को अपने दौरे पर वहां के राज्य की तरफ से सुरक्षा एवं वाहन प्रदान किए जाते हैं। देश में लगभग 240 लोगों को केंद्र की ओर से सुरक्षा दी गई है। यह आंकड़ा बदलता रहता है।

कहां पर कितने लोगों को मिली है वीआईपी सुरक्षा

2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, पश्चिम बंगाल में 3,142 लोगों सुरक्षा दी गई थी। इसके बाद दूसरा नंबर पंजाब 2,594 का आता है। बिहार में 2,347 और हरियाणा में 1,355 और झारखंड में 1,351 लोगों को सुरक्षा मिली हुई थी। चुनाव के समय इस संख्या में बढ़ोतरी हो जाती है। दिल्ली में करीब 9000 जवान वीआईपी सुरक्षा में तैनात हैं। पांच सौ से अधिक लोगों को सुरक्षा मिली है। खास बात ये है कि इसके लिए दिल्ली पुलिस को बाहर से वाहनों का इंतजाम करना पड़ता है। किराये की गाड़ियों पर सालाना 53 करोड़ रुपये से अधिक की राशि खर्च हो रही है। दिल्ली में अनेक वीआईपी के साथ पायलट एस्कोर्ट चलती है। जिन्हें जेड व जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा मिली है, उनके लिए रोजाना के तामझाम पर करीब 11 लाख रुपये खर्च हो रहे हैं। अनेक वीआईपी ऐसे भी होते हैं, जिनके पास सुरक्षा कर्मियों के लिए अलग से गाड़ी नहीं होती। बाहर का दौरा है, तो वहां रहने का इंतजाम नहीं मिलता। ऐसे में सुरक्षा कर्मियों को पास की अपनी यूनिट से सेवा लेनी पड़ती है। खाने पीने का इंतजाम भी खुद ही करना पड़ता है। एसपीजी के मुकाबले अन्य सुरक्षा श्रेणियों को कोई विशेष भत्ता नहीं मिलता।