शिमला, 03 नवंबर : हिमाचल प्रदेश के मौजूदा विधानसभा चुनाव में ‘रिवाज’ से जुड़ा नारा खासा चर्चा में है। भाजपा कह रही है, ‘रिवाज बदलना है’, तो कांग्रेस का तर्क है कि हिमाचल की पहचान संस्कृति के लिए होती है, लिहाजा रिवाज नहीं बदलना चाहिए। खैर, ये तो 12 दिसंबर को मतदाता ही तय करेंगे कि रिवाज बदलना चाहिए या नहीं।
दरअसल, हिमाचल में हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन का रिवाज है। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी ऐसा ही हुआ था। भाजपा ने कांग्रेस से सत्ता छीन ली थी। 2017 के चुनाव में भाजपा ने 18 सीटों का इजाफा कर सत्ता हासिल की थी। आंकड़ा 26 से 44 पर पहुंच गया। वहीं, कांग्रेस 36 से घटकर 21 पर आ गई। ऐसे रिवाज कायम रहा।
2017 के चुनाव में भाजपा का वोट शेयर 48.8 प्रतिशत था, जो 2012 की तुलना में 10.3 बढ़ गया। वहीं, कांग्रेस के वोट शेयर में तो अधिक गिरावट नहीं आई, लेकिन सीटें घट गई थी। कांग्रेस को 1.1 प्रतिशत वोट शेयर की कमी का सामना करना पड़ा था।
2012 में पांच निर्दलीय चुनाव जीते थे, 2017 में ये आंकड़ा 2 रहा। 2012 में कांग्रेस की सीटों में 13 का इजाफा हुआ था। 36 सीटें हासिल कर सरकार बनाई गई थी। भाजपा का आंकड़ा 42 से घटकर 26 रह गया था। कुल मिलाकर खास बात ये है कि रिवाज बदलता आया है।
2007 के चुनाव में भाजपा का 68 सीटों पर वोट शेयर 43.8 प्रतिशत था। कांग्रेस ने 38.91 प्रतिशत वोट हासिल किए थे।
ये भी खास है कि 2017 में कांगड़ा व हमीरपुर ने भाजपा को 44 में से 20 विधायक दिए थे। चंबा में 5 में से 4 सीटें भी भाजपा की झोली में आई थी। कांग्रेस ने कुल 21 सीटें हासिल की थी, जबकि तीन सीटें अन्यों के खातों से आई थी।