भारत (India) ने जिस तरह से रूस यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine War) में अपनी स्थिति को कायम रखा है, विशेषज्ञों का मानना है कि उसने देश को काफी फायदा पहुंचाया है। अमेरिका (US) भी मजबूर है और वह चाहकर भी भारत से मुंह नहीं मोड़ सकता है। इस युद्ध के बाद भारत दुनिया में उस देश के तौर पर आगे बढ़ रहा है जो अपने फैसले खुद लेने में सक्षम है।
सुरक्षा परिषद की वकालत
रक्षा विशेषज्ञ डेरेक ग्रॉसमैन कहते हैं कि भारत का एकमात्र लक्ष्य है कि वह एक ऐसे आत्मनिर्भर सुपरपावर देश के तौर पर सामने आ सके जिस पर किसी देश का कोई ज्यादा फर्क न पड़ सके। अब तो बात यहां तक आ गई है कि अमेरिका और फ्रांस जैसे देश सुरक्षा परिषद में भारत की स्थायी सदस्यता की वकालत तक करने लगे हैं। इस बात में कोई दो राय नहीं है कि अमेरिका इस समय भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझीदार बन चुका है। दोनों देशों के रिश्तों ने हाल के दिनों में काफी तरक्की की है।
अमेरिका भी कुछ नहीं कर पाया
साल 2018 के बाद से भारत और अमेरिका और करीब आ गए हैं। दोनों देशों ने कई सालाना शिखर सम्मेलनों में हिस्सा लिया है तो कई अहम समझौते भी साइन किए गए हैं। क्वाड में दोनों ही देश साझीदार हैं और पिछले महीने जापान में क्वाड सम्मेलन में पीएम मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन से मुलाकात की। दोनों नेताओं के बीच यह दूसरी मीटिंग थी। भारत हाल ही में अमेरिका की उस नीति का हिस्सा बना है जो हिंद-प्रशांत के आर्थिक स्थिति से जुड़ी है। इस नीति का मकसद इस क्षेत्र में आपसी सहयोग को एक औपचारिक संधि के रूप में आगे बढ़ाना है।
बदल गए अमेरिका के सुर
इस साल फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो भारत ने उस नीति को अपनाया जो उसके हितों के लिए फायदेमंद हो। भारत अपने सैन्य उपकरणों के लिए रूस पर निर्भर हे ऐसे में रूस की निंदा ना करके भारत ने इससे दूरी बनाना ही बेहतर समझा। पहले तो मोदी सरकार की रणनीति ऐसा लग रहा था कि अमेरिका के साथ रिश्तों पर निर्भर करेगी। मार्च में बाइडेन ने कहा कि रूस को सजा देने वाला भारत का रुख कुछ हद तक अस्थिर है। अप्रैल में अमेरिका के उप- राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह भारत आए। यहां पर उन्होंने धमकाने वाले अंदाज में भारत से कहा कि अमेरिकी प्रतिबंधों को अनदेखा करने के गंभीर नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। लेकिन अप्रैल के मध्य तक बाइडेन प्रशासन के सुर ही बदल गए।
महाशक्ति का दर्जा
बाइडेन और मोदी ने एक कॉन्फ्रेंस कॉल में 2+2 वार्ता की शुरुआत की। इससे यह स्पष्ट हो चुका था कि बाइडेन मोदी की स्थिति को स्वीकार कर चुके हैं। अमेरिका की तरफ से जो रीडआउट जारी किया गया उसमें कहा गया कि दोनों देशों के बीच आपसी सहयोग जारी रहेगा। इसमें इस तरफ कोई संकेत नहीं दिया गया था कि क्या अमेरिका रूस का पक्ष लेने पर भारत के खिलाफ एक्शन का मन बन चुका है या नहीं। इतना ही नहीं भारत की तरफ से इसके बाद भी रूस की निंदा नहीं की गई और न ही तेल आयात को खत्म करने का ऐलान किया गया।
भारत को बड़ा फायदा
विशेषज्ञ मानते हैं ये बातें ये बताने के लिए काफी हैं कि भारत किस तरह से महाशक्ति का दर्जा हासिल करने की तरफ बढ़ चुका है। उनका कहना है कि भारत में अब इतनी क्षमता है कि वह वैश्विक सिस्टम को पलट सके। रूस और यूक्रेन की जंग ने भारत को काफी फायदा पहुंचाया है। अमेरिका के विरोध के बाद भी रूस पर भारत की नीति कायम है। हिंद-प्रशांत क्षेत्र के देश हों या फिर यूरोप के, सबके साथ सहयोग बना हुआ है। लेकिन अगर युद्ध और चला तो फिर भारत को अपना फैसला बदलना पड़ सकता है।