भारत में टैलेंट की कमी नहीं है. समय-समय पर इसके उदाहरण देखने को मिलते रहते हैं. 2016 में ऐसा ही एक उदाहरण 10वीं के स्टूडेंट सिकांतो मंडल ने पेश किया था. स्वच्छता को लेकर बनाई गई उनकी मशीन स्वच्छता कार्ट ने सबका दिल जीता था. यहां तक कि देश के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी सिकांतो की तारीफ की थी.
सुर्खियों में आने के बाद सिकांतों को कई मंचों पर मान-सम्मान मिला. अखबारों में तस्वीरें छपीं और टीवी पर ख़बरें भी आईं. लेकिन आज देश का यह होनहार लड़का और उसका परिवार बदहाली की ज़िंदगी जीने को मजबूर है. माथुरा में एक किराए के घर में रहते हुए जैसे-तैसे सिकांतो का परिवार अपनी गुजर-बसर कर रहा है. सिकांतो ने भी एक छोटी सी नौकरी ज्वॉइन कर ली है ताकि ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी कर सके और परिवार की मदद कर सके.
सिकांतो ने किस तरह से स्वच्छता कार्ट मशीन बनाई थी और इसके बाद उनके जीवन में किस तरह के बदलाव आए यह जानने के लिए इंडिया टाइम्स हिन्दी ने सिकांतो से खास बातचीत की:
सिकांतों के साथ बातचीत की शुरुआत उनके नाम से हुई. उनके नाम को लेकर एक अलग तरह की जिज्ञासा थी. उनसे पूछा जाता कि वो मूल रुप से कहां से हैं. इससे पहले सिकातों कहते हैं, ”वैसे तो मैं पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद का हूं. पर पिता काम की तलाश में मथुरा आए और फिर यही बस गए. इसलिए मैं मथुरा में ही बड़ा हुआ”. सिकांतों बताते हैं कि उनका जन्म एक बेहद गरीब परिवार में हुआ. उनके पिता ने उन्हें स्कूल भेजने के लिए रिक्शा चलाया और दिहाड़ी मजदूरी की. आज भी वो एक किराए के घर में ही रहते हैं और गुजर-बसर कर रहे हैं.
‘स्वच्छता कार्ट’ बनाने का ख्याल कब और कैसे आया?
इस सवाल के जवाब में सिकांतो अपने पुराने दिनों को याद करते हुए बताते हैं कि 2016 की बात है. वो 9वीं में पढ़ते थे. वो एक ऐसे स्कूल में पढ़ते थे जहां आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों से फीस नहीं ली जाती थी. बस उन्हें उस जगह की साफ-सफाई रखनी पड़ती थी जहां बैठकर वो पढ़ाई करते थे. इस दौरान उनके दिमाग में ख्याल आया कि क्यों न कुछ ऐसा बनाया जाया जिससे साफ-सफाई करने में आराम हो.
आगे उन्होंने अपना आइडिया अपने साइंस टीचर के साथ शेयर किया. सिकांतो से प्रभावित होकर उनके टीचर ने उनकी मदद की और उनसे कहा कि उन्हें स्कूल लेवल पर होने वाले ‘इंस्पायर अवॉर्ड’ कंपटीशन में हिस्सा लेना चाहिए. सिकांतो ने इसको गंभीरता से लिया और पैनल को प्रभावित करने में सफल रहे. फलस्वरूप उन्हें अपनी मशीन बनाने के लिए 5000 रुपए दिए गए.
साइकिल के कबाड़ से कूड़ा उठाने वाली मशीन बनाई
सिकांतो के मुताबिक मशीन के लि ये रकम बेहद कम थी. इसलिए उन्होंने इससे जरूरी सामान खरीदा और बाकी अपने दिमाग का प्रयोग किया. उन्होंने अपनी मशीन को बनाने के लिए साइकिल के कबाड़ का प्रयोग किया और अपने काम से सबको हैरान कर दिया. बता दें, यह तो महज़ शुरुआत थी. स्टेट एवं नेशनल लेवल की प्रदर्शनी में भी सिकांतो के मॉडल को जगह मिली.
साल 2016 में दिल्ली में आयोजित नेशनल लेवल की प्रदर्शनी में देश के जिन 60 बच्चों के मॉडल को चयनित किया गया, उसमें सिकांतो की मोबाइल गार्बेज कलेक्टिंग डिवाइस भी शामिल थी. सिकांतो को एक कंपनी ने इस मशीन को बनाने के लिए 1 लाख रुपए भी दिए. मशीन के सिलेक्शन होने के बाद सिकांतो को जापान जाने का मौका मिला.
उन्हें अपनी मशीन को राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद के सामने पेश करने का मौका मिला था. राष्ट्रपति जी ने उनके काम से खुश होकर उनकी पीठ थपथपाई थी. अक्षय कुमार ने भी उनसे प्रभावित होकर 5 लाख रुपए दिए गए थे. यह सब जानकर एक पल के लिए लगा सिकांतो का जीवन बदल गया होगा. लेकिन सिकांतो ने यह भ्रम तोड़ दिया.
आज ‘बदहाली की ज़िंदगी’ जी रहा है सिकांतो का परिवार
सिकांतो भावुक होकर कहते हैं, ”सर, आपको लग रहा होगा कि मेरी लाइफ सेट होगी. लेकिन यह सच नहीं है. वर्तमान में मैं और मेरा परिवार पैसे-पैसे को मोहताज है. मैं ग्रेजुएशन के आखिरी वर्ष में हूं. पढ़ाई पूरी कर सकूं. इसके लिए मैंने एक नौकरी ज्वॉइन कर ली है. पिता पहले ही तरह मजदूरी कर घर चला रहे हैं. किराए के छोटे से घर में रह रही मां को उम्मीद है कि उनका बेटा एक दिन वैज्ञानिक बनेगा. मेरी कोशिश जारी है. मुझे पता है कि बिना पैसों के आसान नहीं है. लेकिन फिर भी मैं कोशिश करना चाहता हूं. बस आप सब प्यार बनाए रखिए.”