इंसानों की दुनिया में..! 53 बच्चों का जन्मस्थान कूड़ेदान… पता अनाथाश्रम

महिला कल्याण विभाग की देखरेख में पल रहे हैं जन्म देने के बाद तुरंत फेंके गए 50 बच्चे, तीन की जान नहीं बच पाई। समाजशास्त्रीयों का कहना है कि बेटे की चाह, तंगी, पारिवारिक दबाव और लोकलाज समाज है इसकी वजह।

महिला कल्याण विभाग के पास मंडल के 53 ऐसे बच्चों का रिकॉर्ड है, जिन्हें जन्म देने वालों ने उन्हें कहीं किसी सड़क किनारे, झाड़ियों में या किसी कूड़ेदान में फेंक दिया। इनमें से 50 बच्चों का पता अब अनाथाश्रम है। तीन को बचाया नहीं जा सका। नवजात बच्चों को जन्म देने के फौरन बाद उन्हें मरने के लिए फेंक दिए जाने की इस दर्दनाक कहानी का दूसरा मार्मिक पहलू यह है कि इन बच्चों में 75 फीसदी बेटियां हैं

वैसे तो 53 नवजात बच्चों का लावारिस हालत में मिलने का आंकड़ा पांच सालों का है, लेकिन खुद अधिकारियों का मानना है कि बहुत संभव है कि यह संख्या नवजात बच्चों को फेंके जाने की घटनाओं की 10 फीसदी भी न हो। क्योंकि इन 53 बच्चों के साथ यह खुशकिस्मती भी रही कि नियति ने उन्हें संसार में आते ही विदा करने के मंसूबे को पूरा नहीं होने दिया। महिला कल्याण विभाग के आंकड़ों के मुताबिक फेंके गए 53 बच्चों में से 19 बरेली, 20 बदायूं, 12 शाहजहांपुर और दो पीलीभीत जिले में मिले। बरेली, बदायूं और पीलीभीत में एक-एक नवजात की मौत हो गई।
इत्तेफाक की बात है कि पिछले दो सालों में कोरोना ने लाखों जिंदगियां तबाह कीं लेकिन इस दौरान नवजात बच्चों को फेंके जाने की घटनाएं लगभग थमी रहीं। इन दो सालों में मंडल भर में सिर्फ तीन नवजात फेंके गए, जबकि बाकी तीन सालों में ये घटनाएं सर्वाधिक हुईं। हर साल औसतन 16 बच्चों को फेंका गया।

किसी को कीड़े नोच रहे थे तो कोई तप रहा था बुखार से
रिपोर्ट बताती है कि नवजात बच्चों को काफी बुरी हालत में पाया गया। झाड़ियों में फेंके गए किसी नवजात को कीड़े नोच रहे थे तो कूड़ेदान में मिला कोई मासूम बुखार से तप रहा था या भूख से बिलख रहा था। ज्यादातर की जिंदगी राह चलते लोगों की वजह से बची। पुलिस को सूचना दिए जाने के बाद ये बच्चे बाल कल्याण समिति के जरिए अस्पताल पहुंचे। लंबे इलाज के बाद उन्हें बचाया जा सका। जिन तीन बच्चों की जान नहीं बच पाई, उनका जिस्म चींटियों और कीड़ों ने बुरी तरह उधेड़ दिया था।

बेटे की चाह.. फेंके गए बच्चों में 16 बेटे और 37 बेटियां
नवजात शिशुओं को फेंके जाने की घटनाओं के पीछे समाजशास्त्री बेटे की चाह, तंगी, पारिवारिक दबाव और लोकलाज जैसे कारण गिनाते हैं। आंकड़े पुष्टि करते हैं कि बेटे की चाह इनमें सबसे प्रमुख कारण है। फेंके गए 53 बच्चों में 16 बेटे और 37 बेटियां हैं। बेटों की तुलना में बेटियां करीब 75 फीसदी हैं। रिकॉर्ड के मुताबिक बरेली में 12, बदायूं में 15, पीलीभीत में एक और शाहजहांपुर में नौ बेटियों को फेंक दिया गया। दो बेटों और एक बेटी के दम तोड़ने के बाद 14 बेटे और 36 बेटियां अभी जीवित हैं।
अपील, न पालें लेकिन मरने के लिए न फेंके
महिला कल्याण विभाग की उप निदेशक नीता अहिरवार कहती हैं कि गर्भ में भ्रूण की हत्या या जन्म के बाद नवजात शिशु को मरने के लिए फेंक देना अमानवीय और घृणित सामाजिक अपराध है। अगर कोई लोकलाज या दूसरे कारणों से बच्चे को जन्म देने के बाद पालने की स्थिति में न हो तो वह उसे किसी थाना, पुलिस चौकी, सरकारी या निजी अस्पताल, बाजार या धर्मस्थल के पास रख सकता है ताकि उसका जीवन सुरक्षित रहे। महिला कल्याण विभाग ऐसे बच्चों को जीवन सुरक्षा, पोषण, संरक्षण देता है। उन्होंने बताया कि अनाथाश्रम में पल रहे बच्चों को गोद लेने के लिए कई नि:संतान दंपती संपर्क करते हैं। कुछ बच्चों को गोद लिया भी जा चुका है।