आधुनिकता के इस दौर में धीरे-धीरे पुराने वाद्य यंत्र इतिहास के पन्नों में दबकर रह जा रहे हैं। अगर बात करें सारंगी जिसे राजस्थान में रोंणथा भी कहा जाता है वह किसी जमाने में राजा महाराजाओं के महलों की शान हुआ करती थी

आधुनिकता के इस दौर में धीरे-धीरे पुराने वाद्य यंत्र इतिहास के पन्नों में दबकर रह जा रहे हैं। अगर बात करें सारंगी जिसे राजस्थान में रोंणथा भी कहा जाता है वह किसी जमाने में राजा महाराजाओं के महलों की शान हुआ करती थी। लेकिन आज यह वाद्य यंत्र सारंगी लुप्त सी होती जा रही है। जिसकी बजह युवाओं का पाश्चात्य संगीत की तरफ रुझान होना भी लग रहा है। साथ ही इन कलाकारों के प्रति सरकार की बेरुखी और अनदेखी को भी इसकी मुख्य वजह हो सकती है। सारंगी बजाने की कला से जुड़े बहुत ही कम लोग हैं जो अब बचे हुए हैं। ऐसे में चम्बा मुख्यालय में राजस्थान के गंगानगर से आए सुरजीत राम अपनी सारंगी की धुनों से लोगों को मंत्रमुग्ध कर रहे हैं। अपनी आजीविका का साधन सारंगी को बनाएं सुजीत राम चम्बा के पर्यटन स्थलों में सैलानियों का मनोरंजन कर अपने परिवार का गुजर-बसर कर रहे हैं। सारंगी की धुन को सुन लोगों का मन शांत हो जाता है। सारंगी संगीत का एक वाद्य यंत्र है जो एक खोखली लकड़ी के लंबे डिब्बे जैसी होती है जिस पर चमड़े की परत चढ़ी होती है। इसे एक वो की मदद से बजाया जाता है जिसे गज कहते हैं। आजकल गर्मियों के मौसम में राजस्थान के गंगानगर से आये सुजीत राम सारंगी की धुनों से लोगों को खूब मंत्रमुग्ध कर रहे हैं।

राजस्थान के गंगानगर से आए सुजीत राम ने बताया की वह यहां पर चम्बा में गाने बजाने का काम करते हैं और यह काम उनकी पीढ़ी दर पीढ़ी से चला रहा है। उन्होंने कहा कि यह वाद्य यंत्र सारंगी होती और इसे रोंणथा भी कहा जाता है और यह उनका खानदानी काम है। उन्होंने कहा कि चम्बा के लोग सारंगी की धुन को बड़े ही चाव से सुनते हैं और इसी से उनका और उनके परिवार का गुजर-बसर भी चल रहा है। उन्होंने बताया कि वह चम्बा के साथ-साथ मनाली में भी सारंगी बजा कर लोगों का मनोरंजन करते हैं।