Surat: यहाँ बात हो रही है 2,500 करोड़ के राजहंस समूह (Rajhans Group) की नींव रखने वाले जयेश देसाई और उनकी सक्सेस की। जयेश भावनगर जिले के गारिहार नामक एक ऐसे गांव से आते हैं, जो कई जरुरी सुविधाओं से कई दशकों तक दूर रहा है। एक वैष्णव बानिया के घर जन्में और पले-बढ़े जयेश के पिता एक छोटी किराने की दुकान चलाते थे।
चार बेटियों के बाद चौथे बच्चे नंबर पर जयेश का जन्म हुआ। चार चार बहनों के साथ इतने बड़े परिवार में रहने वाले बेटे को आर्थिक तंगी से भी गुजरना पड़ा। अपना परिवार पलने के लिए उनके पिता एक किराने की दुकान छोटी सी दूकान चलाते थे।
उनके परिवार के सामने मामूली जरूरतों को भी पूरा करने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हुआ करते थे। जयेश को बचपन से ही हर कदम पर कठिनाइयों को झेलना पड़ा। जयेश (Jayesh desai) में एक खास बात यह थी की वे जो सोच लेते थे, उसे पूरा करने में जी जान लगा देते थे।
बचपन से ही कारों का क्रेज़
जयेश को बचपन से ही कारों का बेहद क्रेज़ था, लेकिन उन्हें पता था कि उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है की उनके परिवार में गाडी आये। सिर्फ गाड़ियों को देखकर ही संतोष करना पड़ेगा। उन दिनों कई परिवार गांव से सूरत चले गए और अच्छा खासा पैसा बनाया। जब वे कारों में छुट्टी के दौरान गांव जाते, तो जयेश उन्हें देख बहुत खुश होते और उनसे प्रेरणा भी लेते।
जयेश ने एक अख़बार को बताया की समय रहते हमारे समुदाय के अधिकतर लोगों का पलायन भी मुंबई की ओर होना शुरू हो गया। अपनी बड़ी बहन भावना की सहायता से इन्होंने भी मुंबई में अपना भाग्य आज़माया। उन्होंने मुंबई में नगदेव के नारायण ध्रुव स्ट्रीट पर 300 रुपये की मासिक सैलरी पर एक बॉल-बियरिंग की दुकान में काम करना शुरू किया।
उन्हें फर्श पर सोना पढता
वहां पर 30 रुपये हर महीने की रेट पर भोजन और 6-7 रूममेट्स के साथ कांदिवली में एक छोटे से कमरे में रहना शुरू किया। वहां उन्हें फर्श पर सोना पढता था। जैसे तैसे 6 महीने बिताने के बाद जयेश को फिर से गांव जाने का मन करने लगा और अपने पिता को खत लिखकर इन्होंने वापस घर आने की मिनन्तें की।
जयेश साल 1989 में वापस अपने गांव आकर पिता की दुकान पर ही काम करने लगे। लगभग 3 साल तक तेल और साबुन बेचते-बेचते जयेश को इस बात का अंदाज़ा हो गया था कि किराये की दूकान चलाकर महंगी गाड़ियों की सवारी करने का उनका सपना अधूरा रह जायेगा।
दोस्त के सही मार्ग दिखाया
वे समझ चुके थे की अब कुछ नया और बड़ा करना पड़ेगा। फिर इनके बचपन के एक दोस्त उनके गांव आये हुए थे। वो सूरत में हीरे की डीलिंग और ब्रोकर का काम करके बहुत पैसे बनाते थे। उन्होंने सूरत जाकर काम करने की समझाइस दी।
फिर जयेश बिना सोचे समझे 500 रुपये लेकर सूरत की तरफ निकल पड़े। सूरत पहुँचने तक उनकी जेब में 410 रुपये ही शेष बचे रह गए। दोस्त के बताये हीरा व्यापारी के यहाँ कुछ महीनों काम करते करते उन्हें एक आइडिया (Business Idea) आया। उन्होंने एक दोस्त की मदत से वचहार रोड पर एक दुकान किराए पर लेते हुए तेल बेचने का बिजनेस (Oil Business) शुरू किया।
तेल बेचकर अच्छा मुनाफा बनाया
पावाडी के पास धस्सा में एक तेल मिल से तय समय के लिए उधार तेल से दुकान शुरू की। बाद में जब जयेश के पिता को इस काम की जानकारी हुई, तो वे खुद उन्हें तेल भेजते और जयेश उसे बेचकर वापस पैसे अपने पिता को भेज देते। यह काम अच्छा चला और पहले ही महीने 10,000 रुपये का मुनाफा कमाया।
खुद का ब्रांड राजहंस तेल (Rajhans Oil) शुरू हुआ
इसी आइडिया पर काम करते हुए जयेश ने पहले ही साल 5 लाख का मुनाफा बनाया। इसकी बदौलत इन्होंने कामरेज में एक छोटे से शेड में दो टैंकों के साथ अपने खुद के ब्रांड राजहंस तेल (Rajhans Oil Brand) की नीव रखी। जयेश का कहना है की शुरुआत में हम फ़िल्टर्ड मूंगफली और कपास के तेल का उनयोग करते थे। फिर धीरे धीरे इन्होने गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र में अपना व्यापार बढ़ाया और टॉप पांच कंपनियों में शामिल हो गये।
इस सफलता को हासिल करने के बाद अन्न क्षेत्र में भी हाँथ आज़माने का सोचा और साल 1999 में एक कपड़ा मिल का अधिग्रहण किया। इस तरह धीरे धीरे आगे बढ़ते हुए जयेश देश के एक फेमस बिजनेसमेन के रूप में सामने आये। वे शुद्ध शाकाहारी परिवार से आते हैं। इतनी तरक्की करने के बाद उन्होंने शिरडी, वैष्णो देवी और तिरुपति में तीन शुद्ध 5 स्टार शाकाहारी रेस्तरां भी शुरू किया।
हाल ही में इन्होंने 200 करोड़ के निवेश से कैडबरी और नेस्ले जैसी अंतराष्ट्रीय कंपनी को टक्कर देने के लिए चॉकलेट के व्यवसाय (Chocolate Business) में भी हाँथ आज़माया है। आज जयेश के राजहंस समूह का साल का टर्नओवर (Rajhans Group Turnover) 3000 करोड़ के ऊपर है। इतनी तरक्की करने के लिए पक्के इरादे और लगन का होना बहुत जरुरी है। सफलता खुद आपके कदम चूमेगी।