सिंधु जल संधि विवाद पर भारत-पाकिस्तान के बीच आज फिर होगी बैठक

नई दिल्ली/इस्लामाबाद. भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल संधि (Indus Water Treaty) पर सोमवार को 118वीं द्विपक्षीय बैठक होने जा रही है. इसके लिए सोमवार को वाघा बार्डर के जरिए पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की ओर से नियुक्त पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल नई दिल्ली पहुंचने वाला है. इस बैठक के दौरान दोनों पक्षों में सिंधु जल समझौते के तहत प्रमुख परियोजनाओं पर चर्चा होगी. इसमें हाइड्रोपावर यानी पनबिजली परियोजनाओं (Hydropower Projects) को भी शामिल किया गया है.

न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, दोनों पक्ष बाढ़ की अग्रिम सूचना और सिंधु जल के स्थायी आयोग (PCIW) की सालाना रिपोर्ट पर भी चर्चा करेंगे. भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौते के तहत 1,000 मेगावाट पकाल दुल (Pakal Dul), भारत द्वारा बनाई जा रही 48 मेगावाट लोअर कालनाई (Lower Kalnai) और 624 मेगावाट किरु (Kiru) हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पर भी चर्चा हो सकती है.

बता दें कि पकाल दुल सिंधु जल संधि के आर्टिकल 9 के तहत आता है. कालनाई और किरु परियोजनाएं भार द्वारा बनाई गई हैं. पाकिस्तान के सिंधु जल आयुक्त सैयद मेहर अली शाह ने कहा, ‘पीसीआईडब्ल्यू स्तर पर यह 118वीं द्विपक्षीय बैठक होगी. इससे पहले, दोनों देशों ने 2-4 मार्च, 2022 को इस्लामाबाद में तीन दिवसीय वार्ता की थी.

सिंधु नदी जल संधि 19 सितंबर 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक ने मध्यस्थता से हुई थी. इस समझौते को दुनिया में अक्सर शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व की संभावनाओं के उदाहरण के रूप में पेश किया जाता है. हालांकि, यह बात भी किसी से छिपी नहीं है कि सिंधु जल समझौते को लेकर भारत और पाकिस्तान के संबंध कई बार खराब भी हुए हैं.
दोनों देशों में क्या है विवाद?
1947 में आजादी मिलने के बाद से ही दोनों देशों में पानी को लेकर विवाद शुरू हो गया. दरअसल, सिंधु जल प्रणाली जिसमें सिंधु, झेलम, चिनाब,रावी, ब्यास और सतलज नदियां शामिल हैं. ये भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में बहती हैं. पाकिस्तान का आरोप है कि भारत इन नदियों पर बांध बनाकर पानी का दोहन करता है और उसके इलाके में पानी कम आने के कारण सूखे के हालात रहते हैं.

विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुआ था सिंधु जल समझौता
पानी को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद जब ज्यादा बढ़ गया, तब 1949 में अमेरिकी विशेषज्ञ और टेनसी वैली अथॉरिटी के पूर्व प्रमुख डेविड लिलियंथल ने इसे तकनीकी रूप से हल करने का सुझाव दिया। उनके राय देने दे बाद इस विवाद को हल करने के लिए सितंबर 1951 में विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष यूजीन रॉबर्ट ब्लेक ने मध्यस्थता करने की बात स्वीकार कर ली। जिसके बाद 19 सितंबर, 1960 को भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु जल समझौता हुआ.

जवाहरलाल नेहरू और अयूब खान ने किये हस्ताक्षर
इस संधि पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अयूब खान ने दस्तखत किए थे. 12 जनवरी 1961 से संधि की शर्तें लागू कर दी गईं थीं. संधि के तहत 6 नदियों के पानी का बंटवारा तय हुआ, जो भारत से पाकिस्तान जाती हैं.

6 नदियों के पानी का बंटवारा
समझौते में स्पष्ट किया गया है कि पूर्वी क्षेत्र की तीनों नदियां- रावी, ब्यास और सतलज पर भारत का एकछत्र अधिकार है. वहीं, पश्चिमी क्षेत्र की नदियों- सिंधु, चिनाब और झेलम का कुछ पानी पाकिस्तान को भी देने का समझौता हुआ. तीन नदियों के कुल 16.80 करोड़ एकड़ फीट पानी में से भारत के हिस्से 3.30 एकड़ पानी दिया गया है, जो कुल पानी की मात्रा का करीब-करीब 20 प्रतिशत है. हालांकि, भारत अपने हिस्से का 93-94 प्रतिशत पानी ही इस्तेमाल करता रहा है.