रूस और यूक्रेन युद्ध (Russia-Ukraine war) के बीच ही जब भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल (NSA Ajit Doval) जब मॉस्को (Moscow) पहुंचे तो यूक्रेन को मिर्ची लग गई। यूक्रेनियन विदेश मंत्री ने सभी सीमाओं को पार करते हुए ये बयान दे डाला कि जो तेल भारत खरीद रहा है, उसमें यूक्रेन के लोगों का खून मिला है।
कीव: यूक्रेन के विदेश मंत्री दिमित्रो कुलेबा ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल के रूस दौरे से चिढ़कर बड़ा बयान दे डाला है। उन्होंने कहा है कि भारत जो तेल रूस से खरीद रहा है, उसमें यूक्रेन के लोगों का खून मिला है। यूक्रेनी विदेश मंत्री जहां एक तरफ भारत को लेकर खुलेआम नफरत का इजहार कर रहे थे तो पाकिस्तान के लिए उनका प्रेम सामने आ रहा था। उन्होंने कहा कि उन्हें संकट के इस दौर में पाकिस्तान का साथ मिल रहा है। कुलेबा की मानें तो पाक के साथ रिश्तों में काफी संभावनाएं हैं और इन्हें तलाशा जाना चाहिए। कुलेबा शायद सही कह रहे हैं। इन्हीं संंभावनाओं की वजह से ही तो एशिया में यूक्रेन ने अपने पैर जमाए हैं। आज भारत पर इतना बड़ा आरोप लगाने वाले यूक्रेन को एक देश का दर्जा सबसे पहले नई दिल्ली ने ही दिया था। जानिए यूक्रेन और भारत के बीच संबंधों का वही इतिहास।
भारत ने दिया सहारा
फरवरी में जब रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो इस देश ने बड़ी उम्मीदों के साथ भारत की तरफ देखा। लेकिन वो ये भूल गए कि कैसे उनके देश ने पाकिस्तान के लिए हर बार भारत की पीठ में छुरा भोंका है। यूक्रेन के दिल में भारत के लिए नफरत आज की नहीं बल्कि ढाई दशक पुरानी है। भारत और यूक्रेन के रिश्तों का सिलसिला सन् 1990 के दशक में शुरू हुआ है।
यूक्रेन जिस समय सोवियत संघ का हिस्सा था, भारत के संबंध काफी अच्छे थे। जब सोवियत संघ टूटा तो भारत वो दुनिया का पहला देश बना जिसने यूक्रेन को मान्यता दी। दिसंबर 1991 में भारत सरकार ने यूक्रेन को एक संप्रभु देश का दर्जा दिया था। जनवरी 1992 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई। साल 1993 में यूक्रेन ने नई दिल्ली में उच्चायोग खोला जोकि एशिया में उसका पहला हाईकमीशन था। दोनों देशों के बीच 17 द्विपक्षीय संबंध भी साइन हुए और यूक्रेन, भारत का ट्रेड पार्टनर बन गया।
कैसे बदला यूक्रेन ने रंग
साल 1998 में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो यूक्रेन ने यू-टर्न ले लिया। यहां से उसने भारत को धोखा देना शुरू कर दिया था। 1998 में ऑपरेशन शक्ति के तहत भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट किए थे। यूक्रेन ने दुनिया के 25 देशों के साथ मिलकर भारत के इस कदम का विरोध किया। वो सिर्फ यही नहीं रुका बल्कि बल्कि उन देशों का साझीदार बन गया जिसने भारत पर प्रतिबंध लगाए। जबकि भारत सरकार ये साफ कर चुकी थी कि ये परीक्षण उसने अपनी सुरक्षा के लिए उठाया है। यूक्रेन ने संयुक्त राष्ट्रसंघ (UN) के उस प्रस्ताव का समर्थन भी किया जिसमें भारत को और ज्यादा परमाणु परीक्षण करने से रोकने की बात कही गई थी। इस प्रस्ताव में भारत से NPT और CTBT संधि को साइन करने के लिए कहा गया था।
पाकिस्तान का दोस्त
भारत अगर हथियारों के लिए रूस पर निर्भर है तो पाकिस्तान, यूक्रेन पर। यूक्रेन और पाकिस्तान के बीच हथियारों की डील का एक लंबा इतिहास है। यूक्रेन सबसे ज्यादा हथियार पाकिस्तान को सप्लाई करता है। दोनों देशों के बीच हथियारों के लिए 1.6 अरब डॉलर की डील साइन हुई है। पाकिस्तान की सेना जिस टी-80 टैंक का प्रयोग करती है, वो यूक्रेन में ही बना है। साल 2017 में दोनों देशों ने वो द्विपक्षीय समझौता साइन किया था जिसमें टी-80 टैंक के अपग्रेडेड वर्जन को खरीदे जाने का जिक्र था।
आतंकवाद पर हमेशा चुप
भारत की तरफ से कई बार ये बात सामने लाई गई कि पाकिस्तान किस तरह से आतंकवाद को बढ़ावा देत रहा है, लेकिन यूक्रेन की तरफ से पाक को 320 टी-80 टैंकों का निर्यात बंद नहीं हुआ। सिर्फ इतना ही नहीं कश्मीर में पाक समर्थित आतंकवाद की बात हो या फिर पाक में आतंकियों को मिलने वाली मदद का जिक्र, यूक्रेन ने कभी भी भारत का साथ नहीं दिया। यूक्रेन की इसी धोखा देने की आदत ने भारत को उसका साथ नहीं देने दिया। यूक्रेन युद्ध के बीच ही यूएन में जब रूस के खिलाफ वोटिंग हुई तो भारतीय अधिकारियों ने नदारद रहना बेहतर समझा।