ज्ञान का खजाना है भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, 1888 में बनकर तैयार हुआ था भवन, जानें इतिहास

1886 में स्थल पर निर्माण शुरू हुआ और लेडी डफरिन ने 23 जुलाई 1888 को भवन में प्रवेश किया। इसके लिए चाबा से बिजली की व्यवस्था की गई। आजादी के बाद यह राष्ट्रपति भवन बना फिर 1965 में इसे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के सपुर्द कर दिया। पेश है शिमला से नरेंद्र एस. कंवर की रिपोर्ट…

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला।

छह दशकों तक गवर्नर जनरल और फिर भारत के वायसराय शिमला में ग्रीष्मकालीन प्रवास के दौरान वायसराय भवन का उपयोग करते थे। लार्ड लिटन ने 1876-80 आवास बनाने के लिए आब्जरवेटरी हिल को चुना। वायसराय निवास के प्रारंभिक नक्शे रायल इंजीनियर्स के कैप्टन एचएच कोल ने तैयार किए। लार्ड डफरिन (1884-88) ने इस विषय में विशेष रुचि ली। हेनरी इरविन को वास्तुकार और निर्माण कार्य का मुख्य अधीक्षक नियुक्त किया गया। 1886 में स्थल पर निर्माण शुरू हुआ और लेडी डफरिन ने 23 जुलाई 1888 को भवन में प्रवेश किया। इसके लिए चाबा से बिजली की व्यवस्था की गई। आजादी के बाद यह राष्ट्रपति भवन बना फिर 1965 में इसे भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान के सपुर्द कर दिया। शिमला से नरेंद्र एस. कंवर की रिपोर्ट…

संस्थान की स्थापना

1947 में आजादी मिलने के बाद वायसराय भवन और इसकी संपदा भारत के राष्ट्रपति के अधिकार क्षेत्र में आई और इसे राष्ट्रपति निवास नाम दिया गया। दार्शनिक और राजेनता प्रो. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति का पदभार संभाला। प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की परिकल्पना के अनुसार 6 अक्तूबर 1964 को रजिस्ट्रेशन और सोसायटी एक्ट-1860 के तहत भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान सोसायटी का पंजीकरण हुआ। 54 दिनों बाद प्रो. राधाकृष्णन ने राष्ट्रपति निवास में इस संस्थान का विधिवत उद्घाटन किया। प्रो. निहार रंजन रे संस्थान के पहले निदेशक बने थे। भारत के दूसरे उपराष्ट्रपति व संस्थान की सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. जाकिर हुसैन बने।

14 जून 1945 को हुआ सम्मेलन :  भारत को पूर्ण स्वराज के अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर करने के लिए इसी भवन में रूपरेखा तैयार की गई थी। 14 जून 1945 को वायसराय लार्ड वेवल ने एक रेडियो प्रसारण में शिमला सम्मेलन की घोषणा की। 25 जून से 14 जुलाई 1945 तक वायसरीगल लॉज में सम्मेलन हुआ। सम्मेलन में मौलाना आजाद, पंडित जवाहर लाल नेहरू, सी. राजगोपालाचारी, मोहम्मद अली जिन्ना शामिल हुए थे। महात्मा गांधी शिमला में थे लेकिन वह इसमें शामिल नहीं हुए थे। सम्मेलन असफल रहा और भारत के विभाजन को रोकने का अंतिम मौका हाथ से निकल गया।

सत्ता हस्तांतरण को मार्च 1946 में कैबिनेट मिशन आया शिमला 

मार्च 1946 में भारतीयों को अंतिम रूप से सत्ता हस्तांतरित करने को लेकर बात करने और इसकी आगामी प्रक्रिया तय करने के लिए ब्रिटिश कैबिनेट को भारत भेजा गया। 5 से 12 मई 1946 के बीच कांग्रेस, मुस्लिम लीग और अंग्रेजी शासकों के बीच इसी भवन में त्रिपक्षीय कांफ्रेंस हुई। कांग्रेस और मुस्लिम लीग किसी मुद्दे पर सहमत नहीं हुए जिससे कांफ्रेंस भी असफल रही। इसमें देश का विभाजन लगभग तय हो गया।

प्रो. नागेश्वर हैं संस्थान के निदेशक

प्रो. नागेश्वर राव को मई 2022 में उच्च अध्ययन संस्थान शिमला के निदेशक का प्रभार सौंपा गया। प्रो. राव इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय के कुलपति के साथ निदेशक उच्च अध्ययन संस्थान की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रहे हैं। निदेशक को वित्तीय और प्रशासनिक मामलों में सचिव सहायता करते हैं। संस्थान मुख्य रूप से भारत सरकार के शिक्षा मंत्रालय से वित्त पोषित है। प्रकाशनों की बिक्री और यहां घूमने आने वाले पर्यटकों के प्रवेश शुल्क से भी संस्थान को आय होती है।

शासी निकाय 

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान को एक सोसायटी और एक शासी निकाय संचालित करता है। इन निकायों में भारत सरकार से नामित सभी क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं। वर्तमान में प्रो. शशिप्रभा कुमार संस्थान की सोसायटी के सभापति और शासी निकाय के अध्यक्ष हैं। संस्थान की शासी निकाय को वित्तीय सलाह देने के लिए एक वित्त समिति है। वित्त समिति में मानव संसाधन विकास; शिक्षा मंत्रालय का सदस्य हैं।

अंतरराष्ट्रीय स्तर का है शोध संस्थान, देश-विदेश के अध्येता यहां करते हैं शोध

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का प्रमुख गेट।
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का प्रमुख गेट।
 भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान एक अंतरराष्ट्रीय स्तर का शोध संस्थान है। इसमें मानविकी, सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञान में अकादमिक शोध होते हैं। देश-विदेश से विद्वान शोध कार्य करने के लिए यहां आते हैं। देश का यह एक मात्र आवासीय सुविधा और फेलोशिप देने वाला शोध संस्थान है। ज्ञान पीठ पुरस्कार विजेता भीष्म साहनी, निर्मल वर्मा, कृष्णा सोबती, प्रो. गुरुदयाल सिंह जैसे शिक्षाविद् यहां के अध्येता रह चुके हैं। संस्थान में तीन तरह के अध्येताओं को शोध के लिए प्रवेश दिया जाता है। सामान्य अध्येता, नेशनल फेलो, टैगोर अध्येता। नेशनल फेलो अलग-अलग क्षेत्र से मनोनीत होते हैं। टैगोर अध्येता कला एवं संस्कृति क्षेत्र में शोध करते हैं। सामान्य अध्येता संस्थान के आवेदन मांगे जाने पर अपनी पसंद के विषय और शोध प्रस्ताव के साथ आवेदन करते हैं।

आजादी से पहले अंग्रेजी हुकूमत के वायसराय निवास रहा संस्थान का यह भवन 1947 में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद 1947 में राष्ट्रपति निवास बना। 20 अक्तूबर 1965 तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान को देकर इसका उद्घाटन किया। पोस्ट डाक्टरेट स्तर के शोध और फेलोशिप देने वाले इस संस्थान के पहले निदेशक प्रो. निहार रंजन रे ने ईस्ट वेस्ट सेंटर हवाई, ऑल सोल कॉलेज ऑक्सफोर्ड जैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर के शोध संस्थानों का दौरा करने के बाद संस्थान की रूपरेखा तैयार की थी। संस्थान में मौजूद आवासीय सुविधा को देखते हुए लगभग 45 अध्येताओं को ही प्रवेश दिया जा सकता है। जो दो साल तक वर्ष में नौ माह यहीं रह कर यहां के पुस्तकालय, सुविधाओं का उपयोग कर अपने शोध कार्यों को पूरा करते हैं। संस्थान में साहित्य, विधि, सामाजिक विज्ञान, दर्शन शास्त्र, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, अंतरराष्ट्रीय संबंध जैसे विषयों पर पोस्ट डॉक्टरेट स्तर के शोध, अध्ययन होते हैं।

डॉ. राधाकृष्णन की संस्थान को लेकर थी यह सोच..

भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन ।
भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन ।
वायसरीगल लॉज जो आजादी के बाद राष्ट्रपति निवास बन चुका था, उसे 1965 में भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. एस राधाकृष्णन ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान को सुपुर्द कर दिया। वो एक ऐसा आवासीय केंद्र बनाना चाहते थे, जहां आधारभूत विषयों और जीवन की समस्याओं पर मुक्त और सृजनात्मक शोध किया जा सके। डॉ. राधाकृष्णन गहरे मानवीय महत्व वाले क्षेत्रों में सृजनात्मक विचार को बढ़ावा देना चाहते थे और अकादमिक शोध के लिए उपयुक्त माहौल देना चाहते थे।

अंतर विश्वविद्यालय केंद्र
मानविकी एवं सामाजिक विज्ञान में शोध को बढ़ावा देने के उद्देश्य से संस्थान में अंतर विश्वविद्यालय केंद्र भी है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और संस्थान के बीच हस्ताक्षरित संगम ज्ञापन के अनुरूप यहां अंतर विश्वविद्यालय केन्द्र (आईयूसी) संचालित किया जा रहा है। देश के विश्वविद्यालय तथा महाविद्यालयों में कार्यरत अध्यापकों को तीन सालों में तीन बार एक-एक महीने की अवधि के लिए यहां आ कर शोध कार्य करने के लिए भेजा जाता है। लगभग 20 सह अध्येता अपना शोधकार्य कर सकते हैं।

पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है संस्थान

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला।
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान शिमला।
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान; वायसरीगल लॉज शिमला की सांस्कृतिक विरासत है। संस्थान की धरोहर ईमारत का दीदार करने, यहां के इतिहास और आजादी से पहले के ऐतिहासिक घटनाक्रमों की जानकारी लेने के लिए सैलानी बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। पहाड़ों की रानी शिमला पहुंचने वाले अधिकांश सैलानी संस्थान का दीदार किए बिना अपने गंतव्यों को वापस नहीं लौटते हैं।

परिसर में उपलब्ध सुविधाएं
भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान में अध्येताओं के लिए परिसर में स्थित छोटे बंगलों में निशुल्क आवास सुविधा है। इन आवासों को गर्म रखने का प्रावधान है। संस्थान की ईपीएबीएक्स से दूरभाष सुविधा है। अध्येताओं को एक अध्ययन जो उन्हें एक या दो अन्य अध्येताओं के साथ साझा करना होता है को लेखन आदि सामग्री दी जाती है।

संस्थान का पुस्तकालय…
संस्थान का पुस्तकालय देश के सबसे बेहतरीन पुस्तकालयों में से एक है। इसे आरसी मजूमदार, अब्दुल मजीद खान, एचसी रे चौधरी, अजीत घोष, तेज बहादुर सप्रू जैसे प्रख्यात विद्वानों के निजी संग्रह को प्राप्त कर समृद्ध बनाया है। पुस्तकालय में पुस्तकों, पत्रिकाओं, माइक्रो फिल्मों और अन्य दस्तावेजों के 1.50 लाख से अधिक संस्करणों का संग्रह है। दर्शन शास्त्र, धर्म, ललित कला, सामाजिक, भाषा विज्ञान, मनोविज्ञान, भाषा विज्ञान समेत कई पुस्तकें यहां उपलब्ध हैं।

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण है संस्थान 
संस्थान परिसर में बहुत सुंदर और बड़ा उद्यान है, जिसमें कई प्रकार के फूल, पौधे और पेड़ हैं। यह उद्यान शायद दुनिया के सबसे ऊंचाई वाले भूदृश्य में स्थित उद्यानों में से एक है। उद्यान संस्थान के वर्षा जल संचयन की खास व्यवस्था से ही हरा-भरा रहता है। बारिश के पानी का संग्रहण करने को लॉन के नीचे बने टैंक के पानी से बागीचों की सिंचाई होती है। उद्यान में तीन नर्सरियां हैं जिनमें कुछ में दुर्लभ हिमालयी पौधे लगाए गए हैं।

औषधालय
संस्थान में रहने वाले अध्येताओं और कर्मचारियों के लिए परिसर में औषधालय और आवासी चिकित्सा अधिकारी फार्मासिस्ट सेवारत है।

संस्थान के प्रकाशन 
स्थापना के बाद से अब तक संस्थान ने 500 से भी अधिक पुस्तकों का प्रकाशन या सह प्रकाशन किया है। पुस्तकें अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध हैं। इन पुस्तकों की ई-बुक्स किंडल बुक स्टोर पर भी है।

खेल परिसर 
संस्थान में मनोरंजन और अध्येताओं को शारीरिक एवं मानसिक तौर पर स्वस्थ रखने के लिए खेल परिसर बना है, जहां बिलियर्ड्स, बैडमिंटन, टेबल टेनिस और कैरम जैसे खेलों की सुविधा है।  ब्रिटिश राज के समय खेल परिसर में स्टिकी टेनिस, लॉन टेनिस और स्क्वैश के संयोजन से बना एक दुर्लभ खेल खेला जाता था। दुनिया में स्टिकी टेनिस के केवल तीन वर्किंग कोर्ट हैं, उनमें से दो इंग्लैंड में और एक इस संस्थान में है।

एनकेएन कैंपस नेटवर्क
संस्थान के अध्येता, सह अध्येता, अधिकारी, कर्मचारी और आगंतुक संस्थान में कहीं पर भी वेब तक पहुंचने और संसाधन संबंधी सूचनाओं के आदान-प्रदान का लाभ ले सकते हैं। राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क के माध्यम से उपलब्ध करवाए गए ब्रॉडबैंड कनेक्शन से 100 से अधिक पीसी, दो हाई एंड सर्वर इंटरनेट से जुड़े हैं। संस्थान की शासी निकाय को वित्तीय सलाह देने के लिए एक वित्त समिति है। वित्त समिति में मानव संसाधन विकास; शिक्षा मंत्रालय का सदस्य हैं।

एडवांस्ड स्टडी में किसी भी भाषा में किया जा सकता है शोध कार्य

प्रो. नागेश्वर राव, कार्यवाहक निदेशक

भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला (एडवांस्ड स्टडी) मानवीय समस्याओं तथा विचारों के स्वतंत्र और रचनात्मक अन्वेषण के लिए देश का एक प्रतिष्ठित आवासीय शोध संस्थान है, जहां गहन मानवीय महत्व वाले क्षेत्रों में रचनात्मक सोच को बढ़ावा दिया जाता है। अकादमिक शोध के लिए देश-विदेश के विद्वानों को उपयुक्त वातावरण प्रदान किया जाता है। इस उच्च स्तरीय शोध संस्थान में मानविकी, भारतीय संस्कृति, तुलनात्मक धर्म, सामाजिक विज्ञान, प्राकृतिक विज्ञान के विषयों में उच्च शोध कार्य किए जाते हैं।  शोध-विषयों के चयन में, राष्ट्रीय महत्व, राष्ट्रीय एकता से संबद्ध विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाता है। अगर नई शिक्षा नीति के परिप्रेक्ष्य में संस्थान का अवलोकन किया जाए तो यह उल्लेखनीय है कि यहां संविधान की 8वीं अनुसूची में सम्मिलित देश की किसी भाषा में शोधकार्य किया जा सकता है। अगर अध्येताओं की बात की जाए तो यहां मुख्यत: राष्ट्रीय अध्येता, अध्येता तथा टैगोर अध्येता छह माह से दो साल तक अपनी विभिन्न परियोजनाओं पर शोधकार्य करते हैं। अपनी इस अध्येतावृति अवधि के दौरान एक तो उन्हें अपने अकादमिक समुदाय के समक्ष साप्ताहिक संगोष्ठियां प्रस्तुत करनी होती हैं, दूसरे उन्हें संस्थान में आयोजित राष्ट्रीय महत्व की सम सामयिक-विषयक संगोष्ठियों, बैठकों, कार्यशालाओं, गोलमेज सम्मेलनों आदि में सहभागिता करनी होती है।

शायद यही संस्थान के संस्थापक देश के द्वितीय राष्ट्रपति तथा महान दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की परिकल्पना थी कि एक छत के नीचे जब  विभिन्न विषयों से जुडे़ श्रेष्ठ विद्वान मानवीय महत्व के विषयों तथा राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर परस्पर समीक्षात्मक विमर्श चर्चा करेंगे तो शोध का वास्तविक रूप सामने आएगा जो न केवल शिक्षा के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा अपितु समाज और राष्ट्र के लिए भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में हितकर होगा। अध्येताओं के अतिरिक्त संस्थान में लघु अवधि के लिए विजिटिंग प्रोफेसर, विजिटिंग स्कॉलर तथा विजिटिंग फैलो भी आमंत्रित किए जाते हैं जो अपनी रूचि से संबंधित विषयों पर संस्थान  के अकादमिक समुदाय के समक्ष व्याख्यान प्रस्तुत करते।  शोध परियोजनाओं पर आधारित अध्येताओं की पांडुलियों तथा संगोष्ठियों में प्रस्तुत शोध पत्रों पर आधारित 550 से अधिक पुस्तकों के प्रकाशन का श्रेय संस्थान को प्राप्त है। -प्रो. नागेश्वर राव(लेखक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में कार्यवाहक निदेशक हैं)