Indian Railways : दशकों पहले ऐसा होता था ट्रेन का एसी कोच, बर्फ की सिल्लियों से किया जाता था ठंडा

Indian Railways History : एसी ना होने की स्थिति में उस समय बर्फ से ट्रेन को ठंडा रखा जाता था। हालांकि, यह काफी चुनौतीपूर्ण था। इस काम के लिए रेलवे में अलग से स्टाफ रखा गया था। यह स्टाफ ट्रेन में बर्फ चढ़ाने का काम करता था। कोच को ठंडा रखने के लिए उसके कूपे में बर्फ की सिल्लियां रखवायी जाती थीं।

First AC train in india
फ्रंटियर मेल थी भारत की पहली एसी ट्रेन
नई दिल्ली : चाहे आम आदमी हो या कोई वीआईपी, सब अपने बजट के हिसाब से भारतीय रेलवे (Indian Railways) में अपने पसंद की सुविधाएं प्राप्त कर सकते हैं। आप यहां फर्स्ट एसी (First AC) में भी सफर कर सकते हैं और और काफी कम दाम में सेंकड क्लास डिब्बे में भी यात्रा कर सकते हैं। लेकिन क्या आपको पता है भारत में एसी ट्रेनें कब से शुरू हुईं? भारत में ट्रेन की शुरुआत साल 1853 में हुई थी। वहीं, पहली एसी ट्रेन की शुरुआत भारत में साल 1934 में शुरू हुई थी। उस समय बॉम्बे से पेशावर तक यह ट्रेन चलती थी, जिसका नाम फ्रंटियर मेल था। यह ट्रेन 72 घंटे में अपना सफर पूरा करती थी। उस समय भारत में एसी नहीं आए थे। ऐसे में ट्रेन को ठंडा रखने के लिए बर्फ की सिल्लियों (Ice Ingots) का उपयोग होता था।

बर्फ चढ़ाने के लिए होता था अलग से स्टाफ
एसी ना होने की स्थिति में उस समय बर्फ से ट्रेन को ठंडा रखा जाता था। हालांकि, यह काफी चुनौतीपूर्ण था। इस काम के लिए रेलवे में अलग से स्टाफ रखा गया था। यह स्टाफ ट्रेन में बर्फ चढ़ाने का काम करता था। कोच को ठंडा रखने के लिए उसके कूपे में बर्फ की सिल्लियां रखवायी जाती थीं। इसके अलावा खिड़कियों पर खस की टाटी बांधी होती थी। इसे समय-समय पर भिगोया जाता था। इससे ना सिर्फ डिब्बे में ठंडी-ठंडी हवा आती, बल्कि यात्रियों को खस की भीनी-भीनी खुशबू भी मिलती रहती।

AC Train

होते थे आइस चैंबर
रेलवे के रिटायर्ड मेकेनिकल इंजीनियर और रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (रोलिंग स्टॉक) राजेश अग्रवाल के अनुसार, कूपों में एक आइस चैंबर बनाया जाता था। इसमें बर्फ की सिल्लियां डाली जाती थी। इसके बाद पास में एक पंखा इस तरह से लगाया जाता था कि बर्फ की ढंडी हवा पूरे कूपे में फैलती रहे। इन डिब्बों में आमतौर पर अंग्रेज ही सफर करते थे।
स्टेशन के पास ही होता था बर्फघर
उस दौर में अंग्रेजों ने ट्रंक रूट पर या महत्वपूर्ण नामिनेटेड रेलवे स्टेशनों के पास बर्फघर बना रखा था। वहां टावरनुमा बने बर्फघर में नीचे आइस प्लांट लगा होता था। उसके उपर बड़ी सी टंकी बनी होती थी। इससे पानी लेकर बर्फ की सिल्लियां बनायी जाती थीं। वहां बने बर्फ की सप्लायी ना सिर्फ ट्रेनों में तो होती ही थी, बल्कि अंग्रेज अफसरों के दफ्तरों में भी इसे भेजा जाता था। जिससे भारत की गर्मी में भी वे आराम से रह सकें।

बर्फ पिघलने पर बर्फघर से होती थी सप्लाई
फर्स्ट क्लास के डिब्बे वाली इन ट्रेनों के गार्ड बर्फघर की पूरी जानकारी रखते थे। जिस स्टेशन पर बर्फघर होता, वे वहां ट्रेन रोकते और बर्फ की सिल्लियां लोड करवाते। गार्ड उस स्टेशन के पास आने से पहले के ही स्टेशन से बेतार संदेश भेज कर आगाह कर देते थे। इससे ट्रेन पहुंचते ही बर्फ की सिल्लियां लोड हो जाती थीं।