आइंस्टीन के अधूरे सपने को पूरा करने में जुटा भारतीय वैज्ञानिक

जुलाई 2012 की बात है इलाहाबाद के एक सुदूर ग्रामीण अंचल झूंसी में स्थित एक अल्पज्ञात अनुसंधान संस्थान ‘हरिश्चंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूट’ में काम कर रहे एक प्रोफेसर कोबैंक से फोन आया कि उनके खाते में तीस लाख डॉलर (लगभग 15करोड़ रुपए) आ गए हैं. आखिर, खाते में इतने रुपए कहांं  से आएं? इलाहाबाद के एक अनजान-से रिसर्च इंस्टीट्यूट का एक मामूली प्रोफेसर भला इतने रुपए कैसे कमा सकता है? करीब डेढ़ लाख रुपए प्रति माह के अपनी  तत्कालीन तनख्वाह के जरिए उस प्रोफेसर को इतने रुपए कमाने में तकरीबन 83 साल लग जाते!

हुआ यह था कि इलाहाबाद के उन प्रोफेसर साहब को नोबेल पुरस्कार से भी तीन गुना बड़े एक नए पुरस्कार ‘ब्रेक थ्रू-प्राइज़ इन फंडामेंटल फिजिक्स’ से सम्मानित किया गया था, जिसकी बदौलत वह रातों-रात करोड़पति बन गए. क्या आप जानते हैं कि वह प्रोफेसर कौन हैं औरउन्होने मूलभूत भौतिकी (फंडामेंटल फिजिक्स) के क्षेत्र में ऐसा क्या काम किया था कि उन्हें पुरस्कार स्वरूप इतनी बड़ी रकम मिली?

सच कहूं तो अभी भी बहुत कम ही लोग हैं जो उन प्रोफेसर साहब के व्यक्तिव और कृतित्व से परिचित हैं. अपनी मेधा का लोहा दुनिया को मनवाने वाली उस शख्सियत का नाम है – अशोक सेन. प्रो. सेन की विशेषज्ञता का क्षेत्र ‘उच्च ऊर्जा भौतिकी’ (हाई एनर्जीफिजिक्स) है. आज अशोक सेन का जन्मदिन है. आज ही के दिन यानि 15जुलाई, 1956 को कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में जन्मे अशोक सेन स्कॉटिश चर्च कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर अनिल कुमार सेन के बड़े बेटे हैं. अशोकसेन की मांं गौरी सेन एक सामान्य गृहिणी हैं. अशोक सेन की शुरुआती पढ़ाई-लिखाई शैलेंद्र सरकार विद्यालय, कलकत्ता में हुई.

संभवत: किशोर अशोक सेन अपने पिता की बदौलत भौतिकी की अद्भुत दुनिया की ओर आकर्षित हुए. इस दौरान सेन ने अपने चचेरे भाई से विज्ञान के प्रति रुचि और वैज्ञानिक दृष्टिकोण ग्रहण किया.उनका चचेरा भाई अक्सर उनके पढ़ने के लिए विज्ञान की लोकप्रिय (पॉपुलर साइंस) किताबें लाया करता था. सेन ने कम उम्र में ही जॉर्ज गैमो की ‘वन टू थ्री…इनफिनिटी’ और बर्ट्रेंड रसेल की ‘द एबीसी ऑफ रिलेटिविटी’ जैसी पॉपुलर साइंस की किताबें पढ़ डालीं, जिससे वे लगातार विज्ञान (खास तौर से भौतिकी) की ओर आकर्षित होते चले गए.

अशोक सेन अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि, ‘वैज्ञानिकक्या करते हैं, यह जानने से पहले ही मैं ‘वैज्ञानिक’ बननेका सपना देखने लगा था…. मैं 1970 के दशक में कलकत्ता में पला-बढ़ा था, जहां प्रत्येक मेधावी छात्र को भौतिकी के अध्ययन के लिए प्रेरित और प्रोत्साहित कियाजाता था.’

1972 में शैलेंद्र सरकार विद्यालय से इंटरमिडिएट तक की पढ़ाई पूरी करने के बाद सेन ने भौतिकी में बीएससी करने के लिए कलकत्ता केप्रतिष्ठित प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला लिया. प्रेसीडेंसी में अपने स्नातकअध्ययन के दौरान, वह प्रो. अमल कुमार राय चौधरी के शिक्षण और ‘सामान्य सापेक्षता सिद्धांत’ (थ्योरी ऑफ जनरल रिलेटिविटी) एवं ‘ब्रह्माण्ड विज्ञान’ (कॉस्मोलॉजी) के क्षेत्र में किए गए उनके कार्यों से बहुत प्रेरित हुए. अब उन्हें भौतिक विज्ञान में अपने कॅरियर की राह नजर आने लगी थी, जिसके प्रति उनकी दिलचस्पी बचपन में ही पैदा हो गई थी.

प्रेसीडेंसी में शानदार आकादमिक प्रदर्शन के बाद 1978 में अशोक सेन ने भारत के सबसे प्रतिष्ठित तकनीकी संस्थान आईआईटी, कानपुर से एमएससी-भौतिकी की डिग्री प्राप्त की. अब सेन विज्ञान के वैभव से पूरी तरह से परिचित हो चुके थे, उन्हें भौतिकी के अध्ययन में आनंद आने लगा था. सेन जानते थे कि भौतिकी एक बहुत बड़ा विषय है और इसमें काम करने के कई क्षेत्र हैं. उनकी सबसे ज्यादा दिलचस्पी कण भौतिकी (पार्टिकल फिजिक्स) में थी. कण भौतिकी में सैद्धांतिक और प्रयोगात्मक दोनों ही स्तरों परउच्चस्तरीय अनुसंधान होता है, मगर आईआईटी – कानपुर में प्रयोगात्मक कार्यों को करते हुए सेन ने यह अनुभव किया कि कण भौतिकी के क्षेत्र में वैज्ञानिक प्रयोगों को सम्पन्न करने के लिए काफी संसाधनों और उपयुक्त इंफ्रास्ट्रक्चर की जरूरत होती है. इसके अलावा प्रयोगों का निष्कर्ष कई अप्रत्यक्ष कारकों पर भी निर्भर करता है, जिनको अमूमन प्रयोगकर्ता नियंत्रित नहीं कर सकता

ऐसे में, सेन को प्रतीत हुआ कि प्रयोगात्मक क्षेत्र में स्वावलंबन (self-reliance) कठिन होगा, इसलिए उन्होने अपने दिमाग को ही अपना लैब मानते हुए सैद्धांतिक स्तर पर ही अनुसंधान करने का फैसला किया.  सेन ने अनुसंधान के लिए स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क, स्टोनीब्रुक (यूएसए) को चुना और प्रोफेसर जॉर्ज फ्रैंकलिन स्टर्मन के मार्गदर्शन में 1982 में पी-एचडी की उपाधि प्राप्त की. पी-एचडी करने के बाद डॉ. सेन ने पोस्ट-डॉक्टरल के लिए दो साल फर्मीलैब और तीन साल स्टेनफोर्ड में शोध कार्य किया.

अशोक 1988 में भारत लौटे. यहांं उन्होने मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च में 7वर्षों तक शोध कार्य किया. उसके बाद इलाहाबाद स्थित हरिश्चंद्र रिसर्च इंस्टीट्यूटमें आ गए और 2021 तक काम किया. फिलहाल प्रो. सेन बेंगलुरु स्थितइंटरनेशनल सेंटर फॉर थ्योरिटिकल फिजिक्स में कार्यरत हैं. डॉ. सेन की गिनती भौतिकी के नोबेल के लिए संभावित भारतीय वैज्ञानिकों में होती रही है. 2018 में जारी एक सूची में अशोक सेन को दुनिया के प्रथम पांच भौतिक विज्ञानियों में से एक माना गया है.

डॉ. अशोक सेन को सैद्धांतिक भौतिकी के ‘स्ट्रिंग थ्योरी’ पर अनेक क्रांतिकारी योगदानों के लिए जाना जाता है. स्ट्रिंग थ्योरी हमारे ब्रह्मांड की मूलभूत संरचना का एक सम्पूर्ण, समेकित और स्थिर विवरण प्रदान करता है. शायद यहीकारण है कि इसे ‘थ्योरी ऑफ एवरीथिंग’ अथवा ‘यूनिफाइड फील्ड थ्योरी’ का सबसे प्रबल उम्मीदवार माना जाता है. महान वैज्ञानिकअल्बर्ट आइंस्टीन ने यूनिफाइड फील्ड थ्योरी की ही तलाश में अपने जीवन के लगभग 30 वर्ष गंवा दिए. यह आइंस्टीन के जीवन का अधूरा सपना था, जिसे वे पूरा न कर सके.

सवाल उठता है कि आइंस्टीन जैसी महान प्रतिभा भी अपने जीवन के अंतिम समय तक जुटी रहने के बावजूद यूनिफाइड फील्ड थ्योरी की खोज क्यों नहीं कर पाई? समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है. वह समय ही यूनिफाइड फील्ड थ्योरी के लिए परिपक्व/ उपयुक्त नहीं था क्योंकि उस वक्त गुरुत्वाकर्षण और विद्युत-चुंबकीय बल के लिए आधे-अधूरे सिद्धांत थे और न्यूक्लियर फोर्स के बारे में न के बराबर जानकारी थी. ‘यूनिफाइड फील्ड थ्योरी’ के एक प्रबल उम्मीदवार के रूप में स्ट्रिंग थ्योरी को 1984 से मान्यता मिलती आ रही है. इस सिद्धांत के मुताबिक क्वार्क्स और लेप्टोंस जैसे सूक्ष्म कण, कण न होकर वे दरअसल ‘स्ट्रिंग्स’ हैं यानि ऊर्जा से थरथराती डोरियां हैं और वे 11आयामों में दोलन करती हैं. इन डोरियों में केवल लंबाई होती है.

हम अंतरिक्ष के 3 आयाम और चौथे आयाम समय से परिचित हैं, लेकिन स्ट्रिंग थ्योरी के अनुसार 7 अन्य आयाम भी हैं जिनसे हम अनजान हैं. मोटे तौर पर अशोक सेन का काम 5 अलग-अलग प्रकार की स्ट्रिंग थ्योरिज को एकसर्वमान्य स्ट्रिंग थ्योरी के रूप में विकसित करने से संबंधित है. डॉ. सेन ने यह दर्शाया है कि पदार्थों के मूल गुणधर्म को समझाने वाले सभी स्ट्रिंग सिद्धांतों में विरोधाभास नहीं है,बल्कि एक ही चीज को अलग-अलग कोणों से देखने जैसे ही हैं. डॉ. सेन के इस काम विज्ञान जगत में ‘सेन-डुअलिटी’ या ‘एस-डुअलिटी’ के नाम सेजाना जाता है. सेन-डुअलिटी के आधार पर ही आगे चलकर भौतिक विज्ञानियों ने स्ट्रिंगथ्योरी से ‘एम-थ्योरी’ नामक सिद्धांत निकाला है, जिसे सभी स्ट्रिंग सिद्धांतों का पिता कह सकते हैं.

और, इस प्रकार प्रो. सेन के काम ने भौतिकी के क्षेत्र में एक नया कीर्तिमान स्थापित किया. डॉ. सेन को ब्रेकथ्रू-प्राइज़ इन फंडामेंटल फिजिक्स (स्ट्रिंग थ्योरी पर काम के लिए), डिरॉकमेडल, पद्मश्री, पद्म भूषण, शान्तिस्वरूप भटनागर पुरस्कार, इंफोसिस पुरस्कार जी. डी. बिरला अवार्ड सहित अनेक पुरस्कारों से देश-विदेश में सम्मानित किया जा चुका है. सेन मानद डॉक्टरेट की उपाधि से भी कई संस्थाओं और विश्वविद्यालयों से सम्मानित हो चुके हैं. इनके प्रकाशित शोधपत्रों की संख्या 200 से ज्यादा है.

भारत की सभी विज्ञान अकादमियों के सदस्य अशोक सेन को 1998 में रॉयल सोसाइटी, लंदन का सदस्य चुना गया था. आज सैद्धांतिक भौतिकी के क्षेत्र में 66 वर्षीय अशोक सेन का नाम काफी सम्मान से लिया जाता है. आज स्ट्रिंग थ्योरी ‘ग्रैंड यूनिफाइड फील्ड थ्योरी’ बनने की राह पर है, डॉ.सेन आज भी सम्मान और मान्य