महंगाई ने उड़ा दिया सोने का रंग! अब निवेशकों को क्या करना चाहिए? समझिए असली कहानी

निखिल वालवलकर, नई दिल्ली. 2022 आम वर्षों की तरह नहीं है. रूस-यूक्रेन संकट के चलते इस वर्ष दुनियाभर में महंगाई चरम पर पहुंची तो शेयर बाजार भी काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा. महंगाई पर काबू पाने के लिए दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की. इतिहास पर नजर डालें तो, जब-जब ऐसे हालात बने हैं, तब-तब सोना (Gold) एक सेफ हेवन (निवेश का सुरक्षित विकल्प) बना है. लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ.

इस बार हमने देखा कि ग्लोबल मार्केट्स गिरने के बावजूद सोने की कीमतों में तेजी नहीं आई. सोना भी बाजारों के साथ गिरता ही रहा. ये स्थिति चूंकि कुछ अलग है तो निवेशक इस बात को लेकर घबराए हुए हैं. तो क्या अब ये समझा जा सकता है कि गोल्ड अब एक सेफ हेवन नहीं (Safe haven) है?

सोने ने खुद को साबित किया!
हाल ही में सोने ने खुद को प्रूव भी किया है कि लोग उसे सेफ हेवन क्यों कहते हैं. मार्च-अगस्त 2020 के बीच में सोने की कीमत 1,471 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर 2,063 डॉलर पहुंच गई थी. यह वो समय था, जब दुनियाभर के बाजारों पर कोरोना का कहर बरप रहा था. इसी साल फरवरी से मार्च के बीच जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तब हमने इसे 1,797 डॉलर से बढ़कर 2,050 डॉलर तक जाते देखा.

1980 में इसकी कीमत 711 डॉलर के रिकॉर्ड पर पहुंची और फिर लम्बे समय तक गिरावट देखी गई. इसके बाद 2006 में सोने की कीमतों ने एक बार फिर नया हाई बनाया. सोने का वोलाटाइल बिहेवियर ऐसा है कि निवेशकों द्वारा इसके बारे में ठीक-ठीक अंदाजा लगाना थोड़ा मुश्किल हो गया है. परंतु एक बात तो तय है कि यह निवेशकों के पेशेंस को जरूर परखता है.

शेयर बाजार के साथ कम ही चलता है सोना!
सोना और शेयर बाजार को अधिकतर बार एक-दूसरे के उलट चलते ही देखा गया है. बहुत कम बार ऐसा हुए है कि दोनों एसेट एक ही दिशा में चले हों. उदाहरण के लिए, 2017 में जब निफ्टी 50 और S&P 500 इंडेक्सों ने 29 फीसदी और 22 फीसदी का रिटर्न दिया था, उसी दौरान गोल्ड ने भी 6 फीसदी रिटर्न दिया.

इसी तरह, 2018 में S&P 500 ने 4 फीसदी की गिरावट दिखाई और निफ्टी लगभग 3 फीसदी चढ़ा, तब गोल्ड ने 8 फीसदी रिटर्न दिया. 2022 की ही बात करें तो 31 जुलाई तक निफ्टी 50 और S&P 500 ने 9 और 8 फीसदी की गिरावट दिखाई तो गोल्ड केवल 1 फीसदी की बढ़ पाया है. शॉर्ट टर्म बॉन्ड्स में भी लगभग 2 फीसदी की गिरावट आई है, क्योंकि आरबीआई ने ब्याज दरों में इजाफा कर दिया है.

बेसिक पर लौटना होगा!
इन दिनों हमें एकतरफा विचार सुन रहे हैं. कुछ लोग महंगाई और मंदी को लेकर चिंतित नजर आते हैं तो कुछ को बहुत उज्ज्वल भविष्य नजर आता है, क्योंकि हमने कोविड को पीछे छोड़ दिया है. इनके पीछे अलग-अलग तर्क हैं, लेकिन हमें बेसिक्स को भूलना नहीं चाहिए.

ट्रस्ट म्यूचुअल फंड के संदीप बागला ने कहा, “हालांकि कुछ लोग कहते हैं कि आर्थिक मंदी की संभावनाएं है, लेकिन इसका कोई स्पष्ट प्रमाण दिखता नहीं. वेजेज और गैस प्राइस ऊपर जा रहे हैं और लेबर मार्केट में कोई पुअर सेंटीमेंट भी नहीं दिखते हैं.” इसके बाद उन्होंने कहा, “महंगाई के बावजूद गोल्ड का प्राइस डॉलर्स में गिरा है, क्योंकि डॉलर मजबूत हुआ है. ब्याज दरों में इजाफा एकदम से महंगाई को नीचे नहीं ला सकता. इसलिए, अभी के लिए, मार्केट वेट एंड वॉच की स्थिति में है और कुछ समय बाद ही स्थितियां साफ होंगी.”

तो निवेशकों को क्या करना चाहिए?
सबसे बड़ा सवाल यही है कि निवेशकों को क्या करना चाहिए? तो समझ लीजिए कि यह ऐसा समय है जब आपको शोर-शराबे को नहीं सुनना है और अपने वित्तीय लक्ष्यों को ध्यान में रखना है. वैश्विक अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के सभी दुष्प्रभावों के हटने में कितना समय लगेगा, इस बारे में शायद ही कोई विशेषज्ञ सही साबित हो. यदि मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए ब्याज दरों को और बढ़ाया जाता है, तो यह अर्थव्यवस्था में मांग प्रभावित होगी, कॉर्पोरेट आय घटेगी और स्टॉक की कीमतें भी गिरेंगी.

साथ ही, ऊंची ब्याज दरों का प्रभाव तुरंत देखने को नहीं मिलेगा. मुद्रास्फीति को शांत होने में कुछ समय लग सकता है और इससे एसेट्स की कीमतों में और अस्थिरता आ सकती है. इन कारकों पर एक निवेशक का कोई नियंत्रण नहीं होता है, इसलिए अपने वित्तीय लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करना सबसे अच्छा है. अपने एसेट एलोकेशन पर टिके रहने और डायवर्सिफाइड पोर्टफोलियो में निवेश करने से मदद मिलनी चाहिए.
बागला ने कहा, “यदि आप समझते हैं कि मुद्रास्फीति बनी रहेगी और ब्याज दरों में वृद्धि होगी, तो आपको इक्विटी से थोड़ा दूर रहना चाहिए. करीब एक साल में मैच्योर होने वाले गोल्ड और शॉर्ट टर्म बॉन्ड में पैसा लगाया जा सकता है.”

आनंद राठी वेल्थ के डिप्टी सीईओ फ़िरोज़ अज़ीज़ ने इस बारे में सलाह दी है कि मुद्रास्फीति को मात देने वाले रिटर्न पाने के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड और मध्यम अवधि की सरकारी प्रतिभूतियों के कॉम्बीनेशन में निवेश करना सही रहेगा.

उन्होंने कहा, “निवेशकों के लिए सोना पोर्टफोलियो का अहम हिस्सा है. यह मुद्रास्फीति और मुद्रा के मूल्यह्रास के खिलाफ एक प्रभावी बचाव है. सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड मैच्योरिटी पर रखे जाने पर कर-मुक्त रिटर्न के साथ-साथ सोने की कीमतों के जोखिम के अलावा 2.5 प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करता है. इसलिए यह सोने में निवेश करने का सबसे अच्छा तरीका है.”