Inflation Effect : मूडीज का दावा- दुनिया को मंदी की ओर धकेल रही महंगाई, अगले 12 महीने काफी अहम

मूडीज ने मौजूदा हालात को देखते हुए विकास दर का अनुमान घटा दिया है.

मूडीज ने मौजूदा हालात को देखते हुए विकास दर का अनुमान घटा दिया है.

नई दिल्‍ली. ग्‍लोबल एनालिटिक फर्म मूडीज ने दावा किया है कि अंधाधुंध बढ़ती महंगाई दुनिया को मंदी की ओर धकेल रही है. विकास दर में सुस्‍ती और रिकॉर्ड महंगाई की वजह से ग्‍लोबल इकॉनमी ज्‍यादा नाजुक बन रही है, जिससे मंदी का खतरा और गंभीर होता जा रहा है.

मूडीज ने चढ़ती महंगाई की वजह से साल 2022 के लिए ग्‍लोबल इकनॉमिक ग्रोथ का अनुमान भी घटाकर 2.7 फीसदी कर दिया है, जो जनवरी में 4.2 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था. मूडीज कहा, महंगाई को थामने के लिए पॉलिसी मेकर्स जैसे-जैसे सख्‍त फैसले लेते जाएंगे, दुनिया मंदी की ओर बढ़ती जाएगी. इस लिहाज से अगले 12 महीने काफी अहम होंगे. साल 2023 में भी ग्‍लोबल इकनॉमी की विकास दर 2.3 फीसदी रहने अनुमान है, जो पहले 3.6 फीसदी था.

क्‍या है मूडीज का दावा
ग्‍लोबल एनालिटिक फर्म ने कहा है कि वैसे तो साल 2022 में वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था वृद्धि करेगी, लेकिन अगर पॉलिसी बनाने वालों ने कोई गलत कदम उठाया अथवा महंगाई को थामने के लिए ज्‍यादा सख्‍ती बरती तो वैश्विक मंदी का जोखिम और बढ़ जाएगा. मौजूदा हालात को देखें तो अगले 12 महीने सभी के लिए काफी अहम होने वाले हैं. महंगाई इस जोखिम को और बढ़ा रही है. महंगाई की वजह से बिजनेस सेंटिमेंट प्रभावित होगा, जिसका सीधा असर ग्‍लोबल इकनॉमी पर दिखेगा जो फिलहाल मंदी को टालने का प्रयास कर रही है.

सप्‍लाई चेन तोड़ सकती है उम्‍मीद
महंगाई के साथ रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से ग्‍लोबल सप्‍लाई चेन में रुकावट भी वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था की वृद्धि को बाधित कर रही है. इसके अलावा ताइवान में भूराजनैतिक तनाव, चीन के लॉकडाउन, कॉस्‍ट ऑफ लिविंग बढ़ने, कर्ज की लागत में बढ़ोतरी और एनर्जी क्राइसिस की वजह से ग्‍लोबल इकनॉमी ज्‍यादा नाजुक दिख रही है. फिलहाल सभी बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था वाले देशों की विकास दर पर दबाव दिख रहा है. अमेरिका, चीन, भारत, जापान सहित तमाम इकनॉमी पर सप्‍लाई में आई बाधा का असर दिख रहा है. रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से साल 2023 तक ग्‍लोबल इकनॉमी पर सप्‍लाई का दबाव दिखेगा.

क्‍यों है स्‍टैगफ्लेशन का दावा
मूडीज ने कहा, इस बार ग्‍लोबल इकनॉमी स्‍टैगफ्लेशन (महंगाई जनित मंदी) का सामना करने जा रही है. इसे स्‍टैगफ्लेशन का टर्म कई वजहों से दिया जा रहा है. मूडीज ने कहा है कि स्‍टैगफ्लेशन तब माना गया है जबकि महंगाई दर केंद्रीय बैंक के तय दायरे से 1 फीसदी ऊपर बनी रहे और बेरोजगारी दर औसत दर से 1 फीसदी ऊपर जाए. इतना ही नहीं महंगाई और बेरोजगारी दोनों की ही बढ़ी हुई दरें 6 से 12 महीने तक ऊपर बनी रहती हैं.

मूडीज का कहना है कि सभी बड़ी इकनॉमी में लेबर मार्केट कमजोर दिख रहा है और यूरोप इनमें से सबसे ज्‍यादा जोखिम पर है. इसमें भी पूरे रीजन में ब्रिटेन पर सबसे ज्‍यादा जोखिम है.