महंगाई ने थामी सेवा क्षेत्र की रफ्तार, PMI चार महीने में सबसे सुस्‍त, इनपुट कॉस्‍ट बढ़ने से कहां दिखा सबसे ज्‍यादा असर?

नई दिल्‍ली. महंगाई ने भारतीय सर्विस सेक्‍टर के सुधारों पर गहरा असर डाला है. जुलाई में सेवा क्षेत्र की रफ्तार घटकर चार महीने के निचले स्‍तर पर गई है, जिसका सबसे ज्‍यादा असर रोजगार के क्षेत्र पर पड़ा है.

एसएंडपी ग्‍लोबल इंडिया सर्विस पर्चेजिंग मैनेजर्स इंडेक्‍स (PMI) के जुलाई के आंकड़े बताते हैं कि बीते महीने सेवा क्षेत्र की गतिविधियों की रफ्तार 55.5 रही जो जून महीने में 59.2 पहुंच गई थी. यह मार्च, 2022 के बाद सबसे सुस्‍त प्रदर्शन है. हालांकि, पीएमआई अभी 50 से ऊपर बना हुआ है, जिससे इसकी गति धीमी होने के बावजूद सेवा क्षेत्र में विस्‍तार दिख रहा है.

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बाजार मांग पर मौसम की मार
पीएमआई सर्वे के मुताबिक, कंपनियों पर इनपुट कॉस्‍ट बढ़ तो रही है लेकिन इसकी गति फरवरी के बाद सबसे सुस्‍त दिखाई दे रही है. इस समय बाजार पर दूसरी चीजों का असर दिख रहा. बढ़ती प्रतिस्‍पर्धा और मौसम की मार की वजह से बाजार मांग में सुस्‍ती है. ऐसे में कीमतों में नरमी आने के बावजूद इसका लाभ सेवा क्षेत्र को नहीं मिल पा रहा है. कंपनियों की उत्‍पादन लागत में भी कुछ बढ़ोतरी दिख रही है.

सेवा क्षेत्र का पीएमआई अब भी 50 के ऊपर बना हुआ है.

बिजनेस एक्टिविटी में तेजी
एसएंडपी की इकनॉमिक्‍स एसोसिएट डाइरेक्‍टर पॉलियाना डी लीमा ने कहा, जुलाई के परिणाम कई पॉजिटिव चीजें दिखा रहे हैं. इस दौरान बिजनेस एक्टिविटी में तेजी से सुधार दिख रहा और नए कारोबार को बाजार से लगातार ऑफर मिल रहे हैं. हालांकि, प्रतिस्‍पर्धा, प्रतिकूल मौसम और महंगाई बढ़ने का सेवा क्षेत्र पर कुछ असर दिख रहा है. इस वजह से ग्‍लोबल मार्केट में भारतीय सेवाओं की मांग में थोड़ी सुस्‍ती आई है. यह छह महीने में सबसे सुस्‍त दिख रहा है.

कंपनियों ने बताया-बढ़ रहा खर्च
भारतीय सेवा क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों ने जुलाई में अपने खर्चे बढ़ने की बात कही है. इन कंपनियों का कहना है कि बीते महीने खाने, ईंधन, उत्‍पाद, स्‍टाफ, ट्रांसपोटेशन जैसी सुविधाओं पर खर्च बढ़ने से महंगाई का दबाव है. इससे इनपुट कॉस्‍ट भी बढ़ी है, जबकि इसकी गति पांच महीने में सबसे कम रही. रुपये की कमजोरी भी कंपनियों के खर्च का बोझ बढ़ा रही.

ठप पड़ गईं नौकरियां
जुलाई के आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि बीते महीने सेवा क्षेत्र में नौकरियां शून्‍य रही हैं. इस दौरान रोजगार के मोर्चे पर कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. हालांकि, इसमें कोई इजाफा तो नहीं हुआ लेकिन नौकरियां पैदा होने की रफ्तार जून के बराबर ही रही. चूंकि, कंपनियों पर इनपुट कॉस्‍ट ज्‍यादा रही लिहाजा उन्‍होंने अपने वर्कफोर्स में कोई बढ़ोतरी नहीं करने का फैसला किया.