रेप और मर्डर की सजा झेल रहे एक आरोपी को सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को बरी कर दिया। कोर्ट ने यह माना कि आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है। वहीं शीर्ष अदालत ने कहा कि विक्टिम के साथ हुए अन्याय की भरपाई किसी और के साथ अन्याय करके नहीं हो सकती।
नई दिल्ली: शीर्ष अदालत ने रेप और मर्डर मामले में फांसी की सजा पाए एक आरोपी को बरी कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मामले में आरोपी के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं है। इस मामले में ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट ने गवाहों के बयान के विरोधाभास को नजरअंदाज किया है। अदालत ने कहा कि विक्टिम के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए किसी और के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मामले में गवाहों के बयान में आपस में विरोधाभास है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी को बिना लेशमात्र साक्ष्य के फांसी की सजा दी गई और ट्रायल कोर्ट ने और हाई कोर्ट ने इस बात को नजरअंदाज कर दिया कि गवाहों के बयान में विरोधाभास है और आरोपी को बरी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि आरोपी बेहद गरीब है और वह अपने लिए सेशनल कोर्ट में वकील तक नहीं कर सका था। कोर्ट में इसके लिए लगातार आग्रह किया गया तब सेशल कोर्ट ने सरकार की ओर से वकील मुहैया कराया। इस मामले में अभियोनज पक्ष की इस बात को लेकर आलोचना की कि मामले में छानबीन सही तरह से नहीं की गई।
शीर्ष अदालत ने कहा कि हम इस बात को मना नहीं कर सकते हैं कि छह साल की एक बच्ची के साथ रेप और मर्डर की वारदात को अंजाम दिया गया। लेकिन छानबीन सही तरह से नहीं की गई और अभियोजन पक्ष ने विक्टिम फैमिली के साथ अन्याय किया है। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता आरोपी पर अभियोजन पक्ष ने आरोप मढ़ दिया जबकि उसके खिलाफ लेशमात्र का साक्ष्य नहीं था। इस तरह याचिकाकर्ता आरोपी के साथ भी अभियोजन पक्ष ने अन्याय किया है। अदालत ने कहा कि विक्टिम के साथ हुए अन्याय की भरपाई के लिए किसी और के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट में पेश मामले के मुताबिक अभियोजन पक्ष का आरोप है कि आरोपी अपनी छह साल की भतीजी को डांस दिखाने के बहाने ले गया। होली के मौके पर डांस और गाना दिखाने के बहाने लड़की को आरोपी ले गया और फिर उसके साथ रेप किया और मर्डर कर दिया। सेशन कोर्ट ने आरोपी को रेप और मर्डर में दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई थी इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखा और फिर मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
आरोपी की ओर से दाखिल की गई अपील में कहा गया है कि गवाहों के बयान में विरोधाभास है। पुलिस ने छानबीन में देरी की थी और अभियोजन पक्ष ने फॉरेंसिंक और मेडिकल रिपोर्ट पेश नहीं की। आरोपी ने कहा कि उसे इस मामले में फंसाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने शुरू से यह डिफेंस लिया है कि उसे इस मामले में फंसाया गया है। कोर्ट ने यह भी पाया है कि गवाहों के बयान में विरोधाभास है और वह विश्वसनीय नहीं है। एफआईआर को संबंधित कोर्ट में ट्रांसफर करने में देरी हुई है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जब अपराध जघन्य और गंभीर होता है तो जो साक्ष्य पेश किए जाते हैं उसे गहन तरीके से स्क्रूटनी की जरूरत होती है। नैशनल लॉ यूनिवर्सिटी के प्रोजेक्ट 39 ए ने आरोपी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखा। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।