फिल्म ‘बधाई हो’ में नजर आए गजराज राव को किसी पहचान की जरूरत नहीं। फिल्मों में आने से पहले पैसों के लिए स्टेशनरी की दुकान पर कागज-पेंसिल भी बेचा करते थे वह। गजराज राव नवभारट टाइम्स में भी काम कर चुके हैं।
देर आए, मगर दुरुस्त आए, अभिनेता गजराज राव पर ये कहावत एकदम सटीक बैठती है। 1994 में आई ‘बैंडिट क्वीन’ से अपने करियर की शुरुआत करने वाले इस एक्टर ने थिएटर, ऐड जगत के अलावा छोटी-मोटी नौकरियां भी कीं, मगर कामयाबी का स्वाद मिला ‘बधाई हो’ से। इन दिनों वे चर्चा में हैं अपने नए टेली प्ले ‘गुनहगार’ से। पेश है उनसे ये खास बातचीत।
‘बधाई हो’ के पहले बहुत सारा काम
‘बैंडिट क्वीन’ जैसी चर्चित और अवॉर्ड विनिंग फिल्म से लेकर ‘गुनहगार’ जैसे टेली प्ले तक के अपने सफर का आकलन कैसे करेंगे?
मैं अपने करियर को ‘बधाई हो’ के पहले और ‘बधाई हो’ के बाद जैसे दो हिस्सों में बांटना चाहूंगा। ‘बधाई हो’ के पहले मैंने बहुत सारा काम किया, मगर वे तमाम भूमिकाएं ऑथर बैक (कलाकार के लिए खास तौर पर लिखी गई भूमिका) नहीं मिलते थे। ‘बधाई हो’ के बाद मेरे करियर में एक खूबसूरत मोड़ आया। इस फिल्म के बाद मुझे बेहद उम्दा रोल मिलने लगे। ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ में मेरी भूमिका को सराहना मिली। मैं अजय देवगन के साथ एक और फिल्म ‘मैदान’ कर रहा हूं। एक अन्य फिल्म में माधुरी जी (माधुरी दीक्षित) के साथ काम करने का मौका मिला।
‘गुनहगार’ में ऐसा क्या खास था जो आप इसे करने को प्रेरित हुए?
‘गुनहगार’ मेरा अब तक का अलहदा रोल है, जो पिछले चार-पांच साल में मैंने किया है। मेरे किरदार का नाम है त्रिलोक बंसल। यह दो लोगों को घर पर इन्वाइट करता है, एक है मृणालिनी (श्वेता प्रसाद बासु) और दूसरा है इन्स्पेक्टर ओम (सुमित व्यास) और इस टेली प्ले में अतीत और वर्तमान की कई गुत्थियां सुलझती हैं। हम तीनों किरदारों का अपना अतीत है, राज हैं, जो परत दर परत खुलते हैं। मैं इसमें एक निगेटिव भूमिका में हूं। एक जटिल किरदार ही था, जो मैं इसे करने को प्रेरित हुआ। इसके निर्देशक आकर्ष खुराना थिएटर के बहुत बड़े डायरेक्टर भी हैं और सिनेमा में भी उन्होंने काम किया है। उन्होंने कई ओटीटी शोज भी निर्देशित किए हैं। मैं लंबे समय से उनके साथ थिएटर करने का इच्छुक था। मैंने करियर की शुरुआत में रंगमंच किया था, मगर पिछले 20-25 सालों से मैं थिएटर नहीं कर पाया था। मुझे जब आकर्ष ने ये स्क्रिप्ट सुनाई, जो तीन किरदारों के बीच एक ही लोकेशन पर है तो मुझे बहुत रोमांचक लगी और मैं ना नहीं कर पाया।
अभिनेता बनने के पहले आपने अपने करियर में काफी संघर्ष किया, आप गारमेंट कंपनी में काम किया करते थे, एनबीटी में भी काम कर चुके हैं?
मैं मानता हूं कि हमारी इंडस्ट्री में कई कलाकार ऐसे रहे हैं, जिन्होंने अपने करियर में कई तरह के जद्दोजहद किए हैं। मेरी जिंदगी में एक दौर ऐसा था, जब मेरे पिताजी की आर्थिक हालात बहुत खराब थी और मजबूरी में मुझे छोटे-मोटे काम करने पड़े थे। उस समय मैं सिर्फ थिएटर के भरोसे नहीं बैठा रह सकता था। उस वक्त पिताजी का हाथ बंटाने के लिए मैंने गारमेंट एक्सपोर्ट कंपनी में काम किया। स्टेशनरी की दुकान पर कागज-पेंसिल बेचा करता था। दिल्ली के मशहूर इकबाल टेलर के यहां मैं सेल्समैन था। इंची टेप पकड़कर कपड़ों के नाप लिया करता था। उस जमाने में मुझे अलग -अलग जगहों पर लोग बहुत ही अच्छे मिले। मेरे वो अनुभव अभिनय में भी काम आए। थिएटर ने मेरे लिए समंदर में एक टापू का काम किया। मैं खुद को तलाश पाया। मुझे हरिशंकर परसाई से लेकर मंटो तक को पढ़ने का मौका मिला। मैंने अखबार (एनबीटी) में भी काम किया। फिर मुझे विज्ञापन जगत से जुड़ने का मौका मिला और मैं आगे बढ़ता गया।
अमरीश पुरी, बोमन ईरानी, नीना गुप्ता जैसे कई कलाकारों की तरह आपको भी करियर में लेट कामयाबी मिली, ‘बधाई हो’ करते हुए क्या आपको लगा था कि आपकी दुनिया बदलने वाली है?
रोल को करते वक्त तो लगा था कि यह किरदार वजनदार है, मगर ये नहीं सोचा था कि मेरी जिंदगी बदल जाएगी। मेरे पास प्रस्तावों के ढेर होंगे। मैं अपनी मर्जी की भूमिकाएं चुन पाउंगा। एक अदाकार के रूप में मैंने प्रतिष्ठा पाई। आज मेकर्स जब मेरे पास आकर कहते हैं कि गजराज ये रोल हमने आपके लिए लिखा है, तो वो मेरे लिए सपने जैसा होता है। दस साल पहले मैंने कल्पना तक नहीं की थी कि मुझे माधुरी दीक्षित जी के साथ काम करने का अवसर प्राप्त होगा। ‘बधाई हो’ के कारण मैं उनके साथ काम कर पा रहा हूं।
नीना गुप्ता के बाद ‘मजा मा’ में माधुरी दीक्षित के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
नीना गुप्ता के साथ जो मेरी जुगलबंदी बनी वो तो मेरे लिए अनमोल है, क्योंकि उसी के बाद जिंदगी बदली। जहां तक माधुरी जी के साथ काम करने की बात है, तो उनके साथ काम करके अहसास हुआ कि इतने साल वे करियर के शिखर पर विराजमान रहीं, तो उनका अनुशासन कमाल का रहा है। डायरेक्टर जब तक उनसे कहते नहीं थे कि आपका ब्रेक है, तब तक वे सेट से हिलती नहीं थीं। अपने सभी साथ कलाकारों के साथ उनका रवैया बहुत ही सपोर्टिव रहा है। रिहर्सल हो या रीटेक वे पूरे धैर्य और संयम से काम करती हैं।
अगर मैं बॉयकॉट ट्रेंड पर आपसे बात करना चाहूं, तो आपके क्या विचार हैं?
देखिए, कई बार ऐसा होता है कि किसी रेस्टॉरेंट में आपको खाना पसंद नहीं आता। आप कुछ और ट्राई करते हैं, मगर ये सब कुछ वक्ती होता है। मैं इंडस्ट्री के भविष्य को लेकर बहुत आशान्वित हूं। मुझे लगता है ये ज्यादा समय तक नहीं रहेगा, क्योंकि इंडस्ट्री बहुत बड़ी है। लाखों -करोड़ों के रोजगार यहां से चलते हैं। मुझे नहीं लगता कि इस ट्रेंड को लेकर हमें चिंतित होना चाहिए।
अब आपके लिए रोल लिखे जा रहे हैं, तो कोई ड्रीम रोल?
मैदान और ‘मजा मा’ में मेरी स्ट्रॉन्ग भूमिकाएं देखने को मिलेंगी, मगर मौका मिले तो सरदार पटेल का किरदार निभाना चाहूंगा।