Interview: मधुर भंडारकर बोले- जैसे फैशन ने प्रियंका की किस्‍मत बदली, तमन्‍ना के लिए गेम चेंजर होगी बबली बाउंसर

मधुर भंडारकर की फिल्‍म ‘बबली बाउसंर’ ओटीटी पर 23 स‍ितंबर 2022 को रिलीज हो रही है। नवभारत टाइम्‍स से बातचीत में उन्‍होंने फिल्‍म से जुड़ी दिलचस्‍प बातें शेयर की हैं।

मधुर चांदनी बॉलवुड के उन चुनिंदा डायरेक्‍टर्स में से हैं, जिन्‍होंने हमेशा से संजीदा मुद्दों पर फिल्‍में बनाई हैं। ‘पेज 3’ से लेकर ‘फैशन’ और ‘चांदनी बार’ से लेकर ‘ट्रैफिक सिग्‍नल’ तक, उनकी फिल्‍मों ने न सिर्फ पर्दे पर दर्शकों का मनोरंजन किया है, बल्‍कि‍ सिनेमा के बहाने एक बहस भी शुरू की है। नेशनल अवॉर्ड जीत चुके और पद्म श्री से सम्‍मानित मधुर भंडारकर अब ओटीटी के लिए एक हंसी-खुशी वाली मजेदार फिल्म ‘बबली बाउंसर’ लेकर आए हैं। फिल्‍म की कहानी थोड़ी हटके है। मधुर इस बार जंगली पिक्‍चर्स के बैनर तले फीमेल बाउंसर की जिंदगी को पर्दे पर उभारने आए हैं। इस‍ फिल्‍म में साउथ की सुपरस्‍टार और ‘बाहुबली’ फेम तमन्‍ना भाटिया भी हिंदी सिनेमाई पर्दे पर धमाल मचाने की उम्‍मीद रखती हैं। नवभारत टाइम्‍स से खास बातचीत में मधुर ने न सिर्फ फिल्‍म के बारे में दिलचस्‍प बातें शेयर की हैं, बल्‍क‍ि उन्‍होंने यह भी कहा कि ‘बबली बाउंसर’ तमन्‍ना के फिल्‍मी करियर के लिए भी मील का पत्‍थर साबित होगी।

आप जिस भी विषय पर फिल्म बनाते हैं, उसकी गहराई से पड़ताल करते हैं। बबली बाउंसर के लिए किस तरह रिसर्च किया? और आपके हिसाब से फीमेल बाउंसर्स को किस तरह की चुनौतियों से गुजरना पड़ता है?
फीमेल बाउंसर की अपनी एक दुनिया है। पहले सिर्फ पुरुष बाउंसर ही होते थे, अब फीमेल बाउंसर भी रखी जाने लगी हैं। ऐसा माना जाता है कि फीमेल को फीमेल बाउंसर ही हैंडल कर सकती हैं। मुझे ये आइडिया बहुत रोचक लगा, क्योंकि अब तक इस पर किसी ने फिल्म बनाई नहीं है। मैंने हमेशा अलग-अलग विषयों पर फिल्में बनाई है और मुझे लगा कि फीमेल बाउंसर की दुनिया अब तक अनदेखी, अनकही है, तो इसे एक खुशमिजाज, मजेदार फिल्म के रूप में दुनिया को दिखाएं, जिसे पूरा परिवार इंजॉय करे। बाकी, आप फिल्म में देखेंगे, इन बाउंसर्स को कैसी-कैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। ये काफी सीरियस फिल्म भी हो सकती थी, पर मैंने इसे मनोरंजक और हंसी-खुशी वाला सुर दिया है। इसमें ह्यूमर है, व्यंग्य है, रोमांस है, रिश्तों की कहानी है, पर वुमन एंपावरमेंट का भी बहुत बड़ा एंगल है कि कैसे हरियाणा की एक लड़की दिल्ली आकर पब में बाउंसर का काम करती है। इसे देखते हुए आपको बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्मों वाला अहसास आएगा।

आपने कहा कि यह पूरे परिवार के साथ देखने वाली फिल्म है, तो ये मलाल नहीं रहा कि काश ये बड़े पर्दे पर रिलीज होती, जहां ढेर सारे लोग एक साथ इसका लुत्फ लेते?
ये फिल्म हमने ओटीटी के लिए ही बनाई थी। जैसे, पिछले दो-ढाई साल कोविड महामारी में गए, तो उसके बाद मैं चाहता था कि लोगों के चेहरे पर एक मुस्कान आए। निश्चित तौर पर हर कोई चाहता है कि उसकी फिल्म बड़े पर्दे पर आए, लेकिन हमने ये फिल्म ओटीटी को ही दिमाग में रखकर बनाई थी और हम चाहते थे कि जब लोग फिल्म देखें तो खुशी महसूस करें। याद रखिए कि आज एक बहुत बड़ा तबका ओटीटी पर फिल्में देखता है। बहुत से ऐसे बुजुर्ग हैं, जो थिएटर में नहीं आते, तो यह फिल्म ऐसी है कि हर कोई अपने परिवार के साथ बैठकर देख सकता है।


साल 2012 तक हर एक-दो साल में आपकी एक फिल्म आ जाती थी। लेकिन 2012 के बाद से दस साल में यह सिर्फ आपकी तीसरी फिल्म है। आपकी पिछली फिल्म ‘इंदू सरकार’ पांच साल पहले आई थी। इस गैप की क्या वजह है?
इसकी वजह ये है कि 2017 में इंदू सरकार रिलीज होने के बाद मैंने छह-आठ महीने का ब्रेक लिया। मेरी हर फिल्म के बाद मैं ब्रेक लेता हूं, क्योंकि मुझे घूमने का बहुत शौक है। मैं दुनिया भर में घूमता है, फिल्म फेस्टिवल्स में चला जाता हूं, किताब पढ़ता हूं। ये मेरा स्वभाव है। फिर, ऐसा तो है नहीं कि कोई रूल है कि आपको हर साल फिल्म बनानी ही है। मैं तभी फिल्म बनाता हूं, जब मुझे लगता है कि ये फिल्म बननी चाहिए तो इंदू सरकार के बाद जब मैंने काम शुरू किया, तो तीन फिल्मों पर काम कर रहा था मैं। एक बहुत बड़ी ऐक्शन फिल्म थी, एक सीरियस महिला प्रधान फिल्म थी और एक बबली बाउंसर। इन तीनों पर मैं काम कर रहा था तो लिखने में भी तो वक्त लगता है। फिर 2019 में जब हमने काम शुरू किया तो ये सोचने में थोड़ा वक्त लगा कि पहले किस फिल्म पर काम शुरू करें, तभी कोविड महामारी आ गई। उसके बाद तो सब धराशाई हो गया। हम सब घर पर बैठ गए। एक-सवा साल उसमें चला गया। फिर जब समय ठीक हुआ, तो हॉटस्टार और जंगली पिक्चर्स ने मुझे अप्रोच किया कि बबली बाउंसर का विषय अच्छा है, हम उसे अच्छे बजट, अच्छे स्केल में बनाएंगे और कोविड के दौरान लोगों का जैसा बुरा हाल हुआ तो मैं भी चाहता था कि एक ऐसी खुशमिजाज फिल्म बनाए, जो लोगों को खुशी दे। हालांकि, इसके बीच में मार्च 2021 में मैंने एक और फिल्म बनाई इंडिया लॉकडाउन, जो डेढ़ महीने में रिलीज होगी, तो मेरी दो फिल्में तैयार हैं। कोविड नहीं होता, तो इंडिया लॉकडाउन पिछले साल ही आ जाती।

आप तीन दशक से बॉलिवुड में है। इतने साल में आपके हिसाब से इंडस्ट्री में क्या चीजें बेहतर हुई हैं और क्या पहले से कमतर? जैसे कहते हैं कि कॉरपोरेट कल्चर आने के बाद इंडस्ट्री टेक्निकली जहां बहुत आगे बढ़ी है, वहीं अब फिल्मों की जगह प्रॉजेक्ट बनने लगे हैं !
देखिए, मैंने तो इससे भी पहले का काल देखा है। मैं तो विडियो कैसेट का व्यवसाय करता था तो मैंने बचपन से इस इंडस्ट्री को देखा है। टेक्निकली मैं बचपन से फिल्म बिजनेस में ही हूं और मैं बड़े-बड़े फिल्म मेकर्स और डायरेक्टर्स को विडियो कैसेट देता था तो उतार चढ़ाव आते रहते हैं। आज कॉम्पिटिशन बहुत है, पर प्लैटफॉर्म भी बहुत है। आज ओटीटी पर इतना काम है। पहले इतने विकल्प नहीं थे। कॉर्पोरेट कल्चर में चीजें बहुत स्ट्रीमलाइन हो गई हैं। बाकी, फिल्म बनाना बिजनेस तो है ही। इसमें पैसे लगते हैं और हर कोई चाहता है कि सौ रुपये लगाए तो दो सौ वापस आए। कोई मेसेज देने के लिए फिल्म नहीं बनाता है। मुझे लगता है कि हमें बजट को लेकर सोचना चाहिए। जो इंडस्ट्री के बड़े-बड़े दिग्गज हैं, उनको बैठकर प्राइस के बारे में सोचना पड़ेगा। बजट पर एक कंट्रोल रखना पड़ेगा। जैसे, मैंने हमेशा कंटेंट वाला सिनेमा बनाया है, तो अगर एकाध फिल्म नहीं भी चली है तो भी हमारे पैसे वापस आ गए हैं। इंदू सरकार के लिए मुझे तारीफें मिलीं, लेकिन मेरे लिए वो फिल्म बहुत बड़ी हिट भी है, क्योंकि हमने उसे सिर्फ साढ़े 6 करोड़ में बनाया था। फिर, हमने उसका सैटेलाइट बेचा, ऑडियो बेचा और हम फायदे में ही रहे।


इन दिनों इंडस्ट्री को लेकर जो एक तरह की नेगेटिविटी देखने को मिल रही है, उसकी क्या वजह मानते हैं?
वजह तो मैं नहीं बता सकता हूं, लेकिन सोशल मीडिया अपने में एक बहुत बड़ा माध्यम है। वहां आपकी तारीफ भी होती है तो बुरी बातें भी सुनने को मिलती हैं। ये दोधारी तलवार है, जिसका आप कुछ कर नहीं सकते। हां, ये जरूर है कि जो कैंसल कल्चर होता है, या कुछ होता है तो उससे फर्क तो पड़ता है। अपने को बॉक्स ऑफिस तो चाहिए। मैंने बहुत से थिएटर मालिकों, एग्जीबिटर्स से बात किया, सबका कहना है कि जैसे ही कोई बायकॉट या कुछ होता है तो आर्थिक तौर पर चोट तो पहुंचती ही है।

फिल्म में बबली के रूप में तमन्ना को लेने का ख्याल कैसे आया?
तमन्ना की जो बॉडी लैंग्वेज हैं, उसे देखकर मुझे लगा कि ये मेरी बबली है, ये करैक्टर में सूट करेगी। हालांकि, मैंने उसकी ज्यादा फिल्में नहीं देखी थीं, बाहुबली छोड़कर, पर मुझे खुशी है कि तमन्ना ने कहा कि मैंने उसे री-लॉन्च किया है। उसके लिए ये फिल्म मील का पत्थर साबित होगी। जब आप फिल्म देखेंगी तब पता चलेगा कि तमन्ना बतौर ऐक्टर कितनी इवॉल्व हुई है। मेरा मानना है कि जिस तरह प्रियंका चोपड़ा और कंगना रनौत के लिए फैशन गेम चेंजर थी, वैसे ही तमन्ना के लिए बबली बाउंसर गेम चेंजर फिल्म होगी।