रणदीप हुड्डा की वेब सीरीज ‘कैट’ रिलीज हो गई है। आप इसे नेटफ्लिक्स पर देख सकते हैं। इस शो में एक्टर ने पंजाबी जासूस का किरदार निभाया है। उन्होंने कहा कि बीते दो साल में सिनेमा को लेकर दर्शकों का टेस्ट बदल गया है। अब लोगों को वो नहीं चाहिए, जो पहले दिया जाता था।
रणदीप हुड्डा ने अपने करियर में ‘साहब, बीवी और गैंगस्टर’, ‘हाईवे’, ‘सरबजीत’ और ‘किक’ जैसी फिल्में दीं। वो ज्यादातर मूवीज में इंटेस लुक में नजर आए हैं और जनता उन्हें इस अवतार में बहुत पसंद करती है। अब वो फिर से कुछ इसी अंदाज में नजर आए हैं। वो भी ओटीटी पर पर। उनकी वेब सीरीज है- कैट, जिसे बलविंदर सिंह जंजुआ ने डायरेक्ट किया है। ये 9 दिसबंर 2022 यानी आज नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। इसमें पॉलिटिक्स भी है, खूब सारा ड्रामा और रोमांस भी है। रणदीप ने इस शो के साथ-साथ सिनेमा को लेकर बदले दर्शकों के बारे में बात की। उन्होंने ये भी बताया कि ‘कैट’ में अपने किरदार के लिए उन्हें किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा। हॉलीवुड फिल्म ‘एक्सट्रैक्शन’ से ओटीटी पर डेब्यू करने वाले एक्टर रणदीप अब पहली बार वेब सीरीज ‘कैट’ में पंजाबी जासूस के किरदार में नजर आएंगे। इसी सिलसिले में नवभारत ने टाइम्स उनके करियर, फिल्म चॉइसेज, सिनेमा आदि पर की खास बातचीत:
डी, हाइवे, सरबजीत जैसी फिल्मों में आपने इंटेंस किरदार बखूबी निभाए हैं। अब कैट में भी इंटेंस रोल है, क्या आपको ऐसे किरदार ज्यादा लुभाते हैं? क्या ये एक्टिंग क्षमता दिखाने का ज्यादा मौका देते हैं?
मुझे आज तक समझ में नहीं आया कि मैं इंटेंस एक्टर हूं या इंवॉल्वड एक्टर हूं। मैंने कॉमिडी फिल्म भी की है, इस सीरीज के डायरेक्टर बलविंदर सिंह जंजुआ के साथ ही मैंने कॉमिडी फिल्म की है। उसमें भी मेरी इन्वॉल्वमेंट उतनी ही रही। मेरे ख्याल से लोग इन्वॉल्वमेंट और इंटेंसिटी को मिक्स कर देते हैं। इंटेंस इंसान कौन होता है? जो ज्यादा फील करता है, चीजों को सीरियसली लेता है। जब वैसे किरदार आते हैं, तो उसे करने में भी मजा आता है, क्योंकि मैं खुद मजाकिया आदमी भी हूं, संजीदा आदमी भी हूं, तो दोनों में ही मजा आता है।
आपको इंडस्ट्री में करीब दो दशक हो गए, बतौर कलाकार आप कितना संतुष्ट महसूस करते हैं या आपके हिसाब से वो भूख काफी बची रह गई?
मैं आपको एक वाकया सुनाता हूं। मैं एक्यूपंचर करा रहा था। तब मैं काफी तनाव में रहता था, तो जब मेरी डॉक्टर जब नीडल लगाकर बैठी थीं, वो मुझसे बात करने लगी कि आपको खुशी क्या चीज देती है, तो मैंने कहा- काम। तब उन्होंने कहा कि आप तो कलाकार हो, कलाकार को तो कभी संतुष्टि मिलती ही नहीं है। मैंने कहा- हां ये तो सच है, तो उन्होंने कहा कि इसलिए उसमें खुशी ढूढ़नी ही नहीं चाहिए। मैंने उनकी बात को बहुत गंभीरता से लिया, तो बतौर एक्टर मैं संतुष्ट नहीं हूं, लेकिन एक इंसान के तौर पर मैं संतुष्ट हूं।
सीरीज कैट में पंजाबी जासूस की भूमिका में ढलने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ी? क्या चुनौती रही?
मेहनत उतनी ही करनी पड़ी, जितनी बाकी रोल में करनी पड़ती है। तैयारी खास तौर पर ये थी कि अंदर से एक सिख की तरह महसूस करना था। सिख के लिए कहते हैं कि ‘सिख वो होंदा है, जो सिखदा है’, तो अपने अंदर एक विनम्रता, एक स्पिरिचुअलिज्म, एक सरलता लानी थी, बॉडी लैंग्वेज में, भाषा में। चैलेंजिंग यही था, बाकी तो हमें स्क्रीनप्ले ही फॉलो करना होता है। इस किरदार की एक दोहरी जिंदगी है और मेरा मानना है कि दोहरी जिंदगी हम सभी जीते हैं। सिर्फ एक्टर्स ही नहीं, बल्कि हर इंसान पब्लिक में अलग तरह से बिहेव करता है, घर में अलग होता है, पत्नी के सामने अलग बिहेव करता है, जब बिल्कुल अकेले होता है, तो अलग बिहेव करता है, तो दोहरापन इंसान की प्रवृत्ति होती है, बस उसी को उभारकर इस किरदार में लाया है।
कैट और आपकी दूसरी सीरीज इंस्पेक्टर अविनाश दोनों कोविड के बीच में शूट हुई थी। उस वक्त की अपनी चुनौतियां थीं, सेट और शेड्यूलिंग से जुड़ी, उसके चलते क्या मुश्किलें पेश आईं?
ये सेट और शेड्यूलिंग की मुश्किलें तो बहुत लोगों के साथ हुईं, हमारे साथ भी ऐसा हुआ। हालांकि, कैट में इतना नहीं था, क्योंकि कोविड तब तक लगभग खत्म हो गया था। फिर भी हमने इसे बहुत ही कम लोगों के बीच चुपचाप शूट किया, ताकि भीड़भाड़ न हो, कोई बीमार न हो जाए, तो मैं बाहर कहीं खाना-वाना खाने भी जाता था, तब भी पगड़ी वगैरह पहनकर ही जाता था, ताकि कोई पहचान न पाए। गोल्डन टेंपल में हम मत्था टेकने गए, वहां भी पगड़ी में ही गया, जब तक मैं बात नहीं करता था, किसी को पता नहीं चलता था और मेरे को तो ये हमेशा बढ़िया लगता है कि किसी को पता न चले कि आप वहां शूटिंग कर रहे हैं। चुपके से शूटिंग करके निकल जाइए, वरना मिलना-जुलना बहुत ज्यादा हो जाता है, जो मुझे शूटिंग के दौरान बिल्कुल पसंद नहीं है।
आप अपनी अगली फिल्म स्वातंत्र्यवीर सावरकर में एक्टिंग के अलावा पहली बार निर्देशन की जिम्मेदारी भी उठा रहे हैं। इस जिम्मेदारी के लिए कितने तैयार हैं?
ये तो वक्त बताएगा कि कितना तैयार हूं। अभी तो मैं कैट के बारे ही सोच रहा हूं, उसके बारे में बात कर रहा हूं। वो फिल्म एक अलग पड़ाव है, अलग मौका है, अलग काम है। उसके बारे में बाद में ही बात करें तो बेहतर होगा।
इन दिनों आप निजी जिंदगी में भी एक खुशहाल स्पेस (लिन संग रिलेशनशिप) में हैं। उस दिशा में, मेरा मतलब शादी, आगे बढ़ने का क्या प्लान है?
मैं निजी जिंदगी में हमेशा खुशहाल स्पेस में ही रहता हूं। बाकी, जब ऐसी (शादी) कोई बात होगी तो आपको सबसे पहले बताऊंगा।
लॉकडाउन के बाद से थिएटर में फिल्में पहले जैसे नहीं चल रही हैं। क्या आपको लगता कि फिल्ममेकर्स ऑडियंस की नब्ज पकड़ने में कोई गलती कर रहे हैं?
नहीं, अब हम बिल्कुल सही जा रहे हैं। क्या है कि कोविड के दौरान लोगों ने बहुत संजीदा और डिटेल में कहानियां और किरदार देखे हैं। हिंदुस्तान के ही नहीं, दूसरे देशों के भी, तो इन दो सालों में उनका टेस्ट बदल गया है। पिक्चरें वही हैं, पर लोग ये फिल्में एक्सेप्ट नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इन फिल्मों में कॉन्टेंट कम है और प्रपोजल मेकिंग ज्यादा है। ऐसा नहीं है कि लोग सिनेमा हॉल से कट रहे हैं, बस जो आप पहले उनको दे रहे थे, वो उनको चाहिए नहीं। ऐसी बहुत सी फिल्में हैं, जो चली हैं। वो इसलिए चली हैं क्योंकि उन फिल्मों में वो कॉन्टेंट है, वो चीज है, जो दर्शक देखना चाहते हैं या देखना चाहते थे, पर उन्हें मिला नहीं। कुएं का मेंढक जब उससे बाहर निकलता है न तो उसके बाद उसे कुआं अच्छा नहीं लगता है। वैसा ही शायद हुआ है। मैं कोई इस चीज का एक्सपर्ट नहीं हूं, मगर मुझे लगता है कि लोगों का टेस्ट बदल गया है। ऐसा नहीं है कि लोगों ने सिनेमा में जाना बंद कर दिया है। उन्हें सिनेमा में लेकर आने और बांधकर रखने वाला कॉन्टेंट बदल गया है।