Interview: देश की दशा से असंतुष्ट थे शंकराचार्य, पढ़ें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का इंटरव्यू

जो भी संत हिंसा की बातें करता है, वह संत के अनुरूप आचरण नहीं करता। संतों का स्वरूप होता है ‘सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।’ मतलब सब में परमात्मा को देखना, सद्गुणों को बढ़ाना, सबके अंदर जो असत प्रवृत्ति आ गई है उसको हतोत्साहित करना। लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना निश्चित रूप से संतों के स्वरूप के अनुरूप बात नहीं है।

Swami-Avimukteshwaranand
जगद‌्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद

ज्योतिष पीठाधीश्वर जगद‌्गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद के समाधिस्थ होने के बाद अब बद्रीनाथ की ज्योतिष पीठ पर नए शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती आए हैं। बीएचयू से पढ़े स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद पहले भी अक्सर चर्चा में रहे हैं। आज के समय में राजनीति और संत समाज के रिश्ते, धर्म के नाम पर होने वाली भड़काऊ बयानबाजी, स्वतंत्रता आंदोलन के पहले और बाद में संतों की भूमिका जैसे कई मसलों पर

आपने बीएचयू से पढ़ाई की। राजनीति की तरफ आपका कॉलेज के दिनों में ही झुकाव था। फिर आप संन्यासी क्यों बन गए?
मुझे गुरुदेव ही काशी में लेकर आए थे। उन्होंने ही मुझको बीएचयू में पढ़ने भेजा था। उस समय मैंने देखा कि छात्रों को नेतृत्व की जरूरत है। इसलिए छात्रों के हितों के लिए मैंने बीएचयू चुनाव में भी भाग लिया। मैं कभी भी राजनीति में नहीं जाना चाहता था। मेरी बचपन से ही संत के रूप में समाज के लिए कुछ करने की चाहत थी।

47 के पहले संत समाज आजादी के आंदोलन में शामिल था। स्वतंत्रता के बाद इन 75 सालों में संत समाज कितना बदला, क्या परिवर्तन आए?
हमारे गुरु जी स्वयं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, और हम लोग उनसे चर्चा करते रहते थे। वह कहते थे कि अगर हम जानते कि भारत आजादी के बाद ऐसा बनेगा जैसा कि अब है, तो हम स्वतंत्रता आंदोलन में भाग नहीं लेते। वह कहते थे कि उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में इसलिए भाग लिया था कि भारत में स्वतंत्रता के बाद धर्म पालन की छूट होगी। स्कूलों में धार्मिक शिक्षा दी जाएगी। लोगों को धर्म के बारे में बताया जाएगा, पर अब तो कुछ और ही हो रहा है। अंग्रेजों के समय हमारे देश के विद्यालयों में राम और कृष्ण के चित्र लगाए जाते थे। अब वे चित्र उतार दिए गए हैं। हमारे गुरु जी को इस बात का पछतावा होता था कि देश को आजादी के बाद जिस दिशा में जाना था, वह उस दिशा में नहीं गया।

राजनीति और शंकराचार्य के रिश्ते पर आपका क्या कहना है। मतलब आज राजनीति और संत समाज का जो रिश्ता है, उसे आप कैसे देखते हैं?
यह सत्य है कि कई राजनीतिक दल संतों को आपने पाले में करने की कोशिश करते हैं। वे इसे सत्ता पाने का सुगम रास्ता मानते हैं। जैसे किसी पार्टी का व्यक्ति बाद में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति या राज्यपाल बन जाता है तो उसकी राजनीतिक प्रतिबद्धता खत्म हो जाती है और वह सबको साथ लेकर चलने के लिए कार्य करता है, वैसे ही जो व्यक्ति शंकराचार्य पद पर विराजमान होता है, वह हमेशा देश हित में फैसले लेता है। वह इस बात पर चिंतन करता है कि सनातन धर्म और देश का हित किसमें है। राजनीतिक दल तो सिर्फ अपने ही लोगों के विकास पर ध्यान देते हैं। राजनीतिक दलों के मन में अन्य दलों के प्रति विरोधी का भाव रहता है। शंकराचार्य के पद पर आसीन होने वाला संत सबको अपना समझता है। आम तौर पर संतों का राजनीतिक लोगों के साथ कोई रुझान नहीं होता है। यह राजनीतिक लोग समय-समय पर संतों का मार्गदर्शन लेने आते हैं। कुछ साधु संत हैं जो राजनीति की तरफ झुकाव रखते हैं। संतों का एक बड़ा वर्ग राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं लेता है। उनका लक्ष्य समाज का कल्याण व सनातन धर्म का अनुपालन है।

आजकल कई संत भड़काऊ बातें करते हैं, हिंदू-मुस्लिम करने की कोशिश करते हैं, उस पर आपका क्या कहना है?
जो भी संत हिंसा की बातें करता है, वह संत के अनुरूप आचरण नहीं करता। संतों का स्वरूप होता है- ‘सियाराम मय सब जग जानी करहुं प्रणाम जोरि जुग पानी।’ मतलब सब में परमात्मा को देखना, सद‌्गुणों को बढ़ाना, सबके अंदर जो असत प्रवृत्ति आ गई है उसको हतोत्साहित करना। यह किसी भी धर्माचार्य का अहम कार्य है। लोगों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करना निश्चित रूप से संतों के अनुरूप बात नहीं है।

इन दिनों मंदिर-मस्जिद विवाद बहुत बढ़ रहा है। हाल ही में ज्ञानवापी का भी मामला शुरू हुआ है। इस घटनाक्रम को आप कैसे देखते हैं?
यह बात हिंदू-मुसलमान की नहीं है। यह विषय न्याय और अन्याय का है। आप किसी की जमीन पर जबरन कब्जा करके बैठ जाओगे तो जब वह व्यक्ति सक्षम होगा, आपको हटाने का प्रयास करेगा। 1993 में जो कानून बना वह इन मामलों पर ज्यादा प्रभावी नहीं है क्योंकि यह प्राकृतिक न्याय नहीं है। सभी मामलों में कोर्ट ने बेहतर कार्य किया है। राम मंदिर, बाबरी मस्जिद को लेकर सभी पक्ष अपना-अपना दावा करते थे। इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर कोर्ट का निर्णय आया तो सभी लोगों ने इसको स्वीकार किया। ऐसे ही इन तमाम विवादित विषयों पर न्यायालय उचित निर्णय लेगा।

आपको ज्योतिष पीठ बद्रीनाथ के शंकराचार्य के रूप में नई जिम्मेदारी मिली है। अब आपकी क्या प्राथमिकता होगी?
जो दायित्व मेरे गुरुदेव ने मुझको दिया है, इसका ठीक प्रकार से पालन हो, यही मेरी प्राथमिकता होगी। इसके लिए सनातन धर्म की समस्याओं को सूचीबद्ध करके अहम विषयों पर पहले कार्य करने का प्रयास करेंगे। धार्मिक जनता की समस्याओं के निपटारे जैसे कई अहम विषयों पर कार्य किया जाएगा।

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज जी के साथ आपका जुड़ाव कैसा था? उनकी कौन सी बातें आपको जीवन भर याद रहेंगी?
मेरे गुरुदेव की यह बहुत खास बात थी कि वह कभी किसी पर गुस्सा नहीं होते थे। उनके हृदय में सबके लिए अपार प्रेम था। मैंने उनको कभी किसी का अपमान करते नहीं देखा। हम सेवक लोग जरूर कभी-कभी लोगों को डांट दिया करते, पर गुरु देव ने कभी ऐसा नहीं किया। उनकी यही बात मुझे हमेशा याद रहेगी कि सदा विनम्र बने रहना है।