नई दिल्ली: दुनिया भर की अर्थव्यवस्था में महंगाई का नेगेटिव असर (Negative Impact of Inflation) दिख रहा है। इस समय कुछ देशों में महंगाई दर (Inflation Rate) 40 से 50 साल के हाई पर है। कमोडिटी की कीमतों (Commodity Price) में आई जोरदार तेजी से महंगाई की दर कई साल में सबसे ज्यादा हो गई है। वहीं महंगाई को कंट्रोल करने के लिए दुनिया भर के सेंट्रल बैंक ब्याज दरों (Interest Rate) में और एग्रेसिव तरीके से बढ़ोतरी करने को मजबूत हो रहे हैं। इससे इक्विटी मार्केट (Equity Market) पर दबाव बढ़ रहा है और अनिश्चितता की स्थिति बन गई है।
भारत की बात करें तो कमोडिटी इंपोर्टर (Commodity Importer) होने के नाते यहां महंगाई का असर तो है ही, देश की करंसी भी नीचे जा रही है। ऐसे में निवेशकों को क्या करना चाहिए, इस बारे में Baroda BNP Paribas
Mutual Fund के CEO सुरेश सोनी से हमने बातचीत की। वह हमें बता रहे हैं कि मौजूदा माहौल में निवेशकों को कहां पैसा लगाना चाहिए..
- बाजार की मौजूदा हालात देखकर ज्यादातर निवेशकों की चिंता बढ़ गई है। आप इस स्थिति को किस तरह से देख रहे हैं?
इक्विटी मार्केट की बात करें तो यह लॉन्ग टर्म में वेल्थ क्रिएट करते हैं, यानी यहां लंबी अवधि में अच्छी खासी दौलत बनाई जा सकती है। लेकिन इसके लिए निवेशकों को शॉर्ट टर्म में उतार चढ़ाव का भी सामना करना पड़ता है। कई बार कुछ निगेटिव कारणों से बाजार में गिरावट आती है, लेकिन ऐसा लंबे समय के लिए नहीं होता है। मौजूदा साल की बात करें जियो पॉलिटिकल टेंशन, महंगाई कई साल के हाई पर पहुंचने, ब्याज दरों में बढ़ोतरी और आगे मंदी की आशंका के चलते दुनिया भर के शेयर बाजारों में अनिश्चितता पैदा कर दी है। S&P 500 ने 2022 की पहली छमाही में 20.6 फीसदी की गिरावट दर्ज की है, जो 1970 के बाद से किसी साल की सबसे खराब शुरुआत है। हालांकि भारतीय बाजार में कुछ हद तक फ्लेक्सिबिलिटी दिखी, फिर भी इनमें 10-15 फीसदी गिरावट आई। इसमें कमोडिटी की बढ़ रही कीमतों का असर पड़ा है, लेकिन हाई फ्रीक्वेंसी इंडीकेटर्स मजबूत आर्थिक विकास का लगातार संकेत दे रहे हैं। बीते एक साल में बाजार में करीब 15 फीसदी की गिरावट आई है, जबकि कॉर्पोरेट आय में लगभग 20 फीसदी बढ़ोतरी देखने को मिली। इस प्रकार प्रभावी रूप से बाजार के वैल्युएशन में करीब 35 फीसदी की गिरावट आई है। हमारा मानना है कि निवेशकों को अगर इक्विटी में पैसे लगाने हैं तो कम से कम 3 से 5 साल का नजरिया रखें।
- मौजूदा समय की बात करें तो इनफ्लेशन और ब्याज दरों में बढ़ोतरी को लेकर बहुत ज्यादा चर्चा है। ऐसा लग रहा है कि ज्यादातर बड़ी अर्थव्यवस्थाएं अभूतपूर्व महंगाई बढ़ने के चलते जूझ रही हैं। भारत के परिदृश्य के बारे में आपका क्या आकलन है?
कमोडिटी की कीमतों में तेज बढ़ोतरी के चलते दुनिया पिछले 40-50 सालों में सबसे अधिक महंगाई का सामना कर रही है। जिसके चलते केंद्रीय बैंक एग्रेसिव तरीके से ब्याज दरों में बढ़ोतरी के लिए मजबूत हो रहे हैं। एक कमोडिटी इंपोर्टर होने के चलते भारत महंगाइर्द के साथ साथ करंसी के मोर्चे पर भी प्रभावित हुआ है। राहत की बात यह है कि फूड ग्रेन स्टॉक यानी हमारे खाद्यान्न भंडार मजबूत हैं। इससे हमें फूड इनफ्लेशन पर कुछ राहत मिली है। यह भारत के लिए एक सेविंग ग्रेस रहा है। मैंने अपने वर्किंग करियर में पहली बार अमेरिकी इनफ्लेशन को भारत से अधिक होते देखा है। इनफ्लेशन पर केंद्रीय बैंकों की कार्रवाई तेज और निर्णायक रही है। हमने देखा है कि सामान्य तौर पर 25 बीपीएस बढ़ोतरी की बजाए यूएस फेड ने दरों को 75 बीपीएस और आरबीआई ने 50 बीपीएस की दर से बढ़ाया है। मेरा मानना है कि एडजस्टमेंट और अधिक दर्द देने वाला होगा. आरबीआई ने 2 बार में इस साल अब तक नीतिगत दरों में 90 बीपीएस की बढ़ोतरी की है और आगे भी 75-100 बीपीएस की बढ़ोतरी कर सकता है। साल 2022 में बॉन्ड यील्ड पहले ही लगभग 90 से 100 बीपीएस तक बढ़ चुकी है और आगे इसमें बढ़ोतरी मॉडरेट रह सकती है। कमोडिटी की कीमतों में हाल फिलहाल में महत्वपूर्ण गिरावट देखने को मिली है। गेहूं, पाम आयल, मेटल्स, क्रूड आयल जैसी कमोडिटी में नरमी देखने को मिली। बेहतर मॉनसून और ग्लोबल कमोडिटी की कीमतों में नरमी आने से आगे महंगाई के मोर्चे पर भारत को कुछ राहत मिल सकती है। ऐतिहासिक रूप से भारत ने महंगाई की इससे भी ज्यादा उच्च दरें देखी हैं। भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में इनफ्लेशन के मॉडरेट लेवल और यहां तक कि ब्याज दरों में बढ़ोतरी को आसानी से एब्जॉर्ब किया जा सकता है। - म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री के लिए हर संकट एक चुनौती और अवसर की तरह होता है। इसने कोविड के अलग अलग फेज को काफी अच्छी तरह से मैनेज किया है। इस बार इंडस्ट्री का प्रदर्शन कैसा है?
मार्च 2020 से म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री एसेट अंडर मैनेजमेंट यानी ने AUM में 50 फीसदी से अधिक की बढ़ोतरी देखी है। इस बढ़ोतरी को डिजिटलीकरण के साथ निवेशकों में बढ़ रही जागरूकता और उनकी बढ़ रही इनकम से सपोर्ट मिला है। इससे निवेश समाधानों तक पहुंच भी आसान हो रही है। निवेश में आसानी और डाइवर्सिफिकेशन का लाभ मिलने से म्युचुअल फंड निवेशकों के लिए पसंदीदा निवेश का विकल्प बन गया है। आज भी देश में 50 करोड़ रजिस्टर्ड इनकम टैक्स PAN के मुकाबले म्यूचुअल फंडों निवेशकों की भागीदारी सिर्फ तीन करोड़ है। इसलिए आगे इंडस्ट्री में मजबूत ग्रोथ की उम्मीद है। हमारा मानना है कि म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में स्ट्रक्चरल ग्रोथ जारी रहेगी। बाजार के हालिया गिरावट में सभी कैपिटल मार्केट प्रोडक्ट की तरह म्युचुअल फंड इंडस्ट्री में आने वाले इनफ्लो में कुछ कमी आई है। हालांकि, स्ट्रक्चरल ग्रोथ की स्टोरी मजबूत बनी हुई है। - निवेशकों की इमोशनल मैच्योरिटी म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री को सपोर्ट कर रही है। आपका अनुभव कैसा रहा है?
पिछले कुछ सालों के दौराना इंडस्ट्री में हमने जो एक स्वागत योग्य बदलाव देखा है, वह है SIP अकाउंट में मजबूत ग्रोथ। आज सभी इंडस्ट्री फोलियो का लगभग 50 फीसदी SIP निवेशकों के पास है। जिस तरह से SIP को डिजाइन किया गया है, यह निवेशकों को शॉर्ट टर्म वोलैटिलिटी से सुरक्षा देता है और निवेशकों को लंबी अवधि के लिए बचत के लिए बढ़ावा देता है। भारतीय निवेशकों ने मजबूत परिपक्वता दिखाई है और म्यूचुअल फंड में अपने निवेश को बढ़ाने के लिए COVID के दौरान बाजार में आए करेक्शन का इस्तेमाल किया है। इसके अलावा, SIP निवेशकों ने उल्लेखनीय लचीलापन दिखाया है और SIP फ्लो स्थिर बना हुआ है। - मिडकैप और स्मॉलकैप सेगमेंट में तेज गिरावट से परेशानी और बढ़ी है। आप इस स्थिति को कैसे देखते हैं?
लार्ज-कैप जो करंट लीडर्स है, की तुलना में स्मॉल कैप और मिड-कैप सेगमेंट फ्यूचर लीडर्स का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस सेगमेंट में हाई ग्रोथ की क्षमता होती है, लेकिन इनमें वोलैटिलिटी भी ज्यादा रह सकती है। 2018-2019 के दौरान स्मॉल कैप शेयरों ने सबसे खराब प्रदर्शन किया था, लेकिन पिछले 2 साल में इनका प्रदर्शन बेहद मजबूत रहा है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में जब बाजार में अनिश्चितता मौजूद है, लार्ज कैप की तुलना में स्मॉल कैप में अधिक गिरावट देखी गई है। हम वर्तमान समय में स्मॉल कैप की तुलना में लार्ज कैप की ओर जाने की सलाह देंगे। हालांकि, अभी एक सरल दृष्टिकोण से देखें तो फ्लेक्सी कैप फंड निवेशकों के लिए अच्छा विकल्प हो सकता है। यहां फंड मैनेजर वैल्यूएशन पैरामीटर के आधार पर अलग अलग मार्केट कैप के बीच एक्टिवली स्विच कर सकते हैं। निवेशक अपने फाइनेंशियल एडवाइजर या डिस्ट्रीब्यूटर से सलाह लेने के बाद मल्टीकैप में निवेश पर विचार कर सकते हैं।