IPS मधुकर शेट्टी: वो ईमानदर अफ़सर जिसने नक्सलियों के हाथों में बंदूक की जगह किताबें थमाईं

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आज भी सरकारी महकमों की प्रतिष्ठा कुछ ईमानदार और साहसी अफसरों के दम पर बनी हुई है. ऐसे ही एक निडर आइपीएस की कहानी हम आज आपको बताने जा रहे हैं. इनका नाम है मधुकर शेट्टी. आईपीएस मधुकर शेट्टी उन पुलिस अफसरों में से हैं जिन्होंने अपने कर्तव्य के आगे और कुछ नहीं देखा. हालांकि वह अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उन्होंने जिस तरह अपना कर्तव्य निभाया, वो पुलिसवालों के लिए ही नहीं बल्कि हर किसी के लिए मिसाल की तरह है. 

कौन थे मधुकर शेट्टी ?

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आईपीएस मधुकर शेट्टी का नाम उन पुलिस अधिकारियों में लिया जाता है जिन्होंने अपने फर्ज से कभी समझौता नहीं किया. मधुकर शेट्टी का जन्म 17 दिसम्बर 1971 में कर्नाटक के उडुपी जिले के यडाडी गांव में हुआ था. मधुकर शेट्टी अपने कर्तव्य के प्रति इतने समर्पित कैसे थे, ये समझने के लिए सिर्फ यही जानना काफ़ी है कि वह मशहूर कन्नड पत्रकार वड्डारसे रघुराम शेट्टी के पुत्र थे. 

रघुराम शेट्टी को आम जनता का पत्रकार माना जाता था जो दलितों और असहाय लोगों की आवाज़ बनें. उनके द्वारा शुरू किए गये मुंगारू कन्नड डेली समचारपत्र को कन्नड पत्रकारिता में एक क्रांती के रूप में देखा जाता है. पत्रकारिता में इनके अमूल्य योगदान के लिए इन्हें कई पुरस्कार भी प्राप्त हुए. 2001 में रघुराम इस दुनिया से चल बसे लेकिन उनको कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी जैसे गुणों को उनके पुत्र मधुकर ने अपने भीतर सहेज कर रखा. 

शिक्षा व यूपीएससी में चुनाव

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मधुकर की प्रारंभिक शिक्षा उनके गृह जिले उडुपी में हुई. इसके बाद इन्होंने आगे की पढ़ाई दिल्ली से पूरी की. मधुकर ने दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी से साईक्लॉजी में एमए की तथा फिर यूपीएससी की तैयारियों में जुट गए. मेहनत रंग लाई तथा 1998 में मधुकर ने बेहतरीन ऑल इंडिया रैंक के साथ यूपीएससी परीक्षा पास कर ली. 

मधुकर ने यूपीएससी की परीक्षा भले ही पास कर ली थी लेकिन एक अहम परीक्षा अभी आगे बाक़ी थी. उन्हें अब वो विभाग चुनना था जहां से वो अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते थे. उनके पास दो विकल्प थे, पहला आईआरएस यानी भारतीय राजस्व विभाग तथा दूसरा आईपीएस यानी पुलिस विभाग. राजस्व विभाग में जा कर वो आराम की नौकरी चुन सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया. शायद वह पहले ही अपने आपको पुलिस सेवा के लिए समर्पित कर चुके थे. इस तरह मधुकर शेट्टी कर्नाटक कैडर से 1999 बैच के आईपीएस ऑफिसर बन गये. 

नौकरी को बीच में छोड़ कर की थी पढ़ाई पूरी 

कई सालों तक मधुकर ने पुलिस में अपनी सेवाएं दीं. सख्त फैसले लेते हुए इन्होंने ऐसे ऐसे काम किए कि पूरा देश इनके नाम से वाकिफ़ हो गया. एक तरह से मधुकर ने बहुत कुछ पा लिया था लेकिन इसके बावजूद भी वो अपनी शिक्षा से संतुष्ट नहीं थे. एक प्रबुद्ध इंसान जानता है कि इस समाज को गहराई तक जानने के लिए जितनी भी विद्या अर्जित की जाए उतना ही कम है. 

शायद यही कारण था कि वह अपने काम को कुछ दिनों का विराम दे कर स्टडी लीव ले कर अमेरिका चले गये. यहां इन्होंने अल्बनी यूनिवर्सिटी के रॉकफेल्लर कॉलेज ऑफ़ पब्लिक अफेयर्स एंड पॉलिसी से पब्लिक ऐडमिनिस्ट्रेशन में अपनी पीएचडी पूरी की. इसके साथ ही आईपीएस मधुकर शेट्टी डॉ मधुकर शेट्टी हो गए. यहां से लौटने के बाद शेट्टी ने 2016 में हैदराबाद की सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी में डिप्टी डायरेक्टर का पदभार संभला. 

इन कारणों से बने रहे सुर्खोयों में  

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इस लंबे कद के हीरो जैसे दिखने वाले आईपीएस अधिकारी ने अपनी बहाली के बाद से कई पदों पर काम किया. हर ईमानदार अधिकारी की अपनी एक पहचान होती है. कोई शिक्षा के क्षेत्र में काम करने के लिए जाना जाता है तो कोई आम जनता के हितों की रक्षा करने के लिए.

मधुकर शेट्टी की पहचान बने उनके वो सख्त फैसले जो उन्होंने भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए उठाए. अपने फर्ज को लेकर मधुकर जितने ही कठोर थे उतने ही निर्भीक भी. वह फ़ैसला लेते हुए कभी ये नहीं सोचते थे कि वह किस पर हाथ डालने जा रहे हैं. 

2009 में जब शेट्टी लोकायुक्त में एसपी की पोस्ट पर थे तब लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े ने बेईमान और भ्रष्टाचारी नेताओं पर लगाम कसने के लिए एक टीम बनायी थी. शेट्टी भी उसी टीम का हिस्सा थे. इसके बाद से शेट्टी को उनके साहसी फैसलों के कारण याद किया जाने लगा. 

शेट्टी को देश भर की सुर्खियों में तब जगह मिली जब उन्होंने बेल्लारी अवैध खनन का पर्दाफाश किया. इसके अलावा उन्हें कर्नाटक के सिटिंग एमएलए वाई सम्पंगी को गिरफ्तार किया. गली जनार्धन रेड्डी, पूर्व मंत्री कट्टा सुब्रमन्या नायडू तथा उसके पुत्र कट्टा जगदीश को गिरफ्तार कर के सनसनी फैला दी. 

नक्सलवाद पर किया शानदार काम

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भ्रष्टाचार पर लगाम कसने के अलावा उन्हें एक और कारण से भी याद किया जाता है. हमारे देश के कई क्षेत्र नक्सल प्रभावित हैं. यहां आए दिन नक्सलियों से पुलिस मुठभेड़ की खबरें आती रहती हैं. इन मुठभेड़ों में कभी हमारे जवान तो कभी वे नक्सली मारे जाते हैं जिन्हें भ्रमित कर के उनके हाथों में बंदूकें थमा दी गईं.

मधुकर शेट्टी का मानना था कि ये नक्सली कहीं बाहर से नहीं आए, ये सब हमारे ही देश के वे नागरिक हैं जो शिक्षा के अभाव तथा गलत मार्गदर्शन के कारण भटक गए. यही कारण था कि शेट्टी ने इनसे भिड़ने की बजाय इन्हें समझाने का रास्ता चुना. इनके इसी फैसले ने बहुत कम समय में यहां के लोगों के दिल में इनके लिए एक खास जगह बना दी. 

शेट्टी 24 अगस्त 2005 को नक्सल प्रभावित चिक्कमगलुर के एसपी बने तथा 28 अप्रैल 2006 को इनका यहां से तबादला हो गया. मात्र आठ महीने ही ये यहां रहे लेकिन इन आठ महीनों में ही इन्होंने यहां के लोगों में ऐसी उम्मीद जगाई जिसके लिए लोग आज भी इन्हें याद करते हैं. 

अपनी जान की परवाह किए बिना ये नक्सलियों के गांव तक पहुंच जाते और वहां के लोगों से मिल कर उनकी समस्याएं सुनते तथा उन्हें समझाते कि यहां के युवा केवल शिक्षा के अभाव में भटके हैं. इन्हें शिक्षित होना होगा जिससे ये बंदूक छनने की बजाए अपने सुनहरे भविष्य को चुन सकें. 

इसके अलावा शेट्टी ने हर गांव में एक कांस्टेबल नियुक्त कर दिया था जिसे स्थानीय यलोग अपनी शिकायत बता सकें. शेट्टी का एक ही मकसद था कि वह इन लोगों को भरोसा दिला सकें कि पुलिस का काम सिर्फ लोगों की सुरक्षा करना है. 

इतना ही नहीं एसपी शेट्टी तथा उस समय जिले के कलेक्टर हर्ष गुप्ता ने मिल कर 65 एकड़ ज़मीनों पर से अवैध कब्जे हटा कर, उन्हें यहां के 32 दलित परिवारों में बांट दिया. यहां के लोग मानते हैं कि अगर शेट्टी का तबादला यहां से ना होता तो आज इनके गांवों की तस्वीर कुछ अलग ही होती. आज भी जो बदलाव इन्हें मिले हैं उनका कारण ये लोग डॉ. शेट्टी को ही बताते हैं. लोगों की मानें तो इन गांवों में बनी सड़कें तथा अन्य सुविधाऐं मधुकर शेट्टी के कारण ही संभव हो पाईं.   

डॉ. मधुकर शेट्टी

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अपने करियर में मधुकर शेट्टी ने कई जिलों तथा विभागों की बागडोर अपने हाथों में संभाली. वह लोकायुक्त में एसपी रहे. इसके अलावा शेट्टी विरप्पन को पकड़ने के लिए गठित स्पेशल टास्क फोर्स का भी हिस्सा रहे. वह एसटीएफ में एसपी के पद पर थे. इसे ऑपरेशन कोकून का नाम दिया गया था. वह एंटी नक्सल फोर्स में भी एसपी के पद पर रहे । इसके अलावा वह चमाराजानगर जिले के एसपी भी रहे.

शेट्टी ने बंगलूरू के ट्रेफिक डिविजन में डीसीपी का पद भी संभाला तथा वह बंगलूरू रूरल डिस्ट्रिक्ट के एएसपी भी रहे. मधुकर शेट्टी ने अपने करियर में जो सबसे बड़ा पद संभला वो था कर्नाटक पुलिस एकेडमी के आईजीपी का पद. डॉ. शेट्टी के निधन से पहले वह हैदराबाद की सरदार वल्लभभाई पटेल नेशनल पुलिस एकेडमी में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर थे. 

मधुकर शेट्टी का निधन 

वैसे तो कहते हैं मौत पर किसी का ज़ोर नहीं लेकिन जब कोई चलता फिरता इंसान अचानक से ही काल के गाल में समा जाता है तो हर कोई ऐसी मौत पर संदेह जताने लगता है. मधुकर शेट्टी की मौत भी कई तरह के सवाल खड़े कर गई. मधुकर शेट्टी को हृदय संबंधी समस्या के कारण हैदराबाद एक हॉस्पिटल में दाखिल किया गया. 

उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने मीडिया को बताया कि वह एच1एन1 यानी स्वाईन फ्लू से संक्रमित हैं. इस संक्रमण के कारण उनका हार्ट तथा किडनी इन्फेक्टेड हो गये हैं. यही कारण बता कर 26 दिसम्बर कर डॉ. शेट्टी की सर्जरी की गई तथा उन्हें 72 घंटे क्लोज़ ओब्सर्वेशन में रखा गया.

इस दौरान हर समय डॉ. शेट्टी पर पुलिस की अलग अलग टीमों द्वारा ध्यान रखा जा रहा था. इसके अलावा कई बड़े अधिकारी समय समय पर उनका पता लेने आ रहे थे. सबको पूरी उम्मीद थी कि शेट्टी जल्द ही स्वस्थ हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. 28 दिसम्बर को अचानक से 47 वर्षीय शेट्टी की सांसें थम गईं. 

ये हर किसी के लिए चौंका देने वाली खबर थी. मीडिया के अनुसार किसी पुलिस वाले के निधन पर पुलिस विभाग तथा राजनीतिक गलियारों में पहले ऐसी शोक की लहर नहीं देखी गई थी. हर कोई हैरान था, दुखी था. 

मौत पर उठे कई सवाल 

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मधुकर शेट्टी तो चले गये लेकिन उनके पीछे कई सवाल छूट गये जिनका जवाब आज तक सामने नहीं आया. सबसे पहले ये सवाल उनकी पत्नी ने उठाए. दरअसल मधुकर की मौत का कारण पहले स्वाईन फ्लू बताया गया लेकिन फिर ये कहा गया कि उनकी मृत्यु हृदय संबंधी बीमारी के कारण हुई है. 

इसके बाद मधुकर के परिवार व उनके दोस्तों ने मौत के सही कारण बताने की मांग की. इसी मांग को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार ने एक कमेटी का गठन किया गया. जिसका काम मधुकर शेट्टी की मौत का असल कारण पता लगाना था लेकिन यह कमेटी भी शेट्टी की मौत के कारणों का पता नहीं लगा पाई. 

मधुकर शेट्टी की मृत्यु चाहे जिन कारणों से हुई हो लेकिन हकीक़त ये है कि हमने अपने एक होनहार और ईमानदार ऑफिसर को खो दिया. मधुकर जैसे ऑफिसरों को कभी भी सही तरीके से काम नहीं करने दिया जाता. वह जहां कुछ अच्छा करने की कोशिश करते हैं वहां से उनका ट्रांसफर कर दिया जाता है. 

हमारे न्याय तथा पुलिस व्यवस्था के कमज़ोर पड़ने का सबसे मुख्य कारण यही है. जिस दिन मधुकर शेट्टी जैसे लोगों को उनके मन मुताबिक बिना ट्रांसफर का दंश झेले काम करने का मौका मिल जाएगा उसी दिन से बदलाव की शुरुआत हो जाएगी.