नक्सल प्रभावित इलाकों में शांति बहाली की बात हो, चंदन तस्कर वीरपप्पन को ढेर करने की बात हो, या फिर जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद वहां शांति व्यवस्था बनाए रखने में भूमिका की बात हो. हर जगह एक ही नाम सुर्खियों में रहा और वह नाम है IPS के. विजय कुमार. वही के. विजय कुमार, जो फिलहाल केंद्रीय गृह मंत्रालय में नेशनल सिक्योरिटी एडवाइज़र के तौर पर कार्यरत हैं, मगर उनका अब तक का सफ़र बहुत प्रेरणादायक हैं. आइए जानते हैं कि के. विजय कुमार ने अपने करीब 40 साल के पुलिसियां करियर में सफलता की सीढ़िया कैसे चढ़ी.
1975 के तमिलनाडु कैडर में IPS अफसर बने थे विजय कुमार
के. विजय कुमार ने 15 सितंबर 1950 को तमिलनाडु में रहने वाले एक रिटायर्ड पुलिस अफसर के घर जन्म लिया. नाम था कृष्णन नायर. कृष्णन और उनकी पत्नी कौशल्या यानी विजय की मां ने उन्हें बचपन से हर वो सुविधा दी, जोकि उनके लिए ज़रूरी थी. विजय ने भी मां-बाप से मिली सुविधाओं को लाभ उठाया और खुद को पढ़ाई की तरफ़ केंद्रित किया. स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने सेंट जोसेफ़ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की.
आगे पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए वो मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज गए. अपनी पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने तय किया वो पुलिस की नौकरी करेंगे. जबकि, उनके दादा चाहते थे कि विजय एक IAS अधिकारी बनें. विजय के पुलिसिया करियर की शुरुआत बहुत बढ़िया रही. 1975 में तमिलनाडु कैडर में आईपीएस बनने के बाद उनकी पहली तैनाती पट्टुकोट्टई में बतौर सहायक अधीक्षक के रूप में हुई. आगे प्रमोशन के बाद वो पुलिस अधीक्षक के रूप में धर्मपुरी पहुंचे,
पूर्व PM राजीव गांधी की SPG टीम का भी हिस्सा रहे विजय
अपनी नौकरी के दौरान विजय कुमार को भारत के पूर्व प्रधान मंत्री राजीव गांधी की सुरक्षा टीम का सदस्य बनने का मौका भी मिला. वो 1985 से 1990 तक SPG का हिस्सा रहे. आगे डिंडीगुल, और वेल्लोर जैसे जिले में वो बतौर एसपी बनकर पहुंचे. इसी क्रम में जब पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को सुरक्षा प्रदान करने के लिए विशेष सुरक्षा समूह का गठन हुआ तो विजय कुमार का नाम इसमें शामिल किया गया था.
1997 में दक्षिणी जिलों में जातिगत झड़पों को संभालने के बाद उन्हें तमिलनाडु के दक्षिण क्षेत्र का पुलिस महानिरीक्षक बना दिया गया था. विजय कुमार को 1998 से 2001 तक बीएसएफ के आईजी के तौर पर कश्मीर घाटी में अपनी सेवाएं देने के लिए भेजा गया था. यहां तक के सफ़र में विजय कुमार जंगलों में एंटी टेररिस्ट ऑपरेशन चलाने के लिए बेस्ट माने जाने लगे थे. सभी की जुबान पर उनका नाम आम हो गया था.
2010 में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सली हमले में सीआरपीएफ के 75 जवानों के शहीद होने के बाद विजय कुमार ही थे, जिन्हें सीआरपीएफ का डीजी बनाकर भेजा गया था, ताकि वो नक्सलियों पर लगाम लगा सकें. कुल मिलाकर हर मौके पर विजय कुमार ने खुद को साबित किया और अपनी जिम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से बखूरी निभाया.
ऑपरेशन ‘कोकून’ के तहत वीरप्पन का खात्मा करने वाले IPS
के. विजय कुमार की काबलियत को देखते हुए उन्हें स्पेशल टास्क फोर्स में तैनाती के दौरान कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन को मार गिराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी. विजय के लिए यह काम आसान नहीं था. वीरप्पन को खत्म करने के लिए पहले भी पुलिस द्वारा प्रयास किए जा चुके थे. मगर किसी को सफलता नहीं मिली थी.
ऐसे में एसटीएफ टीम का नेतृत्व करते हुए के. विजय कुमार एक अलग रणनीति के तहत वीरप्पन का खेल खत्म करने के लिए आगे बढ़े. सबसे पहले उन्होंने वीरप्पन से जुड़ी छोटी-बड़ी सभी तरह की ख़ुफ़िया जानकारियां जमा करना शुरू किया. फिर वीरप्पन को पकड़ने के लिए ऑपरेशन ‘कोकून’ का भी नेतृत्व किया.
इसी दौरान उन्हें पता चला कि वीरप्पन अपनी आंख की समस्या से जूझ रहा था. विजय कुमार ने इसका फायदा उठाते हुए वीरप्पन को जंगल से बाहर निकालने का एक प्लान तैयार किया, जिसमें वीरप्पन फंस गया. 18 अक्टूबर 2004 को तमिलनाडु के धरमपुरी जंगल के पास वीरप्पन विजय कुमार और उनकी टीम के हत्थे चढ़ गया. करीब 15 मिनट चली मुठभेड़ में 300 से अधिक राउंड गोलियां चलीं, जिसमें अंतत: वीरप्पन को मारा गिराया गया.
कश्मीर में राज्यपाल सत्यपाल मलिक के मुख्य सलाहकार बने थे
2012 में रिटायरमेंट के बाद के विजय का नाम उस वक्त लोगों की जुबान पर फिर से चढ़ा, जब मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के बाद उन्हें शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए राज्यपाल का सलाहकार बनाकर भेजा. इस दौरान डोभाल जब-जब कश्मीर गए वो विजय कुमार से मिले और कश्मीर की स्थिति जानी. कहा जाता है कि विजय कुमार ने राज्यपाल सत्यपाल मलिक और अजीत डोभाल के बीच एक पुल का काम किया था.
फिलहाल वो केंद्रीय गृह मंत्रालय में नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर के तौर पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. विजय कुमार ने वीरप्पन के खिलाफ चलाए ऑपरेशन पर ‘चेजिंग द ब्रिगेड’ नाम की एक किताब भी लिखी है, जोकि चर्चा का विषय रही. इस किताब में उन्होंने अपने ऑपरेशन से जुड़े कई पहलू सार्वजनिक किये.