यूक्रेन जंग के बीच रूस के साथ भारत का कारोबार जारी है. इस बीच ईरान की सरकारी शिपिंग कंपनी ने भारत और रूस के बीच नए ट्रेड कॉरिडोर के जरिए माल पहुंचाकर इतिहास रच दिया है. कंपनी ने रूस से भारत तक माल पहुंचाने के लिए अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन कॉरिडोर (INSTC) का इस्तेमाल किया. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान के एक अधिकारी ने बताया कि यूक्रेन और रूस के बीच जारी युद्ध का व्यापार पर और विपरीत असर ना पड़े, इसलिए नए ट्रेड कॉरिडोर की टेस्टिंग की गई. बता दें कि रूसी कार्गो में लकड़ी के लेमिनेट शीट से बने दो 40-फुट (12.192 मीटर) कंटेनर हैं, जिनका वजन 41 टन है.
7200 किलोमीटर लंबे इस ट्रेड रूट में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को बॉयपास कर दिया गया है. अगर यही माल रूस से स्वेज नहर के जरिए भारत पहुंचता, तो इसे 16112 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती. ऐसे में अगर यह ट्रेड कॉरिडोर एक्टिव हो जाता है, तो न सिर्फ भारत और रूस के बीच ट्रेड में जबरदस्त इजाफा होगा, बल्कि ईरान और कजाकिस्तान के साथ भी व्यापारिक संबंध मजबूत होंगे.
कैसे भारत पहुंचा रूस का माल?
रिपोर्ट के मुताबिक, सेंट पीटर्सबर्ग में बना माल अस्त्रखान में कैस्पियन सागर के किनारे स्थित रूसी पोर्ट सोल्यंका लाया गया. यहां से शिप के जरिए माल को ईरान के अंजली कैस्पियन पोर्ट लाया गया. अंजलि पोर्ट से माल को सड़क मार्ग के जरिए होर्मुज की खाड़ी के किनारे स्थित बंदर अब्बास लेकर जाया गया. फिर यहां से शिप के जरिए अरब सागर के रास्ते इस माल को मुंबई पोर्ट पर पहुंचाया गया.
हालांकि, रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया कि कॉरिडोर की टेस्टिंग करने के लिए कार्गो को कब रवाना किया गया या शिपमेंट में किस तरह के माल हैं.
पाकिस्तान-अफगानिस्तान को किया गया बॉयपास
INSTC परिवहन गलियारे में रूस से निकला माल कैस्पियन सागर, कजाकिस्तान, ईरान और अरब सागर होते हुए भारत पहुंचेगा. इस रास्ते से अफगानिस्तान और पाकिस्तान को हटाने से परिवहन के दौरान माल को खतरा भी कम होगा। इसके अलावा माल ढुलाई में सरकारी दखलअंदाजी के कारण बेवजह लेटलतीफी से भी मुक्ति मिलेगी. पिछले कई साल से भारत, रूस और ईरान आपसी व्यापार को बढ़ाने के लिए बातचीत कर रहे हैं.
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समय और ढुलाई लागत आएगी कमी
अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक मामलों के जानकारों का मानना है कि INSTC से परिवहन लागत में 30 फीसदी तक कमी हो सकती है. इतना ही नहीं, इससे भारत और रूस के बीच माल ढुलाई के समय में भी 40 फीसदी की बचत की जा सकती है. (एजेंसी इनपुट के साथ)