भारत आए ईरानी विदेश मंत्री ने पैग़ंबर मोहम्मद मुद्दे पर कही अहम बात- प्रेस रिव्यू

ईरान के विदेश मंत्री के साथ एस जयशंकर

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पैग़ंबर मोहम्मद पर बीजेपी के दो प्रवक्ताओं की विवादित टिप्पणी के बाद इस्लामिक देशों के विरोध के बीच भारत दौरे पर आए ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है कि इस मामले में भारत सरकार की ओर से की गई कार्रवाई से संतुष्ट हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द हिंदू ने इस ख़बर को प्रमुखता से जगह दी है. प्रेस रिव्यू में सबसे पहले आज यही ख़बर पढ़िए.

ईरान के विदेश मंत्री हुसैन आमिर अब्दुलाहयन इस्लामिक सहयोग संगठन यानी ओआईसी सदस्य देशों के पहले नेता हैं, जिन्होंने पैग़ंबर विवाद छिड़ने के बाद भारत का दौरा किया है.

बीते रविवार को ही ईरान के विदेश मंत्रालय ने भारतीय राजदूत को समन भेजकर पैग़ंबर पर टिप्पणी के प्रति आपत्ति दर्ज की थी. ईरान के साथ ही क़रीब दर्जन भर देशों ने इस बयान पर आधिकारिक तौर पर विरोध दर्ज कराया था. बीजेपी ने बढ़ते विरोध को देख अपने एक प्रवक्ता को निलंबित और दूसरे को निष्कासित कर दिया था.

बीते साल ईरान के विदेश मंत्री का पदभार संभालने के बाद ये अब्दुलाहयन का पहला भारत दौरा है. इस दौरान उन्होंने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजित डोभाल से मुलाक़ात की और विदेश मंत्री एस.जयशंकर के साथ द्विपक्षीय वार्ता की, जिसमें दोनों नेताओं ने नागरिक और व्यावसायिक मामलों में परस्पर सहयोग के संबंध में एक समझौते पर हस्ताक्षर किए.

ईरान के विदेश मंत्री गुरुवार को मुंबई में रहेंगे और इसके बाद वो हैदराबाद जाएंगे.

फ़ारसी भाषा में जारी बयान में ईरान के विदेश मंत्री ने कहा कि उन्होंने सत्ताधारी पार्टी के सदस्यों की ओर से दिए गए विवादित बयान का मुद्दा अजित डोभाल के सामने उठाया और इस पर मिली उनकी प्रतिक्रिया से अब्दुल्लाहयान संतुष्ट हैं.

ईरान के विदेश मंत्री ने कहा है, “भारत पहुँचने के बाद से, मैंने महसूस किया है कि भारत सरकार सत्ताधारी पार्टी के सदस्य की टिप्पणी से सहमत नहीं है और उसे मज़बूती से ख़ारिज कर रही है.”

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हालाँकि, इस पर एनएसए कार्यालय ने कोई टिप्पणी नहीं की है और न ही कोई बयान जारी किया है.

बयान में कहा गया है कि दोनों पक्षों ने कई प्रस्तावों पर चर्चा की, ख़ासतौर पर चाबहार बंदरगाह, अंतरराष्ट्रीय नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर के साथ-साथ व्यापार और निवेश पर. बयान में ये भी कहा गया है कि अब्दुल्लाहयान ने इस दौरान ये भी घोषणा की थी कि ईरान ने भारत के साथ संबंधों को विस्तार देने पर “कोई प्रतिबंध” नहीं लगाया हुआ है.

विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है, “दोनों पक्ष ने इस बात पर सहमति ज़ाहिर की है कि चाहबार पोर्ट ने अफ़गानिस्तान पहुँचने की राह को आसान किया है. अफ़गानिस्तान ऐसा देश है जिसकी सीमा बंदरगाह विहीन है या वो लैंडलॉक्ड है. दोनों देशों के अधिकारी जल्द ही इसके संचालन से जुड़े पहलुओं पर चर्चा के लिए मिलेंगे.”

हालाँकि, इस बयान में कहीं भी ये ज़िक्र नहीं था कि क्या भारत और ईरान तेल आपूर्ति और ईरान के तेल-गैस कारोबार में भारतीय निवेश सहित ऊर्जा के क्षेत्र में कुछ व्यापार और निवेश बहाल करने पर चर्चा करेंगे. साल 2019 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से प्रतिबंधों की धमकी देने के बाद से ही इन दोनों क्षेत्रों में काम नहीं किया है.

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ईरान के विदेश मंत्री के दौरे की टाइमिंग है अहम

ईरानी विदेश मंत्री का दौरा ऐसे समय में हो रहा है, जब ईरान का सामना इसी सप्ताह इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी से होने वाला है. वियना में आईएई बोर्ड ऑफ़ गवर्नर की बैठक होने वाली है, जहाँ ईरान के न्यूक्लियर रिकॉर्ड पर चर्चा की जाएगी.

अमेरिका, फ़्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन ने ईरान की परमाणु तकनीकी में हो रही प्रगति और आईएईए के साथ ‘अपर्याप्त सहयोग’ पर आपत्ति दर्ज करने के लिए प्रस्ताव पारित किया था. ईरान के एटॉमिक एनर्जी बोर्ड ने बुधवार को ही ये एलान किया है कि वो विरोध स्वरूप एक परमाणु साइट से आईएईए के कैमरा बंद कर रहा है.

बयान में ये भी नहीं बताया गया है कि तालिबान को लेकर दोनों देशों के बीच किस तरह की वार्ता हुई लेकिन अब्दुल्लाहयान को हवाई अड्डे पर लेने के लिए जॉइंट सेक्रेटरी (ईरान, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान) जे.पी. सिंह पहुँचे थे, जो बीते सप्ताह ही तालिबान के कार्यकारी विदेश मंत्री मुत्ताक़ी सहित अन्य अधिकारियों से मिलने के लिए काबुल दौरे पर गए थे.

इसके अलावा ईरानी विदेश मंत्री का दौरा इसराइल के रक्षा मंत्री बेनी गैंट्ज़ के भारत दौरे के कुछ ही सप्ताह बाद हुआ है. इससे ये संकेत मिलते हैं कि भारत दो चिर प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है. इस साल मार्च में कोरोना संक्रमित होने की वजह से इसराइली प्रधानमंत्री नेफ़्टाली बेनेट ने अपना भारत दौरा स्थगित कर दिया था. हालाँकि, अगले कुछ महीनों में वो भारत आ सकते हैं.

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अमेरिकी जनरल ने चेताया, लद्दाख में सीमा के पास चीन की गतिविधियां चिंताजनक

आर्मी चीफ़ मनोज पांडे के साथ अमेरिकी जनरल चार्ल्ड फ्लिन

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अमेरिका के एक शीर्ष जनरल ने कहा है कि लद्दाख में भारत से लगती सीमा के पास चीन के कुछ रक्षा बुनियादी ढांचे स्थापित करना ‘चिंताजनक’ है और ‘आंख खोलने वाली’ हैं.

अंग्रेज़ी अख़बार द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, भारत के दौरे पर आए अमेरिकी सेना के प्रशांत क्षेत्र के कमांडिंग जनरल चार्ल्स ए. फ्लिन ने मीडिया से बातचीत के दौरान कहा, “मेरा मानना है कि चीन की गतिविधि चिंताजनक हैं. मुझे लगता है कि कुछ पश्चिमी थिएटर कमांड में कुछ बुनियादी ढांचे का निर्माण चिंताजनक है.”

हालाँकि उन्होंने ये भी कहा कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के अस्थिर करने वाला और दबाव बढ़ाने वाले व्यवहार से चीन को कोई मदद नहीं मिलेगी. फ्लिन ने कहा कि जब कोई चीन के सैन्य शस्त्रागार को देखता है, तो उसे यह सवाल पूछना चाहिए कि इसकी ज़रूरत क्यों है.

चीनी सेना की पश्चिमी थिएटर कमान भारत की सीमा से लगी है.

भारत और चीन की सेना के बीच साल 2020 से ही पूर्वी लद्दाख में तनावपूर्ण संबंध बने हुए हैं. उस समय पेंगोंग त्सो क्षेत्रों में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी.

भारत और चीन के बीच सैन्य और कूटनीतिक वार्ताओं के संबंध में अमेरिकी जनरल ने कहा, “मुझे लगता है कि वार्ता मदद करेगी लेकिन यहाँ व्यवहार भी मायने रखना है. तो मेरा मानना है कि वो (चीन) जो कह रहा है वो अलग बात है लेकिन जो वो जिस तरह का व्यवहार कर रहा है वो चिंताजनक है और इससे सबको चिंतित होना चाहिए.”

भारत और चीन ने पूर्वी लद्दाख विवाद को सुलझाने के लिए अब तक 15 दौर की सैन्य वार्ता की है.

दोनों पक्षों के बीच राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद पैंगोंग त्सो के उत्तर और दक्षिणी तट और गोगरा से सैनिकों को हटा लिया गया था.

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स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिए संकेत, जनसंख्या नियंत्रण क़ानून की फ़िलहाल योजना नहीं

जनसंख्या नियंत्रण कानून

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अंग्रेज़ी अख़बार द टाइम्स ऑफ़ इंडिया ने स्वास्थ्य मंत्रालय के शीर्ष अधिकारियों के हवाले से लिखा है कि सरकार जनसंख्या नियंत्रित करने की कोई योजना नहीं बना रही है.

सूत्रों के हवाले से अख़बार ने लिखा है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया जबरन जनसंख्या नियंत्रित करने के विचार के ख़िलाफ़ हैं. उनका कहना है कि ऐसे समय में जब जागरूकता अभियानों का असर दिखने लगा है, वैसे में जनसंख्या नियंत्रित करना सही नहीं है.

स्वास्थ्य मंत्रालय के एक शीर्ष अधिकारी ने कहा, “हम जनसंख्या नियंत्रण को लेकर किसी प्रस्ताव या कानून लाने पर काम नहीं कर रहे हैं.”

भारत की टोटल फर्टिलिटी रेट (टीएफ़आर) साल 2015-16 में 2.2 थी लेकिन ये 2019-21 में घटकर 2.0 रह गई. एनएफ़एचएस-5 डेटा से भी ये पता लगता है कि सभी धर्मों की महिलाएं अब औसतन पहले की तुलना में कम बच्चों को जन्म देती हैं.

हाल ही में केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण मंत्री प्रहलाद पटेल ने कहा था कि देश में जल्द ही जनसंख्या नियंत्रण क़ानून लाया जाएगा. पटेल के बयान के बाद से ही ये चर्चा तेज़ हो गई थी कि सरकार इसी साल केंद्रीय मंत्री मांडविया की ओर से संसद में दिए गए उस रुख से पीछे हट रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जनसंख्या वृद्ध दर घटने की वजह से अब इसे नियंत्रित करने के लिए कानून की ज़रूरत नहीं है.

हालाँकि, प्रहलाद पटेल के बयान को बल तब मिला जब बीजेपी चीफ़ जेपी नड्डा ने भी हाल ही में ये कहा कि जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर चर्चा जारी है और कानून बनने की प्रक्रिया समय लेती है.

नड्डा के बयान पर सवाल किए जाने पर स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने टिप्पणी करने से ये कहते हुए इनकार कर दिया कि उन्हें नहीं मालूम नड्डा ने किस संदर्भ में ऐसा कहा.