रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद से ही ये आशंका ज़ाहिर की जा रही है कि चीन भी ताइवान पर इसी तरह की कार्रवाई को अंजाम दे सकता है.
इस बीच जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने पिछले हफ़्ते अपने ब्रिटेन दौरे पर चेताया है कि जो यूक्रेन के साथ हुआ वह ताइवान के साथ भी हो सकता है और इस क्षेत्र में स्थिरता न सिर्फ़ जापान की सुरक्षा के लिए बल्कि पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय की सुरक्षा के लिए ज़रूरी है. उनका इशारा सीधे चीन की ओर था.
दूसरी ओर अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी सीआईए के डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने भी कहा है कि चीन यूक्रेन में रूस के हमले पर पैनी नज़र रखे हुए है और इससे ताइवान को लेकर उसके आकलन भी प्रभावित हो रहे हैं.
भारत पहले से ही चीन की आक्रामकता झेल रहा है. अप्रैल 2019 के बाद से लेकर अब तक एलएसी पर यथास्थिति बनाए रखने के लिए चीन के साथ कई दौर की सैन्य वार्ताएं हो चुकी हैं, जिनमें से अधिकांश बेनतीजा रही हैं. अब जापान के प्रधानमंत्री ने कहा है कि चीन पूर्वी एशिया की यथास्थिति बदलने की कोशिश कर सकता है.
कहा जा रहा है कि जापान के पीएम किशिदा का बयान भारत के लिए भी चिंता का विषय हो सकता है. भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने हाल ही में कहा था कि एशिया में नियम आधारित व्यवस्था को चुनौती मिल रही है लेकिन पश्चिम के देश इस पर ख़ामोश रहे और यूक्रेन के मामले में भारत पर दबाव बनाया जा रहा है.
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भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया वाले गुट क्वॉड में भारत एकमात्र देश है, जिसने यूक्रेन के मामले में रूस की निंदा नाम लेकर नहीं की है. भारत को आशंका है कि उसने रूस की निंदा की तो चीन और रूस की क़रीबी और बढ़ जाएगी, जो कि भारत के लिए ठीक नहीं होगा.
जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका तीनों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं और रूस ने भी जवाबी प्रतिबंध लगाए हैं. जापान के प्रधानमंत्री ने भले चीन को लेकर पर पूर्वी एशिया की यथास्थिति बदलने की आशंका जताई है लेकिन चीन दक्षिण एशिया में ऐसा पहले ही कर चुका है. भारत चीन के साथ सीमा विवाद को द्विपक्षीय मामला बताता है लेकिन अब तक द्विपक्षीय वार्ता से चीन विवादित इलाक़े से पीछे नहीं हटा है और दोनों देशों के सैनिकों की तैनाती भारी संख्या में है.
22 मई को जापान की राजधानी टोक्यो में क्वॉड की वार्षिक बैठक है. इस बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन के अलाव पीएम मोदी भी जाएंगे. ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका यूक्रेन के मामले में एकजुट हैं. ऐसे में पीएम मोदी के लिए यह बैठक बहुत सहज होगी, इसे लेकर विवाद है.
क्या कहा फुमियो किशिदा ने?
लंदन में एक बैठक के दौरान किशिदा ने कहा कि सात देशों के समूह यानी जी-7 को एशियाई मामलों पर स्पष्ट रूप से एकता बनाने की ज़रूरत है. इस समूह में जापान के अलावा अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली और जर्मनी हैं.
उन्होंने कहा, “एक जैसे मूल्यों को साझा करने वाले देशों के बीच गठजोड़ और भी ज़रूरी हो गया है. हमें अपने सहयोगियों और एक सी सोच वाले देशों के साथ गठजोड़ करना चाहिए और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बल प्रयोग से यथास्थिति को बदलने की कोशिश को कभी भी बर्दाश्त नहीं करना चाहिए, ख़ासतौर पर पूर्वी एशिया में.”
किशिदा ने कहा, “ताइवान में शांति और स्थिरता न केवल जापान की सुरक्षा के लिहाज से अहम है बल्कि ये अंतरराष्ट्रीय समुदाय की स्थिरता के लिए भी ज़रूरी है. जापान का अब भी यही मानना है कि ताइवान से जुड़े मुद्दों का शांतिपूर्ण ढंग से समाधान निकाला जाए…और परिस्थितियों पर उसी आधार पर क़रीबी नज़र रखी जाएगी.”
चीन-ताइवान पर क्या बोले सीआईए डायरेक्टर?
सीआईए के डायरेक्टर विलियम बर्न्स ने फाइनेंशियल टाइम्स के एक इवेंट के दौरान कहा कि रूस के हमले के बाद यूक्रेन की ओर से मिल रहे कड़े जवाब की वजह से रूस जो वित्तीय क़ीमत चुका रहा है, उसे देखकर चीन की सरकार पर बहुत असर पड़ा है.
उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि चीन के नेता इन सब पर बहुत गौर कर रहे हैं. वो देख रहे हैं कि ताइवान पर क़ब्ज़ा करने की किसी भी कोशिश की क़ीमत और परिणाम क्या हो सकते हैं.”
हालांकि, उन्होंने ये भी चेताया कि इससे चीन के राष्ट्रपित शी जिनपिंग की ताइवान को लेकर मक़सद में कोई बदलाव नहीं आएगा.
बर्न्स ने कहा, “मुझे एक पल के लिए नहीं लगता कि इससे ताइवान पर भविष्य में क़ब्ज़ा करने के शी के इरादे में कोई बदलाव आएगा. लेकिन मुझे लगता है कि इससे चीन ये ज़रूर सोचेगा कि उसे अब ये कब और कैसे करना है.”
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ड्रामा क्वीन
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चीन ने यूक्रेन में रूस के हमले की निंदा करने से इनकार कर दिया है और रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों की भी आलोचना की है.
इससे पहले जापान के पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भी 12 अप्रैल को अमेरिकी अख़बार लॉस एंजिलिस टाइम्स में एक लेख लिखकर यूक्रेन और ताइवान की तुलना की थी और कहा था कि अमेरिका को ये साफ़ करना चाहिए कि वह ज़रूरत पड़ने पर ताइवान की मदद के लिए खड़ा होगा.
इस लेख के जवाब में चीन के काउंसल जनरल ज़ांग पिंग ने शिंजो आबे के लेख पर कड़ा ऐतराज़ दर्ज कराया था. पिंग ने कहा था ताइवान और यूक्रेन की स्थितियों की तुलना नहीं की जा सकती.
ताइवान चीन का अभिन्न हिस्सा है, जहाँ पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ चाइना ही एकमात्र क़ानूनी सरकार है. इस वन चाइना सिद्धांत के बारे में चीन-अमेरिका और चीन-जापान के राजनयिक संबंधों के समय ही साफ़ किया जा चुका है.
यूक्रेन पर रूस ने 24 फ़रवरी यानी बीजिंग विंटर ओलंपिक ख़त्म होने के चार दिन बादी ही आक्रमण किया था. इसके बाद से ही पश्चिमी देशों के बीच ये आशंका ज़ोर पकड़ रही है कि चीन पूर्वी यूरोप में हलचल का फ़ायदा उठाकर ताइवान में भी ऐसा ही हमला बोल सकता है.
ताइवान की सरकार ने भी इस आशंका को लेकर सतर्क किया है. हालांकि, अभी तक ऐसे कोई संकेत नहीं दिखे हैं जिससे लगे कि चीन किसी भी वक्त ताइवान पर हमला कर देगा.
चीन ने बढ़ाया सैन्य अभ्यास
चीन के सरकारी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने एक लेख में दावा किया है कि अमेरिका और जापान की ओर से हो रही कथित उकसावे की कार्रवाई की वजह से चीन की नौसेना ताइवान द्वीप के आसपास सैन्य ड्रिल में तेज़ी लाई है.
बीते कुछ दिनों में चीन की नौसेना ने फिलीपींस सी से लेकर ताइवान द्वीप के पूर्व में और जापान के दक्षिण में सैन्य अभ्यास तेज़ किया है. विशेषज्ञों का मानना है कि चीन की ओर से ताइवान पर कार्रवाई के दौरान बाहरी हस्तक्षेप को रोकने के मक़सद से ये अहम स्थान है.
ग्लोबल टाइम्स के मुताबिक़, ताइवान के पूर्व में बढ़ी गतिविधियों के अलावा चीनी सेना ने उसके पश्चिमी हिस्से की ओर भी अलग-अलग तरह के युद्धक विमान और अतिरिक्त युद्धपोतों की संख्या भी बढ़ा दी है.
चीन मानता है कि ताइवान उसका एक प्रांत है, जो अंतत: एक दिन फिर से चीन का हिस्सा बन जाएगा.
दूसरी ओर, ताइवान ख़ुद को एक आज़ाद मुल्क मानता है. उसका अपना संविधान है और वहां लोगों द्वारा चुनी हुई सरकार का शासन है. ताइवान दक्षिण पूर्वी चीन के तट से क़रीब 100 मील दूर स्थित एक द्वीप है.
यह ‘पहली द्वीप श्रृंखला’ में मौजूद है, जिसमें अमेरिका समर्थक कई देश स्थित हैं. अमेरिका की विदेश नीति के लिहाज़ से ये सभी द्वीप काफ़ी अहम हैं.
ताइवान और चीन के बीच अलगाव क़रीब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद हुआ. उस समय चीन की मुख्य भूमि में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का वहां की सत्ताधारी नेशनलिस्ट पार्टी (कुओमिंतांग) के साथ लड़ाई चल रही थी.
फ़िलहाल दुनिया के केवल 13 देश ताइवान को एक अलग और संप्रभु देश मानते हैं. चीन का दूसरे देशों पर ताइवान को मान्यता न देने के लिए काफ़ी कूटनीतिक दबाव रहता है.
चीन की ये भी कोशिश होती है कि दूसरे देश कुछ ऐसा न करे जिससे ताइवान को पहचान मिलती दिखे.
कुछ देशों ने ताइवान को संप्रभु राष्ट्र के तौर पर मान्यता दे रखी है. कई देशों के साथ ताइवान के अनाधिकारिक साझेदारी और समझौते हैं और अंतराष्ट्रीय मंचों पर वो नॉन स्टेट पक्ष की तरह रहता है.