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शोधकर्ताओं की टीम ने इस अध्ययन में पाया कि जो लोग बचपन में अधिक हिचकते हैं, पुरस्कृत होने पर भी आमतौर पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं उनमें वयस्कावस्था और जीवन के आगे के चरणों में तनाव-चिंता विकार और डिप्रेशन होने का खतरा अधिक पाया गया है।
अध्ययन में पाया गया है कि बचपन के व्यवहार का मस्तिष्क के विभिन्न तंत्रों पर असर होता है, जिसके कारण ऐसे लोगों में मनोरोग विकारों का जोखिम अन्य की तुलना में अधिक हो सकता है। आइए इस अध्ययन के बारे में आगे विस्तार से जानते हैं।
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जामा साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने भविष्य में मनोरोगों के खतरे को जानने के लिए अध्ययन किया। 1989 से 1993 के बीच 4 महीने से लेकर 26 साल की उम्र तक के 165 प्रतिभागियों पर अध्ययन किया गया। स्कूल ऑफ बिहेवियरल एंड ब्रेन साइंसेज में मनोविज्ञान के सहायक प्रोफेसर और अध्ययन के डॉ अल्वा टैंग ने पाया कि जो लोग बचपन में अधिक हिचकते हैं या जिन बच्चों को स्वभाव दब्बू किस्म का होता है, उनमें जीवन के अगले चरणों में अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं के विकसित होने का जोखिम अधिक हो सकता है।
इस अध्ययन के दौरान शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क में विभिन्न तंत्रों के बारे में जानने की कोशिश की जो आगे चलकर अवसाद जैसी स्थितियों का कारण बन सकती है।

शोधकर्ता बताते हैं कि हर बच्चे की प्रवृति अलग-अलग होती है। कुछ बच्चे नई वस्तुओं, लोगों या स्थितियों के संपर्क में आने पर सकारात्मक प्रतिक्रिया देते हैं, खुश होते हैं और बिना किसी डर के उनके पास जाते हैं। जबकि अन्य इसी स्थिति में सावधानी और सतर्कता का परिचय देते हैं, या फिर ऐसी चीजों से दूर भागते हैं।
बचपन का यह व्यवहार जीवन के अगले चरणों में उनकी मानसिक स्वास्थ्य स्थिति को समझने में मदद कर सकता है। दब्बू या अधिक शर्मीले स्वभाव वाले बच्चों में चिंता-तनाव विकार होने की आशंका अधिक हो सकती है।
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डॉ अल्वा टैंग कहते हैं, दब्बू स्वभाव के बच्चों में डिप्रेशन होगा ही ऐसा जरूर नहीं है पर ऐसे ज्यादातर प्रतिभागियों में आगे चलकर चिंता-तनाव जैसे विकारों के विकसित होने का खतरा जरूर अधिक देखा गया है। वहीं शोध बताते हैं कि चिंता-तनाव जैसी स्थितियों का लंबे समय तक बने रहना, जीवन में बाद के चरणों में अवसाद के विकसित होने की आशंका को 50 से 60 प्रतिशत तक बढ़ा देता है।
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क्या है अध्ययन का निष्कर्ष?
अध्ययन के निष्कर्ष में शोधकर्ता कहते हैं, यह अध्ययन पहले से कई मामलों में अलग और नया है, क्योंकि यह बचपन की विभिन्न स्थितियों का मस्तिष्क और तंत्रिका पर होने वाले प्रभावों के बारे में समझने में मदद करता है। अगर आपके बच्चे का भी स्वभाव शर्मीला है और उसे भावनाओं को व्यक्त करने में कठिनाई महसूस होती है तो इसमें डॉक्टरी सहायता से समय के साथ सुधार किया जा सकता है।
बच्चों का व्यवहार परिस्थिति और वातावरण जैसे कारकों पर भी निर्भर करता है, इनमें सुधार करके भविष्य में मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं के जोखिम को कम किया जा सकता है। सभी माता-पिता को बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देते रहना चाहिए।
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नोट: यह लेख मेडिकल रिपोर्ट्स और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सुझाव के आधार पर तैयार किया गया है।
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