ISRO SSLV-D1/EOS-02 rocket: लॉन्चिंग सफल लेकिन सिग्नल बंद, आखिर सैटलाइट कैसे टूट गया इसरो का कनेक्शन?

इसरो ने अपना पहला एसएसएलवी मिशन रविवार को शुरू किया। यह एसएसएलवी एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ईओएस-02 और छात्रों के बनाये एक उपग्रह आजादीसैट लेकर गया है। इसरो का उद्देश्य तेजी से बढ़ते एसएसएलवी बाजार का बड़ा हिस्सा बनना है। करीब साढ़े सात घंटे की उलटी गिनती के बाद 34 मीटर लंबे एसएसएलवी ने उपग्रहों को निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए सुबह नौ बजकर 18 मिनट पर उड़ान भरी।

 
श्रीहरिकोटा: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने रविवार सुबह 9.18 बजे 34 मीटर स्मॉल सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (SSLV) D1 लॉन्च किया। इसका वजन लगभग 145 किलोग्राम है। इसके 75 पेलोड देशभर के 75 ग्रामीण सरकारी स्कूलों के 750 छात्र-छात्राओं ने बनाए हैं। डिजाइन करने वाली लड़कियां भी लॉन्च के समय श्रीहरिकोटा में मौजूद रहीं। उड़ान के सिर्फ 12 मिनट में एसएसएलवी-डी1, ईओएस-2 उपग्रह की कक्षा में स्थापित हो गया। लेकिन सिग्‍नल बंद होने की वजह से संपर्क टूट गया है।

इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया क‍ि अंतरिक्ष एजेंसी का पहला छोटा उपग्रह प्रक्षेपण यान (एसएसएलवी) टर्मिनल चरण में डेटा लॉस (सूचनाओं की हानि) का शिकार हो गया और उससे संपर्क टूट गया है। उन्होंने बताया कि हालांकि, बाकी के तीन चरणों ने उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन किया और अंतरिक्ष एजेंसी प्रक्षेपण यान तथा उपग्रहों की स्थिति का पता लगाने के लिए आंकड़ों का विश्लेषण कर रही है।

इसरो ने अपना पहला एसएसएलवी मिशन रविवार को शुरू किया। यह एसएसएलवी एक पृथ्वी अवलोकन उपग्रह ईओएस-02 और छात्रों के बनाये एक उपग्रह आजादीसैट लेकर गया है। इसरो का उद्देश्य तेजी से बढ़ते एसएसएलवी बाजार का बड़ा हिस्सा बनना है। करीब साढ़े सात घंटे की उलटी गिनती के बाद 34 मीटर लंबे एसएसएलवी ने उपग्रहों को निर्धारित कक्षाओं में स्थापित करने के लिए सुबह नौ बजकर 18 मिनट पर उड़ान भरी।

इसरो ने इंफ्रा-रेड बैंड में उन्नत ऑप्टिकल रिमोट सेंसिंग उपलब्ध कराने के लिए पृथ्वी अवलोकन उपग्रह का निर्माण किया है। ईओएस-02 अंतरिक्ष यान की लघु उपग्रह श्रृंखला का उपग्रह है। वहीं आजादीसैट में 75 अलग-अलग उपकरण हैं, जिनमें से प्रत्येक का वजन लगभग 50 ग्राम है। देशभर के ग्रामीण क्षेत्रों की छात्राओं को इन उपकरणों के निर्माण के लिए इसरो के वैज्ञानिकों द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया गया था, जो स्पेस किड्स इंडिया की छात्र टीम के तहत काम कर रही हैं।