पूर्व जजों का कलीजियम पर बोलना फैशन बन गया है, हमारा सिस्टम सबसे पारदर्शी : सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court Collegium System : जजों को चुनने के मौजूदा कलीजियम सिस्टम की आलोचना करने वालों पर शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट सख्त नजर आया। कोर्ट ने कहा कि कलीजियम सिस्टम जजों को चुनने का सबसे पारदर्शी तरीका है। आजकल पूर्व जजों का कलीजियम सिस्टम पर बोलना फैशन बन गया है।

नई दिल्ली : जजों के जरिए ही जजों की नियुक्ति वाले कलीजियम सिस्टम को लेकर इन दिनों न्यायापालिका और कार्यपालिका में टकराव चर्चा में है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि कलीजियम मीटिंग के दौरान की गईं मौखिक टिप्पणियों पर आजकल पूर्व जजों का बोलना फैशन बन गया है। शीर्ष अदालत ने कहा कि कलीजियम सिस्टम जजों को चुनने का सबसे पारदर्शी तरीका है। इस सिस्टम को अपना काम करने दें। जजों को चुनने की मौजूदा प्रक्रिया को पटरी से उतारने की कोशिश न करें।

12 दिसंबर 2018 को तत्कालीन सीजेआई की अगुआई वाले कलीजियम की बैठक के बारे में डीटेल की मांग करने वाली एक याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी की। ये याचिका अंजलि भारद्वाज ने डाली है जिन्होंने दिल्ली हाई कोर्ट में अपनी याचिका के खारिज होने को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है। भारद्वाज के वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि लिखित प्रस्तावों को अपलोड किए जाने में पारदर्शिता की जरूरत है। भूषण ने उस दौरान कलीजियम के सदस्य रहे जस्टिस मदन बी लोकूर के 2019 में दिए इंटरव्यू का जिक्र किया जिसमें उन्होंने जस्टिस प्रदीप नांदरजोग और राजेंद्र मेनन को सुप्रीम कोर्ट का जज न बनाए का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था कि 12 दिसंबर को हुई कलीजियम बैठक का डीटेल सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड नहीं होने से वह निराश हैं।

हम सबसे पारदर्शी संस्थान हैं और हम पीछे नहीं हट रहे…कलीजियम मीटिंग में बहुत सी बातें कहीं जाती हैं। इन्हें कभी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया जाता। रिकॉर्ड में सिर्फ अंतिम निर्णय को दर्ज किया जाता है।
सुप्रीम कोर्ट

जब भूषण ने इस बात का जिक्र किया कि जस्टिस लोकूर ने कहा था कि 12 दिसंबर की मीटिंग के फैसले को अपलोड किया जाना था तब जस्टिस एम आर शाह ने पूछा कि मीटिंग के दौरान की गईं मौखिक टिप्पणियों को प्रस्ताव के रूप में कैसे दर्ज किया जा सकता है? इस पर भूषण ने कहा कि सवाल ये है कि क्या आम लोगों को कलीजियम की तरफ से लिए गए फैसलों के बारे में आरटीआई के तहत जानने का हक है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था वह पारदर्शिता चाहता है लेकिन जब कलीजियम के फैसलों की बात आती है तो वह पीछे हट जाता है। इस पर जस्टिस शाह की अगुआई वाली बेंच ने कहा, ‘हम सबसे पारदर्शी संस्थान हैं और हम पीछे नहीं हट रहे…कलीजियम मीटिंग में बहुत सी बातें कहीं जाती हैं। इन्हें कभी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं किया जाता। रिकॉर्ड में सिर्फ अंतिम निर्णय को दर्ज किया जाता है।’ इसके बाद बेंच ने याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।

इस पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एम. आर. शाह ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट कलीजियम के पूर्व सदस्य आज क्या कह रहे हैं, हम उस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। आजकल कलीजियम के पूर्व मेंबर उस वक्त लिए गए फैसलों पर कमेंट कर रहे हैं, जब वे इसका हिस्सा थे। यह एक तरह का फैशन हो गया है। हम इस पर कुछ नहीं कहना चाहते।’ वकील प्रशांत भूषण ने कहा था, 2018 में सुप्रीम कोर्ट कलीजियम का हिस्सा रहे रिटायर्ड जस्टिस मदन लोकूर ने कहा था कि कलीजियम के एक फैसले को सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना चाहिए था।

आरटीआई एक्टिविस्ट अंजलि भारद्वाज ने 2018 की कलीजियम मीटिंग की सूचना मांगी थी। उनकी याचिका को दिल्ली हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था। इसी मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। पिछले दिनों कानून मंत्री ने भी जजों को चुनने के मौजूदा कलीजियम सिस्टम की आलोचना की थी।