भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन या जन्माष्टमी के दिन बहुत से श्रद्धालु भक्त व्रत रखकर कान्हा की पूजा करते हैं। इस दिन व्रत रखने के क्या हैं नियम और श्रीकृष्ण की पूजा का विधि आइए इसे जानें विस्तार से।
भगवान कृष्ण का जन्मदिवस यानी जन्माष्टमी 18 अगस्त को देश भर में मनाया जाएगा। जबकि श्रीकृष्ण जन्मोत्सव 19 अगस्त को मनाया जाएगा। जन्माष्टमी के दिन वृद्धि और ध्रव योग वर्तमान रहेगा। इस योग में श्रीकृष्ण का पूजन और व्रत करना व्रतियों के लिए बहुत ही पुण्यदायी होगा। आइए जानते हैं किस तरह से रखना चाहिए श्री कृष्ण जन्माष्टमी का व्रत।
इस तरह रखें जन्माष्टमी का व्रत
जिस तरह एकादशी के व्रत की शुरुआत दशमी तिथि से हो जाती है, उसी तरह जन्माष्टमी के व्रत की शुरुआत सप्तमी तिथि से हो जाती है। सप्तमी तिथि के दिन से ही तामसिक भोजन जैसे लहसुन, प्याज, बैंगन, मूली आदि का त्याग कर देना चाहिए और सात्विक भोजन करने के बाद ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। जन्माष्टमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सुबह स्नान व ध्यान से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें और जन्माष्टमी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद ”ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सवार्भीष्ट सिद्धये, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्ररमहं करिष्ये।।” मंत्र का जप करना चाहिए। इस दिन आप फलाहार और जलाहार व्रत रख सकते हैं लेकिन सूर्यास्त से लेकर कृष्ण जन्म तक निर्जल रहना होता है। व्रत के दौरान सात्विक रहना चाहिए। वहीं शाम की पूजा से पहले एक बार स्नान जरूर करना चाहिए।
कान्हा के पूजन का 12:03 से 12:47 तक होगा मुहूर्त
जन्माष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। जन्माष्टमी वाले दिन बाल गोपाल की पूजा का मुहूर्त इस बार गुरुवार को रात 12:03 बजे से देर रात 12:47 मिनट तक रहेगा। जन्माष्टमी के दिन इस बार रोहिणी नक्षत्र नहीं है। अबकी बार भरणी नक्षत्र सुबह 11 बजकर 35 मिनट तक रहेगी इसके बाद कृतिका नक्षत्र लग जएगी। कृतिका नक्षत्र में ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी। वृद्धि योग रात 8 बजकर 42 मिनट तक रहेगा इसके बाद ध्रुव योग लग जाएगा।
इस तरह करें जन्माष्टमी की पूजा
भगवान श्रीकृष्ण का पर्व रोहिणी नक्षत्र में आधी रात को हुआ था, ऐसे में रात को पूजन किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण की पूजा अर्चना करने से सभी तरह के दुखों का अंत हो जाता है। ऐसे में जन्माष्टमी के दिन व्रत रखते हुए भगवान श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप की आराधना करें। मूर्ति स्थापना के बाद उनका गाय के दूध और गंगाजल से अभिषेक करें। फिर उन्हें मनमोहक वस्त्र पहनाएं। मोर मुकुट, बांसुरी, चंदन, वैजयंती माला, तुलसी दल आदि से उन्हें सुसज्जित करें। फूल, फल, माखन, मिश्री, मिठाई, मेवे, धूप, दीप, गंध आदि भी अर्पित करें। फिर सबसे अंत में बाल श्रीकृष्ण की आरती करने के बाद प्रसाद का वितरण करें।