चंद्रमा और मंगल पर कृत्रिम गुरुत्व देने की तैयारी कर रहा है जापान

चंद्रमा (और मंगल के लिए मानवीय अभियानों की तैयारी चल रही है. इसमें सबसे बड़ी चुनौती दोनों पर यात्रियों के स्वास्थ्य चुनौतियों (Health Challenges in Space) से निपटना है. इनमें से एक बड़ी चुनौती है गुरुत्व की कमी की.

इस तकनीक से चंद्रमा और मंगल (Moon and Mars) दोनों ही जगहों पर पृथ्वी के गुरुत्व का प्रभाव मिल सकेगा. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

पृथ्वी पर मानवीय शरीर ना केवल मानसिक रूप से बल्कि जैविक रूप से भी गुरुत्व का आदि हो चुका है. देखा भी गया है कि कई अंतरिक्ष यात्री गुरुत्वहीनता के माहौल से लौटने के बाद हड्डियों के नुकसान जैसी कई समस्याओं का सामना करते हैं. लेकिन अब जापान (Japan) के शोधकर्ताओं ने चंद्रमा और मंगल पर कृत्रिम गुरुत्व वाली इमारतों (artificial-gravity buildings) के निर्माण का प्रस्ताव दिया है जिससे यात्रियों की सेहत का जोखिम कम  हो सके.

हड्डियों का नुकसान
यह प्रस्ताव शोधकर्ताओं के एक शोधपत्र प्रकाशित होने के बाद आया है जदिसमें उन्होंने पाया था कि अंतरिक्षयात्री कम गुरुत्व के माहौल में खासी मात्रा में हड्डियों की हानि को झेलते हैं. इस अध्ययन में उन्होंने पाया था कि अंतरिक्ष मे रहने वाला यात्री जब पृथ्वै पर लौटते हैं तब एक साल के बाद तक केवल आधी ही हड्डियों की हानि से उबर पाते हैं.

बड़े अभियानों के लिए चिंता
वैज्ञानिकों के लिए यह एक बहुत ही बड़ी चिंता का विषय बन गया है क्योंकि अब दुनिया की कई स्पेस एजिंयां लंबे अंतरिक्ष अभियानों की तैयारी में लगे हुए हैं जिसमें चंद्रमा पर इंसान की लंबी उपस्थिति होगी और मंगल जैसे ग्रह तक पहुंचने में कई महीनों का समय लगेगा. ऐसे में अंतरिक्ष यात्रियों के साथ हड्डी के हानि की समस्या गंभीर हो सकती है.

पृथ्वी के गुरुत्व जैसा प्रभाव
इस समस्या के समाधान के लिए कोयोटो यूनिवर्सिटी और काजिमा कॉर्पोरेशन ने विशाल घूमती हुई संरचनाओं का प्रस्ताव दिया जो इमारतों में ही अभिकेंद्रीय बल के जरिए पृथ्वी के गुरुत्व के जैसा प्रभाव देंगे. इस प्रस्ताव के मुताबिक चंद्र पर इस तरह की इमारत को लूनार ग्लास कहा जाएगा जो 400 मीटर लंबी होगी और वह अपना एक चक्कर हर 20 सेकेंड में ही पूरा कर लेगी.

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एक फिल्म के स्पेस स्टेशन की तरह
इसी तरह की मंगल पर बनने वाली इमारत को मार्स ग्लास नाम दिया है. इसकी तस्वीरों की कोयोटो यूनिवर्सीटी की एसआईसी ह्यूमन स्पेसोलॉजी सेंटर ने साझा किया है. ये तस्वीरें साल 2013 में विज्ञान फंतासी की फिल्म इलायसियम में दिखाए गए स्पेस स्टेशन से मिलती जुलती हैं. फर्क केवल इतना है वे आकार में काफी छोटी थीं.

लंबी अंतरिक्ष यात्राओं के लिए भी
इस घूमती बहुमंजिला इमारतक सतह तरल पानी और पेड़ वाली जमीन से घिरी होगी जिससे एक तरह का मिनी बायोम बन जाएगा जिसमें जल चक्र और कार्बो चक्र होंगे जिससे कि मानव जनसंख्या वहां कायम रह सके. इन सुविधाओं के अलावा शोधकर्ताओं ने एक अतरग्रहीय परिवहन तंत्र का भी प्रस्ताव दिया है जिसमें पृथ्वी की गुरुत्व का माहौल यात्रा के दौरान होगा. इसे हेक्जाट्रैक सिस्टम नाम दिया गया है.

एक विशेष पॉड में
हेक्जाट्रैक सिस्टम मंगल ग्रह जैसी यात्राओं के लिए बहुत उपयोगी साबित हो सकता है. इसमें जमीन आधारित हैक्जाट्रैक ट्रेन से डिब्बों को इंजेक्टर स्टेशन पर अलग निकाल लिया जाएगा. और उन्हें घूमते हुए हेक्जागोनल पॉड में घुसा दिया जाएगा जो अंतरिक्ष यात्रा के दौरान अभिकेंद्रीय बल पैदा करने का काम करेगा.

इस तरह की अवधारणा का उपयोग पहले से ही एस्ट्रोनॉट्स के प्रशिक्षण के लिए किया जाता है. एलाइसियम ही अकेली ऐसी फिल्म नहीं है जिसमें  ऐसी अवधारणा का उपयोग किया गया हो. इसके लिए इंटरस्टैलर, 2001, जैसी फिल्मों में भी  ऐसा देखने को मिला है.  लेकिन अभी तक किसी अंतरिक्ष यान में इसका उपयोग नहीं हुआ है. इस प्रस्ताव में शोधकर्ताओं ने इसकी पूरी योजना तक बताई है. अनुमान है कि इस तरह के सुविधा को विकसित होने में करीब 100 साल लग सकते हैं. लेकिन चंद्रमा पर 2050 तक इस सुविधा सरल रूप सामने आ सकता है.