Jashpur News: ताजी मछली खाने की हुई तलब तो बहा दिया जशपुर डैम का 21 लाख लीटर पानी, प्यास बुझाने को बिलबिला रहे जंगली जानवर

Jashpur News: मछली पकड़ने के लिए वन्य जीव अभ्यारण में जंगली जानवरों का लाखों लीटर पीने का पानी स्टॉप डैम खोलकर बहाने का मामला सामने आया है। पेयजल संकट से जंगली जानवर गांवों की तरफ आने लगे हैं। माना जा रहा है कि शरारती तत्वों ने मछली की खातिर डैम के पानी को बहा दिया है।

रायपुर: कांकेर जिले में 21 लाख लीटर पानी बहाने के मामले के बाद अब छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले में डैम का पानी बहाने का मामला सामने आया है। बताया जा रहा है कि वन्यजीवों के इस्तेमाल का लाखों लीटर पानी कुछ शरारती तत्वों ने महज मछली पकड़ने के उद्देश्य से बहा दिया। जशपुर जिले के बगीचा विकासखण्ड में स्थित बादलखोल वन अभ्यारण्य में स्थित गायलूंगा गांव के पास लुम्बालता में जंगली जानवरों को पेयजल उपलब्ध कराने के उद्देश्य से लाखों के स्टॉप डैम का निर्माण कराया गया था, लेकिन शरारती तत्वों ने डैम से लाखों लीटर पानी गेट खोलकर बहा दिया गया। इस डैम में लगभग 6 फीट तक पानी था और पानी डैम से ओवरफ्लो हो रहा था। 300 मीटर तक लंबाई के डैम में पानी लबालब था। अभ्यारण्य में रहने वाले जंगली जानवरों के साथ आसपास के गांवों के मवेशी भी यहां गर्मी के दिनों में पानी पीने आते थे, लेकिन अब डैम से पूरा पानी बहा दिया गया है, जिससे जंगली जानवरों के पानी की तलाश में गांवों में घुसने की आशंका बढ़ गई है। ग्रामीणों ने दोषियों पर कार्रवाई की मांग की है।

पानी की तलाश में हाथियों का गांव में घुसने का डर

बादलखोल वन्य जीव अभ्यारण जोकि जसपुर का वह भाग है, जहां बड़ी संख्या में हाथियों की आवाजाही की खबरें रहती हैं। हाथियों का दल हमेशा से यहां आना-जाना करता रहता है। ऐसे में स्टॉप डैम का पानी बह जाने के कारण जो वन्यजीव पानी पीने के लिए उस इलाके में जाते थे अब वह गांव की तरफ आ सकते हैं। बादलखोल के इस जंगल में कई तरह के वन्य जीव मौजूद हैं, जिसमें हिरण चिकारा भालू नीलगाय, बाघ जैसी प्रजातियां बड़ी संख्या में हैं।

ताजी मछली के लिए 21 लाख लीटर पानी बहाया (1)

मछली पकड़ने के लिए पानी को बहाना गलत

जानकारों का मानना है कि कभी भी क्षेत्र में निवासरत आदिवासी इस तरह की हरकते नहीं करते आदिवासी परंपराओं में इस तरह का कृत्य कभी नहीं किया जाता। यह यकीनन शरारती तत्वों की ओर से की गई हरकत है। क्योंकि जंगलों में निवास करने वाला बड़ा आदिवासी समूह गर्मियों में पानी पर निर्भर रहता है और मछली पकड़ने की और मछली के शिका की जो उनकी परंपरा है वह बंशी खेलने, जाल फेंकने, पानी उछालने जैसी है ना कि पानी बहा कर मछली पकड़ने की रही है।