आज के समय में लोग दूसरों की छोड़िए अपनों की मदद नहीं करते. ऐसे समय में चंडीगढ़ के यमुनानगर में रहने वाले 33 वर्षीय सरदार जसकीरत सिंह निस्वार्थ भाव से दूसरों की मदद कर रहे हैं. वो सैकड़ों बेसहारों का सहारा बने हुए हैं. पिछले चार वर्षों में उन्होंने ऐसे 163 लोगों को उनके परिवार से मिलाया, जो अपनों से बिछड़ चुके थे.
रहने के लिए छत, खाने के लिए देते हैं रोटी
जसकीरत बेसहारा लोगों को उनके परिवार से मिलाने का काम कर रहे हैं. इसके साथ ही जिनके परिवार में कोई नहीं है या जिनके परिवार का पता जब तक नहीं चल पाता है, तब तक उन्हें रहने के लिए छत और खाने के लिए रोटी देते हैं. बीमार होने पर इलाज करवाते हैं.
यमुनानगर ने मगरपुर गांव में जसकीरत का पूरा परिवार पिछले चार साल से ये नेक काम कर रहा है. एक मीडिया इंटरव्यू के दौरान जसकीरत कहते हैं कि जब वो स्कूल जाते थे तो रास्ते में कई ऐसे लोगों को देखते थे, जो सड़क किनारे जिंदगी गुजारते थे.
“मुझे उनकी मदद करने का मन करता था. लेकिन, तब मैं छोटा था. जब मुझमें समझ आई तब मैंने ऐसे लोगों से मिलना शुरू कर दिया, जो अपने परिवार से सामाजिक, आर्थिक या मानसिक तौर पर बिछड़ चुके थे. वे सभी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर थे.”
फिर बनाया ‘नि आसरे दा आसरा’ सोसाइटी
तकरीबन चार साल पहले जब मैंने अपनी मां को बेसहारा लोगों की मदद करते हुए देखा, तो इस मिशन को आगे बढ़ाने में लग गया. देखते ही देखते हमारे आश्रम में बेसहारा लोगों की तादाद बढ़ने लगी.
मिली जानकारी के अनुसार, साल 2018 में जसकीरत ने ‘नि आसरे दा आसरा’ सोसाइटी के तहत एक आश्रम शुरू किया. उनके साथ उनका पूरा परिवार बेसहारा लोगों का निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं. उनकी खुशी में हंसते हैं, उनके गम में रोते हैं. अब पुलिस विभाग भी उनके इस काम में उनकी मदद करती है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जसकीरत अब तक 163 लोगों को उनके परिवार से मिला चुके हैं. बिछड़ने वाले लोग हरियाणा, बिहार, पंजाब, यूपी, झारखंड, केरल और राजस्थान के रहने वाले थे. वहीं जिन लोगों के परिवार नहीं हैं उन्हें अपने आश्रम में सहारा देकर उनकी मदद कर रहे हैं. मौजूदा समय में उनके आश्रम में 102 बेसहारा लोग हैं. जिनकी हर जरूरियात का ख्याल रखा जाता है.