डालमिया सीमेंट लिमिटेड ने जेपी सीमेंट को 5,666 करोड़ में खरीदने जा रहा है। इससे पहले साल 2016 में भी अल्ट्राटेक ने जेपी सीमेंट के कुछ प्लांट्स को खरीदा था। इस कंपनी की शुरूआत जयप्रकाश गौड़ ने रखी थी। मात्र 218 रुपये की नौकरी करने वाले जेपी गौड़ ने इस कंपनी की शुरूआत की।
नई दिल्ली: भारी कर्ज में डूबी जेपी समूह (Jaypee Group) की सीमेंट कंपनी बिकने जा रही है। डालमिया सीमेंट ने जेपी के सीमेंट कारोबार को 5666 करोड़ में खरीदा है। डालमिया भारत लिमिटेड ( Dalmia Bharat) के स्वामित्व वाली सीमेंट कंपनी डालमिया सीमेंट लिमिटेड (DCBL) ने जेपी सीमेंट (Jaypee Cement) को खरीद लिया है। हालांकि ये पहला मौका नहीं है जब जयप्रकाश एसोसिएट्स सीमेंट प्लांट बेच रही है। इससे पहले साल 2016 में भी अल्ट्राटेक (Ultratech Cement) ने जेपी सीमेंट के प्लांट खरीदे थे। डालमिया सीमेंट के साथ हुए सौदे के बाद अब जेपी सीमेंट कारोबार से बाहर हो गया है। जिस जेपी सीमेंट तो आज डालमिया समूह खरीद रहा है उस जयप्रकाश समूह की नींव 218 रुपये की सैलरी पाने वाले एक इंजीनियर ने रखी थी।
कैसे हुई Jaypee ग्रुप की शुरूआत
1931 में जयप्रकाश गौड़ का जन्म यूपी के बुलंदशहर में हुआ था। मध्यम वर्गीय परिवार से आने वाले गौड़ ने रुड़की से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ली। पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी भी लगी और सैलरी के तौर पर मात्र 218 रुपये मिले। उस वक्त बेतवा नदी पर बांध बनाने का काम चल रहा था,जिसमें वो काम करते थे। काम के दौरान उन्हें लगा कि जिस काम के लिए उन्हें 218 रुपये की सैलरी मिलती है, उसी काम के लिए कॉन्ट्रैक्टर्स हर महीने करीब 5,000 रुपए कमा रहा है। उन्होंने दूसरे की नौकरी करने के बजाए अपना काम शुरू करने का फैसला किया।
नौकरी छोड़ शुरू किया कारोबार
साल 1958 में जेपी गौड़ ने नौकरी छोड़ अपना काम शुरू कर दिया। इसके बाद उनकी तरक्की शुरू हुई और कंपनी एक बड़ी ग्रुप बनकर उभरी। एक वक्त था जब कंपनी की तूती बोलती थी। देश के पहले एक्सेस कंट्रोल एक्सप्रेसवे से लेकर के फॉर्मूला वन रेसिंग ट्रैक बनाने वाली कंपनी बनी। 165 किमी लंबी ग्रेटर नोएडा-आगरा एक्सप्रेसवे या यमुना एक्सप्रेस जेपी की ही देन है। रियल एस्टेट सेक्टर में भी जेपी का डंका खूब बजा। पूरे दिल्ली एनसीआर में जेपी बिल्डर्स के 32,000 से अधिक फ्लैट्स हैं।
100 रुपये जेब में लेकर निकला था
इक इंटरव्यू के दौरान जेपी गौड़ ने कहा था कि जब वह पढ़ाई करने निकले तो उनकी जेब में महज 100 रुपये थे। सपने बहुत थे, लेकिन शुरूआत कैसे होगी इसकी तलाश कर रहा थे। मुरैना में अपने कंस्ट्रक्शन वर्क की शुरूआत की। लंबे संघर्ष के बाद करोड़ों के टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर दी। लोगों ने कहा कि मुश्किल काम है, लेकिन जीवन में बस यही सीखा है कि कोई भी काम मुश्किल नहीं होता। काम करता गया। 1979 में इराक में 250 करोड़ का काम मिला था, बैंक गारंटी के लिए 20 करोड़ चाहिए थे। कंपनी की बैलेंस सीट कम थी। जब बैंक वालों ने उन्हें देखा तो देखते रह गए। आखिरकार उनका काम हो गया।
फोर्ब्स की लिस्ट में मिली जगह
जेपी कंपनी की गाड़ी रफ्तार भर रही थी। साल 2010 में उन्हें फोर्ब्स मैगजीन में भारत के अरबपतियों की लिस्ट में 48वां स्थान मिला। उस वक्त उनकी कुल संपत्ति 1.5 बिलियन डॉलर थी। इसके बाद साल 2012 में उन्हें फोर्ब्स की मैगजीन में फिर से जगह मिली, लेकिन इस बार उनकी रैंकिंग और संपत्ति दोनों फिसल गई। उन्हें भारत के अरबपतियों की लिस्ट में 70वां स्थान मिला। उस वक्त उनकी कुल संपत्ति 855 मिलियन डॉलर थी।