भारत की आजादी की तारीख मुकर्रर होते ही उम्मीद की जा रही थी कि भारत के भौगोलिक क्षेत्र में आने वाली रियासतें अपना विलय इसमें कर देंगी और भारत सरकार को मजबूत करेंगी. किन्तु, एक रियासत के राजा के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था. वो किसी भी हालत में ऐसा नहीं करना चाहता था. वो अपने आस-पास के राजाओं के साथ मिलकर अंदर ही अंदर पाकिस्तान में शामिल होने की तैयारी कर रहा था. इस राजा की हरकतों ने न सिर्फ उसकी प्रजा को, बल्कि तत्कालीन पीएम पंडित नेहरू और गृहमंत्री सरदार पटेल को भी चिंता में डाल दिया था.
यह राजा कोई और नहीं हनवंत सिंह था, और जिस रियासत को पाकिस्तान में मिलाने के लिए उसने आजाद भारत के गृह सचिव वीपी मेनन के सिर पर बंदूक तान दी थी उसका नाम था जोधपुर.
जोधपुर रियासत के भारत में विलय की पूरी कहानी
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जानकार बताते हैं कि हनवंत के पिता उम्मेद सिंह निर्णय ले चुके थे कि वे भारत में ही रहेंगे. लेकिन, जून 1947 में उनकी मृत्यु के बाद सारे समीकरण बदल गए. कुर्सी पर बैठते ही हनवंत ने अपने हिसाब से काम करना शुरू कर दिया था. मौके का फायदा उठाते हुए उसने जोधपुर के लिए विशेष दर्जे का राग अलापना शुरू कर दिया था. उसने अपने लिए भी कई मांगें रखी थीं, जिन्हें वो हर हाल में पूरा करना चाहता था.
उसने संकेत देने शुरू कर दिए थे कि अगर उसकी बात नहीं मानी जाती तो वो जोधपुर का विलय पाकिस्तान के साथ कर सकता है. इतिहासकार बताते हैं कि हनवंत एक लालची राजा था. इसी का फायदा उठाते हुए पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने उसको अपने पाले में कर रखा था. जिन्ना के कहने पर भोपाल का नवाब हमीदुल्ला भी लगातार हनवंत के संपर्क में था और उसे स्वतंत्र रहने के लिए प्रेरित कर रहा था.
मोहम्मद अली जिन्ना के प्रभाव में था जोधपुर का राजा
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डोमिनिक लॉपियर और लैरी कॉलिन्स की किताब ‘फ्रीडम एट मिडनाइट’ में इस बात का जिक्र मिलता है कि कराची जाने से जिन्ना ने हनवंत के साथ एक अहम बैठक की थी, जिसे भोपाल के नवाब हमीदुल्ला ने कामयाब बनाया था. कहते हैं जिन्ना ने इस बैठक में हनवंत को बंदरगाह, रेलवे, अनाज, और शस्त्र इत्यादि देने का वादा किया था.
जिन्ना ने हनवंत से कहा था कि अगर वो जोधपुर को स्वतंत्र घोषित करने या पाकिस्तान में शामिल करने के लिए तैयार हो जाता है तो उसे वो सब मिलेगा, जिसकी वो चाह रखता है. आजादी के बाद गृह-मंत्रालय में सचिव रहे वीपी मेनन भी अपनी किताब ‘द स्टोरी ऑफ इंटीग्रेशन ऑफ इंडियन स्टेट्स’ में इसका जिक्र करते हैं. उनके मुताबिक मोहम्मद अली जिन्ना और मुस्लिम लीग के नेता जोधपुर के राजा के संपर्क में थे.
जोधपुर के जागीरदार और आम लोग फैसले के खिलाफ थे
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मोहम्मद अली जिन्ना ने एक कोरे कागज पर साइन करके हनवंत को दे दिया था और कहा था कि उसे जो भी चाहिए लिख ले. पाकिस्तान के साथ आने पर उसे सब कुछ मिल जाएगा. यही नहीं भोपाल नवाब के राजनीतिक सलाहकार सर मोहम्मद जफरुल्ला खान ने भी हनवंत पर दबाव बनाया था. जबकि जोधपुर के जागीरदार और आम लोग इस फैसले के खिलाफ थे. क्योंकि वो भारत में शामिल होने का मन बना चुके थे.
दुर्भाग्य से हनवंत जोधपुर के लोगों के मन की बात नहीं समझ पा रहा था. उसे अपनों से अधिक जिन्ना की बातों पर भरोसा था. वो अंदर ही अंदर खुश हो रहा था और अपने स्वर्णिम भविष्य के सपने देख रहा है. वो बात और कि उसके सपने पूरे होने वाले नहीं थे. हनवंत के पाकिस्तान के साथ जाने के फैसले की खबर मिलते ही जोधपुर की जनता अपने ही राजा के खिलाफ खड़ी होने लगी थी. आगे जोधपुर में तनाव बढ़ा तो हनवंत के दीवान ने मेनन को खबर दी कि यदि जोधपुर के नवाब को जल्दी नहीं संभाला गया तो रियासत पाकिस्तान में चली जाएगी
जोधपुर के राजा ने वीपी मेनन के ऊपर तान दी थी बंदूक
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जोधपुर के दीवान द्वारा सूचना मिलते ही वीपी मेनन सक्रिय हो गए थे. सरकार को सूचित करते हुए उन्होंने हनवंत पर दबाव बनाना शुरू कर दिया था. कहते हैं इस दौरान एक पल ऐसा भी आया जब हनवंत ने अपना आपा खो दिया था. वो मेनन के दखल से इतना नाराज हो गया था कि उसने उनके ऊपर बंदूक तान थी. मेनन ने इस स्थिति को समझदारी से डील किया था और हनवंत को माउंटबेटन से बातचीत के लिए राजी किया.
जानकार बताते हैं कि वीपी मेनन खुद हनवंत सिंह को अपनी कार में वायसराय भवन लेकर गए थे. जहां, माउंटबेटन ने हनवंत से बात की थी और उसे समझाया कि धर्म के आधार पर बंटे देश में हिंदू बहुल रियासत को पाकिस्तान में शामिल कराना बिल्कुल भी ठीक नहीं होगा. इससे सांप्रदायिक भावनाएं भड़क सकती हैं और अगर ऐसा होता है तो इसके लिए हनवंत खुद जिम्मेदार होंगे और आगे उनके लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी.
माउंटबेटन की चेतावनी के बाद भी नहीं बदले थे हनवंत के सुर
बताया जाता है कि माउंटबेटन की चेतावनी के बाद भी हनवंत के सुर नहीं बदल रहे थे. वो अपनी मांगों के लेकर अड़ा था और पीछे हटने के लिए तैयार नहीं था. उधर, भारत की आजादी का दिन नजदीक आ रहा था. पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार 15 अगस्त, 1947 से पहले जोधपुर का भारत में विलय चाहती थी. स्थिति को समझते हुए सरदार पटेल ने हनवंत को दिल्ली बुलाया और उसके साथ सख्ती से पेश आए थे.
10 अगस्त, 1947 को हनवंत दिल्ली पहुंचा तो सरदार पटेल ने उसे ढंग से समझाया था. सरदार पटेल ने उसे एहसास कराया कि वो उस रास्ते पर चल रहा था, जिसके खिलाफ उसके खुद के पिता थे. पटेल ने हनवंत को जिन्ना के नापाक इरादों के बारे में भी आगाह किया था. साथ ही चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर आपको स्वतंत्र रहना है तो रहो लेकिन, जनता के विद्रोह करने पर भारत सरकार उसकी कोई मदद नहीं करेगी.
आजादी से 4 दिन पहले विलय के लिए कैसे तैयार हुआ राजा?
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इतिहासकारों के अनुसार सरदार पटेल ने हनवंत से इस तरह से बात की थी कि वो एकदम खुल गया था. उसने सरदार पटेल को बता दिया था कि जिन्ना ने उसको क्या-क्या ऑफर दिया था. हनवंत के मुंह खोलते ही पटेल ने अपना दिमाग लगाया और उससे कहा था कि जो चीजें आपको जिन्ना दे रहा है वो भारत भी दे सकता है. बशर्ते हनवंत को अपना फैसला बदलना होगा और 15 अगस्त से पहले भारत में विलय करना होगा.
कहते हैं इस मुलाकात के बाद हनवंत ने अपना फैसला बदल लिया था. सरदार पटेल के तेवर, वीवी मेनन की कार्यशैली और जोधपुर की जनता का विरोध देख वो समझ चुका था कि पाकिस्तान के साथ जाना उसके लिए ठीक नहीं होगा. परिणाम स्वरूप वही हुआ जो पंडित नेहरू के नेतृत्व वाली भारत सरकार चाहती थी. जोधपुर पहुंचते ही हनवंत भारत में विलय से जुड़े कागजात पर हस्ताक्षर करने के लिए तैयार हो गया था.
अपने अंतिम फैसले में उसने पाकिस्तान को नहीं भारत को चुना और 11 अगस्त 1947 को यानी आजादी से चार दिन पहले ‘इंस्ट्रूमेंट आफ एक्शेसन’ पर दस्तखत करते हुए जोधपुर का भारत में विलय में कर दिया था.