Joshimath Shinking: जोशीमठ में दरार बढ़ने के बाद 93 परिवारों को किया शिफ्ट, लगातार बढ़ रहा खतरा

Uttarakhand Joshimath Cracks News: उत्तराखंड के जोशीमठ में लोगों की दिक्कतें लगातार बढ़ रही हैं। वे आंदोलन कर रहे हैं। शासन- प्रशासन से जान बचाने की गुहार लगा रहे हैं। जोशीमठ में दरार बढ़ने के बाद 93 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर शिफ्ट किया गया है। वहीं, मकानों में दरारों के पड़ने का सिलसिला लगातार जारी है।

Joshimath

जोशीमठ: उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में कई मकानों में दरारें आने के बाद कम से कम 93 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। अधिकारियों ने इस संबंध में जानकारी दी है। राज्य के चमोली जिले में, बदरीनाथ तथा हेमकुंड साहिब के रास्ते में आने वाला जोशीमठ समुद्र तल से 6 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-पांच’ में आता है। यहां पर बनाई गई एनटीपीसी के सुरंग और अन्य निर्माण योजनाओं ने यहां बसने वाले लोगों के लिए खतरा बढ़ा दिया है। लगातार हिलती धरती मकानों में दरारें बढ़ा रही हैं। जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी एनके जोशी ने बताया कि अब तक शहर के विभिन्न इलाकों में 561 मकानों में दरारें आ चुकी हैं। इनमें रविग्राम में 153, गांधीनगर में 127, मनोहरबाग में 71, सिंहधार में 52, परसारी में 50, अपर बाजार में 29, सुनील में 27, मारवाड़ी में 28 और लोअर बाजार में 24 मकान शामिल हैं।

जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी ने बताया कि अलग-अलग मकानों को अलग-अलग प्रकार की क्षति हुई है और अब तक सर्वाधिक प्रभावित मकानों में रह रहे 29 परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया है। उन्होंने कहा कि जरूरत पड़ने पर और परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जाएगा। अधिकारी ने कहा कि जिन स्थानों पर परिवारों को स्थानांतरित किया गया है उनमें नगर पालिका भवन, एक प्राथमिक विद्यालय भवन, मिलन केंद्र और जोशीमठ गुरुद्वारा शामिल हैं। उन्होंने बताया कि कुछ परिवार अपने संबंधियों के यहां चले गए हैं। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि जोशीमठ में स्थिति पर करीब से नजर रखी जा रही है और वह हालात का जायजा लेने स्वयं वहां जाएंगे। भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-पांच’ में आने वाले इस शहर का सर्वे करने के लिए विशेषज्ञों का एक दल भी गठित किया गया है।

चमोली डीएम ने लगाई एनटीपीसी सहित कई प्रोजेक्ट पर रोक

देवभूमि के ऐतिहासिक शहर जोशीमठ में जमीन धंसने का सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है। बीते साल नवंबर में जमीन धंसने से घरों में दरारें आने की घटनाएं सामने आई थीं। अब यहां धरती फाड़कर जगह-जगह से पानी निकलने लगा है। जोशीमठ में भू-धंसाव की समस्या को देखते हुए जिला प्रशासन ने बड़ा फैसला लिया है। जिला प्रशासन ने हेलंग बाईपास और एनटीपीसी तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना के निर्माण कार्यो पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है। यह रोक अग्रिम आदेशों तक जारी रहेगी।

जानकारी के मुताबिक, जोशीमठ के मारवाड़ी में पिछले कई महीनों से भूस्खलन की घटनाएं हो रही थीं। इसके बाद अचानक बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग-58 से लगे जयप्रकाश पावर प्रोजेक्ट की कॉलोनी के अंदर से पानी दीवारों के अंदर से और जमीन के अंदर से फूटकर निकलने लगा।

ऐसे शुरू हुआ घरों के दरकने का सिलसिला

भारत के सबसे ज्यादा भूकंप प्रभावित इलाके यानी जोन-5 में शामिल जोशीमठ में भू-धंसाव की समस्या काफी पुरानी रही है। हालांकि, पिछले कुछ दिनों से इसमें तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इससे पूरे जोशीमठ के लोगों में दहशत है। पहले ये दरारें चंद घरों की समस्या के तौर पर सामने आया करती थी। अब ये धीरे-धीरे चौड़ी होने के साथ कई लोगों के घरों को खंडहरों में तब्दील करने लगी हैं। जोशीमठ के छावनी बाजार से शुरू हुई भू-धंसाव की ये घटनाएं अब पूरे इलाके को अपने आगोश में लेती दिख रही है। लोगों ने घर ढहने के डर से लिंटर को रोकने के लिए बल्लियां लगाकर बचाव का इंतजाम करना शुरू किया है। कई लोग अपने घरों को ही छोड़कर पलायन को मजबूर हो गए हैं। घर ही नहीं, सड़कें भी धंस रही हैं। कई जगह सड़कों में गड्ढे हो रहे हैं। बदरीनाथ हाइवे पर भी दरारें दिख रही हैं। लोग पत्थर मिट्टी डालकर इन दरारों को पाटते रहे, लेकिन दरारें और चौड़ी होती रहीं। अब भयावह धरती के फट जाने जैसी हो गई हैं।

70 के दशक में भी लोगों ने की थी शिकायत

साल 2021 के फरवरी में ग्लेशियर टूटने के बाद मार्च से दरारें दिखनी शुरू हुईं। उसके बाद ये दरारें बड़ी होने लगीं। जोशीमठ का धंसना नई बात नहीं है। साल 1976 की मिश्रा कमिटी रिपोर्ट में शहर के धंसने का जिक्र है। यूपी राज्य में रहने के दौरान बढ़ती जनसंख्या और भवनों के बढ़ते निर्माण के दौरान 70 के दशक में भी लोगों ने भूस्खलन की शिकायत की थी। इसके बाद मिश्रा कमिटी बनी थी। इसकी रिपोर्ट में यह कहा गया था कि जोशीमठ प्राचीन भूस्खलन क्षेत्र में स्थित है। यह शहर पहाड़ से टूटे बड़े टुकड़ों और मिट्टी के अस्थिर ढेर पर बसा है। अब लोग मानते हैं कि टूटे ग्लेशियर के बहते मलबे के दबाव ने इस ढेर को टक्कर मारकर और अस्थिर कर दिया।

निर्माण और जनसंख्या का बोझ भी वजह

निर्माण कार्य और जनसंख्या के बढ़ते बोझ, बरसात, ग्लेशियर या सीवेज के पानी से मिट्टी को नर्म बना देने से चट्टानों का हिल जाना, शहर में ड्रेनेज सिस्टम का अभाव भी जोशीमठ का धंसाव का कारण है। इलाके में जंगल को बेरहमी से तबाह करना भी मिश्रा कमिटी ने इसका कारण माना था। करीब 6,000 मीटर की ऊंचाई पर बसे जोशीमठ की चोटियां मौसम के हमलों के लिए खुली हैं। बड़े पत्थरों को रोकने के लिए पेड़ों की कमी से भूस्खलन को रोकना चुनौती बन जाती है। रिपोर्ट में शहर के आसपास से भवन निर्माण के भारी काम को रोकने समेत सड़क मरम्मत और दूसरे निर्माण कामों के लिए बड़े पत्थरों को खोदकर या ब्लास्ट करके न हटाने की ताकीद भी की गई थी।

चीन से जंग के बाद तेजी से हुआ निर्माण

जोशीमठ में भारी भवन निर्माण की शुरुआत साल 1962 के बाद से हुई। 1962 में चीन के साथ युद्ध के बाद इलाके में तेजी के साथ सड़क मार्ग का विकास हुआ। सेना के कैंप बनने के अलावा हेलिपैड बने। शहर के बढ़ते महत्व को देखते हुए यहां बसावट बढ़ती चली गई। कई होटल खुले। लोगों ने कारोबार शुरू किया। औली और बदरीनाथ समेत हेमकुंड साहिब तीर्थ ने उनके कारोबार को बढ़ाने के साथ साथ इसे देशभर के लोगों का पसंदीदा शहर बना दिया।
देहरादून के वाडिया इंस्टिट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने जोशीमठ में तेजी से हो रहे भू-धंसाव का अध्ययन किया है। उन्होंने आर्काइव सैटलाइट तस्वीरों की मदद से यह निष्कर्ष निकाला है कि जोशीमठ का रविग्राम हर साल 85 मिलीमीटर की रफ्तार से धंस रहा है। इसका मतलब यह भी है कि ये कोई भूस्खलन का असर नहीं है, बल्कि ये हर साल 85 मिलीमीटर की रफ्तार से धंस रहा है। जो बहुत ही ज्यादा यानी अलार्मिंग सिग्नल है।