Jungle News and Video: अगर आपको रास्ते में जंगली हाथी मिल जाएं और आपके पास लोग और लाइसेंसी हथियार हों तो आप क्या करेंगे। भूलकर भी वो मत कीजिएगा जो सोच रहे हैं क्योंकि जंगली हाथी एक बार में आपको पाताल से भी ढूंढ निकालेंगे और उस सलूक का बदला लेंगे जो आप उनके साथ करेंगे। जान लीजिए कैसे…
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रांची: हाथियों की याददाश्त, सुनने और सुंघने की शक्ति जबर्दस्त होती है। झारखंड के सारंडा, दलमा और पलामू टाइगर रिजर्व से सटे गांवों में रहने वाले बड़े-बुजुर्ग अक्सर यह बताते है कि कुछ लोगों ने कई वर्ष पहले जंगली हाथियों के झुंड को नुकसान पहुंचाया था, जिसका बदला हाथियों ने कई दिनों, महीने या वर्षों बाद लिया।
हाथियों को पानी के छोटे गड्ढों तक भी रास्ता भी रहता है याद
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हाथियों में याददाश्त का गुण इंसानों के मुकाबले ज्यादा विकसित होता है। यही कारण है कि कई किलोमीटर मौजूद पानी के छोटे-छोटे गड्ढों तक पहुंचने का रास्ता भी हाथी हमेशा याद रखते है। यही कारण है कि आबादी वाले क्षेत्र में पहुंचने पर यदि कोई ग्रामीण कभी हाथी को छेड़ता है, तो बाद में भी उस गांव में रहने वाले ग्रामीणों के लिए खतरा बना रहता है। हाथियों के पांवों का एक और आश्चर्यजनक काम होता है और वह है संचार। कई अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि हाथी करीब 32 किलोमीटर दूर से आती धीमी आवृत्ति वाली गड़गड़ाहट या धम-धम की आवाज को भी सुन सकते हैं। ये ध्वनियां पृथ्वी की सतह पर भूकंपीय थरथराहट पैदा करती हैं, जिन्हें हाथी अपने पांवो से महसूस कर लेते हैं। अनुसंधानकर्त्ता मानते हैं कि ये कंपन उनके हड्डियों से होते हुए उनके कानों तक चला आता है। यह गुण उन्हें दूर से ही खतरे को भांप लेने में मदद करता है।
जंगली हाथियों की सूंघने की शक्ति कुत्तों से बेहतर
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नये वैज्ञानिक अनुसंधान में यह बात भी सामने आई है कि हाथियों में सुंघने की शक्ति कुत्तों से बेहतर हैं। यही कारण है कि गांवों में बनने वाले देशी अवैध शराब या अनाज रखे जाने की सुंगध मिलते ही हाथी आबादी वाले इलाके में प्रवेश कर जाते है। एक हालिया शोध में पता चला है कि कुत्तों की तुलना में हाथी सूंघकर विस्फोटक पहचानने का काम बहतर तरीके से कर सकते है। लिहाजा उनका इस्तेमाल अन्य कामों के अलावा बारूदी सुरंगों का पता लगाने में भी किया जा सकता है। वे प्रशिक्षित कुत्तों के मुकाबले अपनी ट्रेनिंग भी अच्छी तरह से याद रखते हैं।
अभ्यारण्य में मानव-हाथी की जंग काफी कम
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झारखंड में 92 फीसदी जंगली हाथी प्रदेश के तीन वन्य क्षेत्र पलामू टाइगर रिवर्ज, दलमा वन्यजीव अभयारण्य और सिंहभूम के अंतर्गत सारंडा जंगल में रहते हैं।इसके बावजूद इन क्षेत्रों में मानव-हाथी द्वंद केवल 8 से 10 प्रतिशत मामले सामने आ रहे हैं। दूसरी ओर गिरिडीह, रामगढ़ और बोकारो क्षेत्र में सिर्फ 8 प्रतिशत हाथियों का झुंड रहता है, लेकिन मानव-हाथी संघर्ष के लगभग 90 से 92 फीसदी मामले हाथी के इसी झुंड से संबंधित देखे गये हैं। भोजन का प्राप्त आधार होने के कारण संघर्ष कम और नहीं होने के कारण द्वंद अधिक हो रहा है। सारंडा में हाथी – मानव द्वंद को रोकने और हाथियों से पहुंचने वाली क्षति पर बहुत हद तक रोक लगाने के लिए सारंडा के जंगल से सटे कई गांवों में जंबो हूटर लगाया गया है। हाथियों का झुंड अगर जंगल से गांव की ओर आता है, तो यह जंबो हूटर बज उठता है। इससे गांव के लोग अलर्ट हो जाते है। इसके अलावा इंफ्रारेड से जुड़े खास इंस्ट्रूमेंट हाथी प्रभावित इलाके में लगाए लगाएंगे यह हाथियों को गांव में जाने से रोकता है।
हाथियों के लिए कॉरिडोर बनाने की योजना
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राज्य संताल परगना प्रमंडल क्षेत्र में जंगली हथियों के भटके हुए झुंड से हो रहे जान-माल के नुकसान को कम करने के लिए वन विभाग ने हथियों के लिए कॉरिडोर बनाने की रुपरेखा तैयार की है। यह कॉरिडोर देवघर, गोड्डा, दुमका और साहेबगंज जिले में बनाया जाएगा। संताल परगना प्रमंडल में हाथियों के कॉरिडोर निर्माण को लेकर एक उच्चस्तरीय कमेटी ने संताल के वन भूमि, जंगल और मार्गों का सर्वेक्षण करने के बाद केंद्रीय वन एवं पर्यावरण विभाग के पास प्रस्ताव भेजा है। आंकड़े बताते हैं कि हाथियों की संख्या लगातार घट रही है, जो कि चिंता का विषय है। विशेषज्ञों के अनुसार सौ साल पहले भारत में दस लाख हाथी थे, लेकिन अब ये घटकर 27312 हो गई है। राष्ट्रीय स्तर पर देश भर के 23 राज्यों केलिए जारी फाइनल रिपोर्ट में झारखंड में हाथियों की संख्या 679 बताई गई है। जबकि मई-17 में वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग द्वारा राज्य स्तर पर कराए गए सर्वे में इनकी संख्या 555 बताई गई थी। राष्ट्रीय स्तर पर जारी आंकड़ों में पूरे देश में हाथियों की संख्या 27312 बताई गई है। झारखंड में पिछले 7 महीनों में हाथियों के हमले में 50 से अधिक लोगों की मौत हुई है। इस दौरान अलग-अलग वजहों से 8 हाथियों की भी जान गई है। हजारीबाग जिले में हाथियों के हमले में 14 की जान गई। जबकि गिरिडीह में 9, लातेहार में 8, खूंटी में 5, चतरा, बोकारो और जामताड़ा में तीन-तीन लोग हाथियों के हमले में मारे गए हैं।
झारखंड में थे सफेद हाथी, यह उस समय की बात है
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