देहरादून में जाखन नदी के ठीक बीचोबीच खड़ा 100 साल का ‘हल्दू’ अब नहीं रहा। बड़े से बड़ा सैलाब उसका कुछ नहीं कर पाया, लेकिन इस बार एक पुल के लिए इंसान ने उसकी जड़ें खोद डालीं।
देहरादून: उसमें कुछ बात तो जरूर थी! देहरादून के जौलीग्रांट एयरपोर्ट से ठीक आगे जाखन नदी बहती है। उसके ऊपर से गुजरने वाले पुल से बाईं तरफ नजर घूमती, तो हैरत से उस पर ठहर जाती। गर्मी, बरसात, बाढ़… वह योद्धा सा हमेशा वहां खड़ा मिलता। हर साल बरसात में आने वाले सैलाब के खौफ से जब पूरा जंगल आधा किलोमीटर तक दुबक चुका था, ऐसे में वह पत्थरों के भयानक रेवड़ के ठीक बीचोबीच डटा था। दोनों हाथों को कमर पर रखकर। विजयी मुस्कान लिए। पुल पार होता, वह आंखों से ओझल हो जाता, लेकिन वह एक हौसला आपके अंदर भर चुका होता था। जीवन की तमाम मुश्किलों में डटे रहने का जज्बा। अफसोस! जाखन नदी का वह योद्धा अब नहीं रहा। सैलाब नहीं, इंसानी फितरत ने उसकी जड़ें उखाड़ डालीं।
पहाड़ से मैदान तक, हर साल बारिश बहुत कुछ बहा ले जाती है। उत्तराखंड में बरसात लगभग गुजर चुकी है। लेकिन उसके जख्मों के निशान हर तरफ मौजूद हैं। सितंबर में जब पानी थमता है, तो क्या कुछ खो चुके हैं, इसका हिसाब-किताब समझ आने लगता है। जाखन नदी का वह रेवड़ अब सूना दिखाई देता है। हल्दू का वह बहादुर पेड़ अब वहां नहीं है। पुल से करीब 200 मीटर दूर वह हौसले की तरह मौजूद था। करीब 100 साल से।