पहाड़. कितना कुछ सिखाते है ना! वो सिखाते हैं कि मुश्किलों को पार करके ही उंचाई मिलती है. उंचाई से देखने पर सबकुछ बहुत खूबसूरत होता है. मुश्किलें पहाड़ों जैसी हो सकती हैं. लेकिन सफलता के बाद का सुख ऊंचाई पर पहुंचने के बाद ही नसीब होता है. खैर, पहाड़, ऊंचाई, सफलता..इन शब्दों से एक शख्सियत बनती है, जिसे दुनिया पर्वतारोही कहती है.
आमतौर पर लोग सोचते हैं कि पर्वतारोही बनना है तो जितने जल्दी हो उतने जल्दी शुरूआत कर दो. कम उम्र में हडिडयां मजबूत होती हैं, इरादे ज्यादा पक्के होते हैं, जुनून होता है. इसलिए पहाड़ लांघ जाना आसान है! पर क्या वाकई? क्योंकि आज हम जिस महिला की बात कर रहे हैं उन्होंने उम्र के दायरे से बाहर निकलकर 48 साल की उम्र में पहाड़ चढ़ना सीखा और 50 की उम्र में वो कर दिखाया. जिसका सपना लोग 25 की उम्र आते-आते तक देखना भी छोड़ देते हैं!
जिम्मेदारियों के आगे कुछ नहीं
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50 की उम्र में जब लोग रिटायर होकर सुकून से जिंदगी जीने की तैयारी कर रहे होते हैं, तब ज्योति को उनका पुराना अधूरा सपना याद आया. वो सपना जो कभी हालातों, कभी जिम्मेदारियों के चलते पूरा नहीं हो सका था. भोपाल की रहने वाली ज्योति रात्रे, कहती हैं कि स्कूल में पढ़ते वक्त माउंट एवरेस्ट के बारे में जाना.
टीचर्स बताते थे कि माउंट एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ना बहुत मुश्किल है..फिर भी बहुत सारे लोग यहां जाते हैं..और जीतकर लौटते हैं..ऐसे लोगों की संख्या उस वक्त भारत में बहुत कम थी. माउंट एवरेस्ट पर जाने वालों की सूची में भी महिलाओं की संख्या पुरुषों के मुकाबले कम ही रही. टीचर की बातें सुननें के बाद मैंने घर आकर पहाड़ों के बारे में पढ़ना शुरू किया.
धीरे-धीरे दिलचस्पी बढ़ती गई और एक सपना देखा कि एक दिन मुझे भी पहाड़ चढ़ना है. पर कुछ सपने हालातों के कारण पूरे नहीं हो पाते. पढ़ाई जारी रही, फिर कॉलेज और फिर शादी. शादी के बाद परिवार की जिम्मेदारियां, नए रिश्ते, बच्चे और फिर उनका करियर. ये सब सम्हालते सम्हालते पर्वतारोही बनने का सपना जैसे कहीं घुम ही हो गया.
जब कभी किसी से अपने सपने के बारे में बातें करती तो लोग कहते, इतना बड़ा पहाड़ जैसा जीवन गुजार दिया. इस जीवन में कितने सारे उतार चढ़ाव आए. सब पार कर दिए. बस समझो तुम बन गईं पर्वातारोही.
फिर शुरू की ट्रेनिंग
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हालांकि ज्योति इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती थीं. उन्होंने पहले परिवार के प्रति अपनी सभी जिम्मेदारियां पूरी कीं. इसके बाद 48 की उम्र में अपने सपने को पूरा करने की ठानी. ज्योति ने पहाड़ चढ़ने के बारे में बहुत कुछ देखा और सुना था पर खुद कभी पहाड़ चढ़ने की ट्रेनिंग नहीं ली. इस बीच जब उन्हें मनाली जाने का मौका मिला तब उन्होंने ट्रेकिंग की ट्रेनिंग ली. इसके बाद पहले पिन.पार्वती ट्रैक किया, फिर अमरनाथ यात्रा. अमरनाथ यात्रा 4 दिनों में पूरी होती है, लेकिन ज्योति ने इसे 2 दिन में पूरा कर लिया. मनाली में 6000 फीट ऊंचा ट्रैक देवटिप्पा क्रॉस किया.
ज्योति बताती हैं कि मैंने प्रोफेशन खुद ही प्रोफेशनल ट्रेनिंग लेना शुरू किया. फिर माउंट एवरेस्ट फतह करने के लिए आवेदन दिया लेकिन उम्र ज्यादा होने के कारण मेरी एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई. असल में माउंट एवरेस्ट चढ़ने के लिए प्रतिभागी की अधिकतम उम्र 42 साल है जबकि ज्योति 48 साल की हो चुकी थीं.
हालांकि इस रिजेक्शन से उन्होंने अपना इरादा नहीं बदला. ज्योति बताती हैं कि देवटिप्पा ट्रैक करने के दौरान ट्रेनिंग बहुत काम आई, क्योंकि, इसमें एक दिन की रॉक क्लाइम्बिंग होती है. वहां आइस वॉक सिर्फ 1 दिन की थी, ज्यादा कठिन नहीं थी. इसमें यह सीखने को मिला कि आखिर क्लाइंबिंग कैसे करते हैं, आईस ट्रैक कैसे करते हैं. बर्फ पर कैसे चलते हैं.
फिर बनाया रिकॉर्ड
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ज्योति ने अपनी ट्रेनिंग के साथ ही अपनी शारीरिक क्षमता पर भी काम किया. वो दिन में 2 घंटे वर्कआउट करतीं, डाइट का ध्यान रखतीं और इम्युनिटी मजबूत बनाने के लिए योगभ्यास भी करतीं. इन सबका नतीजा ये हुआ कि जब उन्होंने यूरोप की सबसे पहाड़ माउंट एलब्रुस पर चढ़ने के लिए आवेदन दिया तो उनका सिलेक्शन हो गया.
4 लोगोंके दल में मध्य प्रदेश से 52 साल की सबसे ज्यादा उम्र की इकलौती महिला ज्योति रात्रे रहीं. वो बताती हैं कि माउंट एलब्रुस पर पहुंचना किसी चुनौती से कम नहीं था, क्योंकि वहां मौसम सबसे बड़ी चुनौती है. वहां के तापमान में टिके रहना बहुत मुश्किल होता है. वहां बर्फबारी होती है और वह आम बर्फबारी से ज्यादा देर तक चलती है.
ज्योति बताती हैं कि फाइनल पॉइंट पर पहुंचने से पहले बर्फबारी हो गई. एक पल को तो लगा कि सबकुछ अधूरा रह जाएगा पर फिर भी हिम्मत नहीं हारी हो, मैं अपने ग्रुप के साथ वहां डटी रही. मौसम ठीक हुआ फिर 5462 फीट ऊंची चोटी पर पहुंचे. ज्योति ने कहा कि मैन पॉइंट पर पहुंचना मेरी जिंदगी का सबसे बड़ा पल था. मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैंने इतनी ऊंची चोटी पर फतह हासिल की है.
ऐसा लगा जैसे मैंने वाकई एक जीवन पार कर लिया था. ये मेरे और परिवार के लिए गर्व का मौका था. वे सभी लोग मुझे शाबासी दे रहे थे, जिन्होंने पर्वतारोही बनने की परिभाषा ही दूसरी बताती थी. ज्योति ने इस फतह के साथ ही एक रिकॉर्ड भी बना लिया है. वे भारती की सबसे अधिक उम्र की पर्वतारोही बनी हैं, जिसने माउंट एलब्रुस पर फतह हासिल की हो.
ज्योति अब 53 साल की हो रहीं हैं पर पहाड चढ़ने का सपना जिंदा है. इसके बाद उन्होंने किलिमंजारो पर फतह हासिल की. यह अफ्रीका की सबसे ऊंची चोटी कही जाती है. हमें विश्वास है कि ज्योति आगे भी कई और पर्वतों को पार करके उन महिलाओं के लिए मिसाल बनेंगी जो उम्र, जिम्मेदारियों और हालातों से समझौता करके अपने सपनों को मार देती हैं.