शिमला, 10 अक्तूबर : प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कौल सिंह ठाकुर की इस दफा प्रतिष्ठा दांव पर है। उनका टिकट लगभग फाइनल है। हो सकता है, उनकी यह अंतिम चुनावी पारी हो। वो इशारों-इशारों में अपनी वरिष्ठता की दुहाई देकर जनसभाओं में ये भी कह रहे हैं कि मैं कांग्रेस में सबसे सीनियर नेता हूं। जिससे साफ झलकता है कि मुख्यमंत्री बनने की चाह पाले वो इस दफा भाजपा से आर-पार के मूड में हैं।
हालांकि, उनके खिलाफ द्रंग में भाजपा 1977 से लेकर अब तक सिर्फ दो चुनावों में ही उन्हें हरा पाई है। कौल सिंह ने 1977 में अपना राजनीतिक सफर शुरू किया था। उसके बाद लगातार 1982, 1985 में वो चुनाव जीते। 1990 में उन्हंे भाजपा की लहर में दीनानाथ से पहली दफा हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद कौल ने फिर लगातार 1993, 1998, 2003, 2007, 2012 तक लगातार पांच बार जीत दर्ज कर द्रंग का प्रतिनिधित्व किया।
इन लगभग सभी कार्यकालों में एक बार वो विधानसभा अध्यक्ष तथा चार बार राज्य मंत्री व कैबिनेट मंत्री रहे। वर्ष 2017 में कहा जाता है कि कांग्रेस के ही एक दिग्गज ने कौल सिंह को हराने की बिसात बिछाकर उनका लगातार छठी बार जीत का सपना चकनाचूर कर दिया। उन्हें भाजपा के जवाहर ठाकुर से हार का सामना करना पड़ा। द्रंग विधानसभा मंडी का रिमोट एरिया है। हालांकि, कौल सिंह ने यहां मंत्री रहते हुए काफी विकास कार्य किए। मगर उनके विरोधी आज भी उन्हें द्रंग में विकास न होने के मामले को लेकर घेरने की कोशिश में लगे हैं।
उधर, भाजपा में जवाहर ठाकुर के अलावा स्व. पंडित सुखराम के पौत्र आश्रय शर्मा भी द्रंग से चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं। भाजपा का टिकट अभी फाइनल नहीं हुआ है, लेकिन इतना तय है कि कौल सिंह को रोकने के लिए जहां भाजपा तो पुरजोर लगाएगी ही, वहीं कांग्रेस में भी उनके खिलाफ एक लाॅबी उन्हें विधानसभा से रोकने के लिए अंदरखाते सक्रिय है। देखना है कि कौल सिंह अपनी इस लड़ाई से कैसे पार पाते हैं।