पांच साल के भीतर महंगाई दुगुना बढ़ि गइल, अउर कमाई आधी रहि गइल. साल 2018-19 में फुटकर महंगाई दर 3.4 प्रतिशत रहल. जबकि एह साल यानी 2022-23 में सरकार कहत हौ कि महंगाई 6.7 फीसदी रही. लेकिन जवने हिसाब से हर महीनय हर चीजी क दाम बढ़ल जात बा, सरकारी कर यानी जीएसटी बढ़ल जात बा, ओह हिसाबे महंगाई तीन गुना होइ जाय त कवनो अचरज नाहीं. होल सेल वाली महंगाई त अउरो रिकॉर्ड तोड़ले बा, 30 साल में सबसे उप्पर. साल 2018 के मई महीना में होल सेल वाली महंगाई खाली 4.43 प्रतिशत रहल, मई 2022 में 15.88 प्रतिशत चढ़ि गयल. जून क हिसाब अबही आवय वाला हौ, लेकिन अंदाजा हौ कि एदवा अउर उप्पर जाई. लेकिन एही कमाई क हाल देखि के जनता जनार्दन पुक्का फोरि के रोव बायन. साल 2018-19 में पूरे देश के स्तर पर एक आदमी क औसत कमाई 92,241 रुपिया रहल. लेकिन 2021-22 में कमाई घटि के 91,481 रुपिया होइ गयल.
आक्सफेम इंडिया नावे क संस्था एक रिपोर्ट में कहले बा कि कोरोना महामारी के नाते 84 प्रतिशत लोगन क कमाई घटि गइल. एक दूसर संस्था पीपुल्स रिसर्च ऑन इंडियाज कंज्यूमर इकॉनामी (पीआरआईसी) अपने एक सर्वे रिपोर्ट में बतइले बा कि 2020-21 में देश के सबसे गरीब 20 प्रतिशत लोगन क कमाई 53 प्रतिशत घटि गइल. बाकी लोगन क भी कमाई 32 प्रतिशत से लेइ के नौ प्रतिशत तक घटल बा. लेकिन कुछ लोगन क संपत्ति दुगुना से जादा बढ़ि गइल. पहिले देश में 102 अरबपति रहलन, अब 142 होइ गइलन. एनकर संपत्ति 23.1 लाख करोड़ रुपिया से बढ़ि के 53.2 लाख करोड़ रुपिया होइ गइल.
इ कुल जोड़-घटाव से साफ देखात बा कि देश में गरीबन क रहाइस नाहीं बा. कुछ लोग त दिन-दूना रात-चौगुना बढ़त बायन, लेकिन बाकी पूरी जनता कंगाल भइल जात बा. सरकार अगर 80 करोड़ लोगन के फ्री में गल्ला न बंटले होत त केतना जने भूखल मरि जातन. लेकिन सितंबर बाद अब इ फ्री वाला गल्ला भी बंद होवय वाला हौ. फिर चूल्हा कइसे जरी, गरीब-गुरबा एही के सोचि के परेशान हउअन. जवने समानी पर अबही तक टैक्स नाहीं लगत रहल, अब ओहू पर टैक्स लागू होइ गयल बा. सब त सब अब पिसाने पर भी जीएसटी लगि गयल. केतना समानी पर 12 प्रतिशत जीसएटी रहल, अब बढ़ाई के 18 प्रतिशत कइ देहल गयल. गैस सिलिंडर पहिलय हजार रुपिया से उप्पर रहल. अब हर सिलिंडर पर 50 रुपिया अउर बढ़ाइ देहल गइल. महंगाई पहिलय से तीतलौकी रहल, अब नीबी के पेड़े चढ़ि गइल हौ.
लेकिन सरकारौ का करय. ओहू क हिसाब-किताब गड़बड़ चलत हौ. विदेश से आवय वाला तेल एतना महंगा होइ गयल बा कि विदेशी मुद्रा भंडार में जमा डॉलर खतम भइल जात बा. दूसरे देशन से तेल डॉलरय में खरीदल जाला. रुपिया एकदमय से जवाब देइ देहले बा. डॉलर के मुकाबले रुपिया क कीमत 79 से भी नीचे लुढ़कि गयल बा. मार्च 2022 तक ही देश पर विदेशी कर्जा साल भर पहिले के मुकाबले 8.2 प्रतिशत बढ़ि के 620.7 अरब डालर होइ गयल. लेकिन आपन विदेशी मुद्रा भंडार घटि के 600 अरब डॉलर से नीचे पहुंचि गयल हौ. सरकार क भी खर्चा के मुकाबले आमदनी घटल जात हौ. अब एही से समझि ल कि सरकार सोचले रहल 2022-23 में राजकोषीय घाटा यानी सरकारी खजाने क घाटा सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी क 6.4 प्रतिशत रही. लेकिन अब कहल जात बा कि इ 6.7 प्रतिशत या एहसे भी उप्पर जाइ सकयला.
जब सरकारय आपन हिसाब-किताब नाहीं संभारि पावत बा, त बेचारी गरीब जनता कइसे संभारी. सरकार के पल्ले त एक से एक दिमाग वाला बायन, ओन्हय कुछ अइसन सोचय, करय के चाही कि आम जनता के उप्पर कर कम लगावय के पड़य, अउर सरकारी खजाना फिर भी भरि जाय. एकरे बदे कमाई क दूसर साधन खोजय के चाही. जब सरकार नौजवानन से रोजगार करय बदे कहि सकयला, त सरकार के भी रोजगार कइ के कमाई करय के चाही. लेकिन इहां त सरकार फायदा कमाए वाला आपन रोजगार भी बेचले जात हौ. अगर सरकार के कर भी लगावय के बा त ओकरे उप्पर लगावय के चाही, जेकर कमाई बढ़ल जात बा. लेकिन सरकार ओकरे उप्पर कर एह नाते नाहीं लगावत बा कि उ सब आपन पइसा उद्योग-धंधा में लगइहयं त नोकरी पैदा होई, देश के नौजवानन के नोकरी मिली. दुइ पइसा लोगन के हाथे आई त अर्थव्यवस्था बढ़ी. इ सोच त सही बा, लेकिन बनिया लोग अइसे उद्योग-धंधा में पइसा नाहीं लगउतन. जब बजारी में समानी क मांग होला, तबय उ उत्पादन बढावय बदे पइसा खरच करयलन. लेकिन जब आम जनता के पल्ले कमाई ही नाहीं बा त बजारी में मांग कइसे बढ़ी. लेइ देइ के मामला मुर्गी अउर अंडा के फेर में फंसल हौ. एह बीचे आम जनता क आमलेट बनल जात हौ. भोजपुरी क एक कवि एक ठे कविता बनइले रहल -’खरचा पहाड़ जइसन, लोढ़ा जइसन कमाई बा. आम गरीब जनता क एही में पिसाई बा.’ आज बिलकुल इहय हालत बा. भगवानय सम्हरिहय त सम्हरी.