Kharge: 50 साल की राजनीति, 5 बार CM बनने से चूके…कुछ ऐसी है कांग्रेस अध्यक्ष के प्रबल दावेदार खड़गे की कहानी

Mallikarjun Kharge: 2009 में लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने से पहले मल्लिकार्जुन खड़गे लगातार 9 बार गुरमीतकल विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें एक कठोर कांग्रेसी और गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान माना जाता है। कांग्रेस की सरकार में खड़गे ने विभिन्न मंत्रालयों में कई भूमिकाएं भी निभाई हैं।

बेंगलुरु: मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए नामांकन कराया। प्रबल संभावना है कि वह कांग्रेस के अध्यक्ष चुने जा सकते हैं। गांधी परिवार के कट्टर वफादार रहे मल्लिकार्जुन पांच बार कर्नाटक के मुख्यमंत्री बनने से चूके। कहा जाता है कि पांचोंबार उनका नाम सीएम पद के लिए लगभग तय था लेकिन दिल्ली से अचानक आए फरमान के बाद पांचों बार वह सीएम बनने से रह गए लेकिन उन्होंने कभी भी कांग्रेस या गांधी परिवार के खिलाफ कुछ नहीं कहा। इसी कारण से उन्हें गांधी परिवार के वफादारों में से एक माना जाता है।

मल्लिकार्जुन को 50 साल से ज्यादा का राजनीतिक अनुभव है। वह एक दलित नेता हैं। खड़गे ने अपने गृह जिले गुलबर्गा में एक संघ नेता के रूप में राजनीतिक पारी की शुरुआत की। उसके बाद उनके राजनीतिक करियर ग्राफ बढता गया। राजनीति में कड़ी मेहनत के चलते उन्हें हमेशा चैंपियन कहा गया।

1994 में फिसला पद
खड़गे 1990 में एस बंगारप्पा कैबिनेट और 1992 से 1994 तक एम वीरप्पा मोइली के कैबिनेट सदस्य थे। 1994 में विधानसभा में विपक्ष के नेता बनने के बाद उनकी भूमिका बदल गई। कांग्रेसी नेता की नजर मुख्यमंत्री पद पर थी। यह पद उनका होते-होते रह गया। जनता दल का सीएम बना।

1999 और 2004 में भी निकला मौका
1999 में वह फिर से मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में से एक थे, लेकिन एसएम कृष्णा ने उन्हें पछाड़ दिया। एसएम कृष्णा को सीएम बनाया गया और खड़गे उनके कार्यकाल में गृहमंत्री रहे। ऐसा ही एक मौका 2004 में भी आया था, लेकिन तब भी खड़गे शीर्ष पद से चूक गए क्योंकि उनके करीबी दोस्त एन धरम सिंह ने कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन का नेतृत्व किया और उन्होंने उनके अधीन काम किया।

2013 और 2019 का इंसीडेंट
खड़गे को 2005 में केपीसीसी प्रमुख के पद के लिए चुना गया था और उन्हें 2008 में दूसरी बार विपक्ष का नेता बनाया गया था। उन्होंने 2013 में मुख्यमंत्री बनने का एक और मौका गंवा दिया, जब पार्टी ने कर्नाटक और दक्षिण में पहली बार भाजपा की सरकार गिराते हुए क्लीन स्वीप किया। इस बार सीएम पद के लिए खड़गे की चुनौती वास्तविक थी, लेकिन एक वफादार पार्टी के व्यक्ति के रूप में, वह सिद्धारमैया के सामने झुक गए, जिन्हें पार्टी आलाकमान ने पसंद किया था। 2019 में एचडी कुमारस्वामी और उनके बीच खींचतान सामने आई। कुमारस्वामी ने इस्तीफा दिया तो खड़गे के सीएम बनने की खबरें आईं लेकिन इस बार वह फिर सीएम बनने सी चूक गए और बीजेपी ने सरकार बनाते हुए बीएस येदियुरप्पा को सीएम बनाया।

मोदी लहर भी नहीं हरा पाई चुनाव
खड़गे विभिन्न परोपकारी और सामाजिक गतिविधियों से भी जुड़े हुए हैं। उनका विवाह राधाबाई से हुआ है और उनके तीन बेटे और दो बेटियां हैं। चुनाव की बात करें तो मल्लिकार्जुन हमेशा अजेय रहे। यहां तक कि लोकसभा चुनावों में मोदी लहर भी उन्हें नहीं हरा सकी। प्रबल मोदी लहर में जहां लोकसभा चुनाव में सूफड़ा साफ हुआ, उन्होंने गुलबर्गा से 74,000 से अधिक मतों के अंतर से जीत हासिल की।

लगातार 9 बार रहे विधायक
2009 में लोकसभा चुनाव के मैदान में उतरने से पहले खड़गे लगातार 9 बार गुरमीतकल विधानसभा क्षेत्र से विधायक रहे। उन्हें एक कठोर कांग्रेसी और गांधी परिवार के प्रति निष्ठावान माना जाता है। कांग्रेस की सरकार में खड़गे ने विभिन्न मंत्रालयों में कई भूमिकाएं भी निभाई हैं।

विवादों में नहीं रहे
खड़गे ने कर्नाटक विधानसभा और केंद्रीय स्तर पर विपक्ष के नेता के रूप में भी काम किया। 2008 के विधानसभा चुनावों के दौरान वह कर्नाटक कांग्रेस प्रदेश कमिटी के प्रमुख रहे। स्वभाव से शांत खड़गे कभी भी किसी राजनीतिक संकट या विवादों में नहीं रहे।

गरीब परिवार में हुआ जन्म
गुलबर्गा जिले के वारवट्टी में एक गरीब परिवार में जन्मे, उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा और बीए के साथ-साथ गुलबर्गा में कानून की पढाई की। राजनीति में आने से पहले वह कुछ समय के लिए वह कुछ समय तक वकालत भी करते थे। उन्होंने संघ नेता के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। श्रमिकों के लिए काम करने के दौरान 1969 में वह कांग्रेस में शामिल हुए और गुलबर्गा सिटी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।
कांग्रेस में आने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा
कांग्रेस में आने के बाद से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। खड़गे ने पहली बार 1972 में विधानसभा में प्रवेश किया था जब वे गुरमीतकल निर्वाचन क्षेत्र से जीते थे और 1976 में प्राथमिक शिक्षा राज्य मंत्री के रूप में देवराज उर्स सरकार के सदस्य बने थे। उन्होंने 1980 में गुंडू राव मंत्रालय में भी काम किया, जिसके दौरान प्रभावी भूमि सुधारों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने एक ट्राइब्यूनल का गठन किया गया था ताकि भूमि अधिकार किसानों को ट्रासंफर किया जा सके।