किशनगंज: बिहार के किशनगंज स्थित बूढ़ी काली मंदिर (Kishanganj Budhi Kali mandir), श्रद्धालुओं की अटूट आस्था का केंद्र है। ऐसी मान्यता है कि अगर किसी का कोई यहां विशेष मनोरथ से आता है तो उसे खाली हाथ नहीं लौटना पड़ता। कहा जाता है कि मां काली की शरण में आने से उसका काम पूरा जाएगा। ये मंदिर अपार शक्ति का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर सिद्ध है और इसमें अनंत शक्ति विद्यमान है। बूढ़ी काली मंदिर में सच्चे मन से पूजा करने पर मां काली भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। बताया जाता है कि नवाब असद रजा ने मां काली के इस मंदिर के लिए जमीन दान किया था।
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नवाब असद रजा ने मां काली के इस मंदिर के लिए जमीन का किया था दान
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अपार शक्ति का प्रतीक है यह सिद्ध मंदिर
किशनगंज स्थित बूढ़ी काली मंदिर के सिद्ध शक्ति के विद्यमान होने के पीछे कई कहानियां भी प्रचलित हैं। इस मंदिर के प्रति भक्तों में इतनी श्रद्धा और विश्वास है कि यहां मूर्ति दान की होड़ लगी रहती है। इसके लिए भक्तों को कई साल का इंतजार करना पड़ता है।
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मंदिर में मूर्ति दान के लिए 21 साल की है वेटिंग
मंदिर व्यवस्था समिति की ओर से बताया गया कि अगले 21 साल तक मूर्ति दान की बुकिंग हो चुकी है। अगर आज कोई मूर्ति दान की इच्छा रखता है तो उसे 21 साल तक इंतजार करना होगा।
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पूजा, परम्परा और बलि प्रथा
बूढ़ी काली मंदिर में हर वर्ष कार्तिक महीने की अमावस्या को भव्य रूप में निशि पूजा होती है। जिसमें सुदूर क्षेत्रों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस निशि पूजा में शामिल होने के लिए आते हैं। यहां पूजा करने की परंपरा के साथ ही बलि की प्रथा भी है।
मनोकामनाएं पूरी होने पर देते हैं भक्त बलि
वर्तमान पुजारी मलय मुखर्जी के पूर्वजों ने बताया कि मंदिर में कई पीढ़ियों से पूजा करने की परंपरा कायम है। यहां बलि भी दी जाती है। मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त मां काली की प्रतिमा के समक्ष स्थापित बलि वेदी में बलि अर्पित की जाती है। श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी होने पर भक्त बलि देते हैं।
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मंदिर के इतिहास पर एक नजर
मंदिर भवन में इसके स्थापित होने की तारीख भले ही साल 1902 दिया गया है, लेकिन यह मंदिर उससे भी काफी पुराना बताया जा रहा। 1902 के सर्वे में इस मंदिर के मौजूद होने की पुष्टि की गई। जिसका मतलब है कि इसकी स्थापना 1902 से पहले हुई थी।