यदि आपसे कहा जाए कि एक दिहाड़ी मजदूर की अथक मेहनत ने उसे करोड़ों के साम्राज्य का मालिक बना दिया, तो आप यकीन नहीं करेंगे। लेकिन हमारी आज की कहानी एक ऐसे ही शख्स की सफलता को परिभाषित कर रहा है। पेशे से एक दिहाड़ी मजदूर और कब्र खोदने वाले के बेटे वी पी लोबो, जिन्होंने खुद की बदौलत एक बड़े रियल स्टेट बिज़नेस की स्थापना कर सिर्फ छह सालों में 75 करोड़ का सालाना टर्न-ओवर भी किया। लोबो की जीवन-यात्रा बाधाओं के खिलाफ एक सकारात्मक सोच और फिर एक योग्य जीवन का निर्माण करते हुए प्रेरणा से भरी है।
उनकी कंपनी टी-3 अर्बन डेवलपर्स, उच्च गुणवत्ता से युक्त सुविधाओं के साथ बजट घरों का निर्माण करती है। इंटरकॉम, वाईफाई और पुस्तकालय उनके टियर-3 प्रोजेक्ट में शामिल हैं और वर्तमान में 500 करोड़ रुपयों के मूल्य से भी ऊपर के उनके प्रोजेक्ट चल रहे हैं।
उनका जन्म कर्नाटक के मंगलुरू के पास स्थित बोग्गा गांव के एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ। इनके माता-पिता अनपढ़ थे। इनकी प्रारंभिक शिक्षा लोकल मीडियम स्कूल में हुई थी। उन दिनों उनके माता-पिता दोनों ही दिहाड़ी मजदूरी करते थे और उन्हें मजदूरी के एवज में पैसे नहीं बल्कि चावल और रोज उपयोग में आने वाले सामान दिए जाते थे। इसलिए स्कूल की फीस देने के लिए उनके पास पैसे नहीं होते थे। कुछ लोगों की मदद से वह दसवीं तक पढ़ पाए।इनका हाई स्कूल इनके गांव से 25 किलोमीटर दूर था। इसके बाद वह मंगलुरू चले गए। वहाँ लोबो संत थॉमस चर्च के पादरियों और नन्स की सहायता से संत मिलाग्रेस स्कूल से अपनी बारहवीं की पढ़ाई पूरी की।
एक दिन लोबो अपने बचाये 50 रुपये के साथ, बिना घर में बताये मुम्बई निकल पड़े। बस ड्राइवर मंगलुरू का था और उसने लोबो की मदद की और उसे कोलाबा के सुन्दरनगर स्लम तक पहुंचा दिया। वहाँ वह यूपी के एक ड्राइवर के साथ रहने लगे और बहुत सारे छोटे-मोटे काम सीख गए। वह टैक्सी धोने का काम करने लगे। दिन भर में दस गाड़ियां तक धो लेते थे और इससे उन्हें सिर्फ 20 रुपये ही मिल पाते थे।
लोबो ने एक छोटी पॉकेट डिक्शनरी से हिंदी और अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया। इतना ही नहीं अंग्रेजी न्यूज़पेपर खरीदकर रोज पढ़ते थे। धीरे-धीरे उसने दोस्त बनाने शुरू किये और कपड़े आयरन करने लगे और इस तरह लोबो महीने में 1200 रुपये कमाने लगे। तब जाकर उन्होंने अपने घर में अपने ठिकाने की जानकारी दी और हर महीने 200 रूपये घर भेजने लगे।
वह एक समृद्ध सज्जन के कपड़े आयरन करते थे, उन्होंने ही लोबो को आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहन दिया।
“मैं कल्पना करता था कि मैं सूट और टाई पहनकर उसके जैसे एक दिन एक ऑफिस में नौकरी करूँगा और हर दिन मजबूत होता जाऊँगा।”
मुम्बई में छह महीने बिताने के बाद उन्होंने नाईट कॉलेज में जाना शुरू किया और वही से इन्होंने कॉमर्स में स्नातक की डिग्री ली।
“मैं सिर्फ 4-5 घंटे ही सो पाता था, टैक्सी धोना, कपड़े आयरन करना, खाना बनाना और सफाई और फिर रात में कॉलेज जाना और पढ़ाई करना। लंच ब्रेक में पांच मिनट में खाना खाकर टाइपिंग क्लास जाता था” — लोबो संघर्ष के दिनों को याद करते हुए बताते हैं।
लोबो को उनकी पहली नौकरी जनरल ट्रेडिंग कारपोरेशन में मिली जहाँ से वैज्ञानिक प्रयोगशाला के उपकरण देश के सभी शिक्षण संस्थानों में भेजे जाते थे। इनके मालिक ने इनके सीखने के उत्साह को देखकर उन्हें सेल्स एक्सक्यूटिव की नौकरी दे दी। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। पांच साल यह नौकरी करने के बाद लोबो ने इसे छोड़कर गोराडिया फोर्जिंग लिमिटेड कंपनी में रीजनल मेनेजर की पोस्ट पर काम करने लगे।
फिर 1994 में वह मस्कट चले गए और वहाँ से लौटकर उन्होंने एक रियल स्टेट कंपनी एवर शाइन को ज्वाइन किया। उसके पश्चात् उन्होंने बहुत सारी कंपनियों के साथ काम किया और 2007 में एवर शाइन ग्रुप के सीईओ बनकर मुम्बई लौट आये।
रियल स्टेट बिज़नेस के अनुभव के साथ उन्होंने 2009 में अपनी कंपनी शुरू की जिसका नाम T3 अर्बन डेवलपर्स लिमिटेड रखा। शुरुआती दिनों की पूंजी की दिक्कत उनकी पत्नी के भाई ने और दोस्तों ने पूरी कर दी और बाद में उनके शेयर होल्डर्स ने। और धीरे-धीरे उनकी कंपनी में बहुत सारे कंपनियों ने इन्वेस्ट करना शुरू कर दिया। उनकी कंपनी के प्रोजेक्ट में नौ पूरे हो चुके है जिसमे शिमोगा, हुबली और मंगलुरू के प्रोजेक्ट शामिल है।
लोबो गरीब बच्चों के लिए एक एनजीओ भी चलाते हैं जिसका नाम T3 होप फाउंडेशन है। वहाँ गरीब बच्चों को अंग्रेज़ी माध्यम के स्कूल में पढ़ाया जाता है। इतना ऊँचा मक़ाम हासिल करने के बाद भी लोबो अपने पुराने दिनों को नहीं भूलते। अपनी जड़ों से जुड़े इस रियल हीरो की कहानी सच में बेहद प्रेरणादायक है।